शिवाजी और बीजापुर का बहुत ही गहरा संबंध है, जब 1 नबंवर 1656 में बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु हुई तो पूरे बीजापुर में अराजकता का माहौल फैल गया। औरंगजेब ने देखा कि बीजापुर का कब्जा करने के लिए यह समय उचित है और उसने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया। ऐसे में वीर शिवाजी ले बीजापुर की बागडोर संभाली और औरंगजेब पर धावा बोल दिया।
शिवाजी ने इस्लाम धर्म के लिए बनाई थी ये नीति
उनकी सेना ने जुन्नार नगर पर आक्रमण कर ढेर सारी सम्पत्ति के साथ करीब 200 घोड़े लूट लिए। अहमदनगर से करीब 700 घोड़े, चार हाथी के अलावा उन्होंने गुण्डा तथा रेसिन के दुर्ग पर भी लूटपाट की। औरंगजेब इसके बाद से शिवाजी का विरोधी बन गया और उसे शाहजहां के आदेश पर बीजापुर के साथ संधि करनी पड़ी।
औरंगजेब के आगरा लौटने के बाद बीजापुर की बागडोर सुल्तान आदिलशाह द्वितीय ने संभाली। बीजापुर का ये नया शासक शिवाजी को अपना शत्रु मानता था और इसी कारण शिवाजी को समाप्त करने के लिए बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की विधवा बेगम ने अफ़ज़ल खाँ (अब्दुल्लाह भटारी) को भेजा।
अफ़जल खाँ ने अपनी विशाल सेना के साथ 1659 में प्रतापगढ़ पहुंचे, शिवाजी ये जानते थे की इतनी विषाल सेना का सामना करने के लिए उनके पास पर्याप्त सेना नहीं है इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने कूटनीति का परिचय देते हुए इस सारे मामले को अनदेखा कर दिया।
अफ़जल खाँ ने शिवाजी के पास सन्धि-वार्ता के लिए अपने दूत कृष्णजी भास्कर को भेजा, इस दूत के हाथों उसने संदेश भिजवाया कि अगर शिवाजी बीजापुर की आधिपत्य स्वीकार कर लें तो सुल्तान उसे उन सभी क्षेत्रों का अधिकार दे देगा जो शिवाजी के नियंत्रण में थे। साथ ही शिवाजी को बीजापुर के दरबार में एक सम्मानित पद भी दिया जाएगा।
आधुनिक नौसेना के जनक थे शिवाजी
शिवाजी के मंत्री व सलाहकार इस संधि के पक्ष में थे, लेकिन शिवाजी को ये बात पसंद नहीं आ रही थी, उन्होंने कृष्णजी भास्कर को उचित सम्मान देकर अपने दरबार में रख लिया और अपने दूत गोपीनाथ को वस्तुस्थिति का जायजा लेने अफजल खाँ के पास भेजा। गोपीनाथ और कृष्णजी भास्कर की सूचनाओं के द्वारा शिवाजी को ये ज्ञात हो गया कि अफजल खाँ संधि नहीं करना चाहता बल्कि वह इस धोखे से शिवाजी को बंदी बनाना चाहता है।
शिवाजी ने भी चाल चलते हुए अफजल खाँ को एक उपहार भेजकर उससे संधि करने का प्रस्ताव भेजा। जब 10 नवंबर 1659 को अफ़जल खाँ अपनी सेना के साथ वार्ता स्थल पर पहुँचा तो शिवाजी भी उससे मिलने के लिए चले गए। जब धूर्त अफ़जल खाँ ने शिवाजी को गले मिलने का न्यौता दिया, तो शिवाजी ने उसका आमंत्रण स्वीकार किया।
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अफजल खाँ एक भीमकाय शरीर वाला व्यक्ति था और शिवाजी उसकी गर्दन तक भी नहीं आ रहे थे। इसी कारण अफजल खाँ शिवाजी को अपनी बगल में दबाकर मारना चाहता था लेकिन जब तक अफजल खाँ ऐसा कदम उठाता तब तक शिवाजी ने बांये हाथ में छुपाए बाघनख से अफजल खाँ का पेट फाड़ दिया।
अफजल खाँ की मौत का इशारा मिलते ही तैयार खड़ी मावली सेना ने मोरोपन्त पिंगले और नेताजी पालकर के नेतृत्व में खान की फौज पर आक्रमण कर दिया। शिवाजी ने बौखलाई हुई सेना को खुले युद्ध में परास्त किया और जो सामान अफ़जल खाँ ने प्रतापगढ़ आते हुए लूटा था, वो अपने कब्जे में कर लिया।
(Source- Google)
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