शिवाजी के राज्य में हिन्दू-मुस्लिम के मध्य किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं था। जैसे हिंदुओें को मंदिरों में पूजा करने में कोई रोक टोक नहीं थी वैसे ही मुसलमानों को मस्जिद में नमाज़ अदा करने से भी कोई नहीं रोकता था। शिवाजी की सेना में कार्यरत हर मुस्लिम सिपाही चाहे वह किसी भी पद पर क्यों न हो, शिवाजी की न्याय प्रिय एवं सेक्युलर नीति के कारण हमेशा उनके साथ खड़े रहे।
आधुनिक नौसेना के जनक थे शिवाजी
किसी दरगाह, मस्जिद आदि को अगर मरम्मत की आवश्यकता होती तो उसके लिए राज कोष से धन आदि का सहयोग भी शिवाजी द्वारा दिया जाता था। इसीलिए शिवाजी के काल में न केवल हिन्दू अपितु अनेक मुस्लिम राज्यों से मुस्लिम भी शिवाजी के राज्य में आकर बसे थे।
शिवाजी के सबसे बड़े आलोचकों में से एक खाफी खाँ जिसने शिवाजी की मृत्यु पर यह लिखा था की अच्छा हुआ एक काफ़िर का भार धरती से कम हुआ, उसने भी शिवाजी की तारीफ़ करते हुए अपनी पुस्तक के दूसरे भाग के पृष्ठ 110 पर लिखा की शिवाजी का आम नियम था की कोई मनुष्य मस्जिद को हानि नहीं पहुंचाएगा, लड़की को नहीं छेड़ेगा, मुसलमानों के धर्म की हंसी नहीं उडाएगा। इसके साथ ही अगर कभी कहीं से भी शिवाजी को कोई कुरान मिलता तो वह उसे किसी मुसलमान को भेंट कर देते थे।
शिवाजी जयंती : एक सच्चे मराठा थे छत्रपति शिवाजी
बहुत कम यह जानते हैं कि औरंगजेब ने स्वयं शिवाजी को चार बार अपने पत्रों में इस्लाम का संरक्षक बताया था। ये पत्र 14 जुलाई 1659, 26 अगस्त, 28 अगस्त 1666 और 5 मार्च 1668 को लिखे गए थे।
शिवाजी जंजिरा पर विजय प्राप्त करने के लिए केलशी के मुस्लिम बाबा याकूत से आशीर्वाद तक मांगने गए थे, कई जगहों पर इसका जिक्र मिलता है।
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