पुण्यतिथि विशेष : भारतीय सिनेमा के दूसरे सहगल थे मास्टर मदन

Samachar Jagat | Monday, 05 Jun 2017 09:16:34 AM
death anniversary Master madan

मुंबई। भारतीय संगीत जगत में अपने सुरों के जादू से श्रोताओं को मदहोश करने वाले गायक तो कई हुए और उनका जादू भी उनके सर चढक़र बोला लेकिन कुछ ऐसे गायक भी हुए जो गुमनामी के अंधेरे में खो गये और आज उन्हें कोई याद भी नहीं करता। उन्हीं में एक ऐसी ही प्रतिभा थे मास्टर मदन।

मास्टर मदन का जन्म 28 दिसंबर 1927 को पंजाब के जालंधर में हुआ था। मास्टर मदन के पिता सरदार अमर सिंह भारत सरकार के शिक्षा विभाग में काम किया करते थे। उनके पिता की रूचि संगीत में थी और वह हारमोनियम और तबला बजाने मे निपुण थे जबकि उनकी माता धार्मिक विचारों वाली महिला थी।

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मास्टर मदन के भाई और बहन भी संगीत में काफी रूचि रखते थे। घर में संगीत का माहौल होने के कारण मास्टर मदन भी संगीत में अपनी रूचि लेने लगे। महज दो वर्ष की उम्र में ही मास्टर मदन ने अपने से उम्र में 14 वर्ष बड़ी बहन से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। इसके अलावा उन्होंने संगीतकार पंडित अमर नाथ और गोसाई भगवद किशोर से भी संगीत की शिक्षा हासिल की।

मास्टर मदन अपने बड़े भाई मोहन के साथ संगीत का रियाज किया करते थे। उन दिनों महान गायक कुंदन लाल सहगल शिमला में रेमिंगटन नामक टाइपराईटर कंपनी में काम करते थे वह मास्टर मदन के घर अक्सर आया करते थे और उनके बड़े भाई के साथ संगीत का रियाज किया करते थे जिसे मास्टर मदन बड़े प्यार के साथ सुना करते थे।

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मास्टर मदन की प्रतिभा से सहगल काफी प्रभावित हुए। कुछ समय के बाद सहगल कोलकाता के न्यू थियेटर से जुड़ गये और उनका ध्यान मास्टर मदन की ओर गया। उन्होंने मास्टर मदन से पेशकश की, जब भी वह कोलकाता आयं तो उनसे एक बार अवश्य मिलें।

मास्टर मदन ने अपना पहला प्रोग्राम महज साढ़े तीन वर्ष की उम्र में धरमपुर में पेश किया। गाने के बोल कुछ इस प्रकार थे हे शारदा नमन करूं। मास्टर मदन की मनमोहक आवाज का जादू श्रोताओं पर कुछ इस तरह छाया, उनकी आंखों में आंसू आ गये। इसके अलावा इसी कार्यक्रम में उन्होंने ध्रुपद में भी गाने गाये।

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कार्यक्रम में मास्टर मदन को सुनने वाले कुछ शास्त्रीय संगीतकार भी उपस्थित थे, जो उनकी संगीत प्रतिभा से काफी प्रभावित हुये और कहा इस बच्चे की प्रतिभा में जरूर कोई बात है और इसे संगीत ईश्वरीय देन है। आज के पहले इतना मधुर गाना कभी नहीं सुना था पूरे देश में इस बच्चे की प्रतिभा का कोई मुकाबला नहीं कर सकता है।

मास्टर मदन के बारे में प्रचलित यह बात जल्द ही आग की तरह फैल गयी। सारे देश में मास्टर मदन के नाम का डंका बजने लगा जिसमें मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इतना ही नहीं मद्रास के चर्चित अखबार द हिंदू ने मास्टर मदन का फोटो अपने अखबार में प्रमुखता से छापा।

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इसके बाद मास्टर मदन की प्रसिद्धि चारों ओर फैल गयी और सभी संगीत आयोजक उन्हें अपने-अपने कार्यक्रम में आने का न्योता देने लगे। मास्टर मदन अपने बड़े भाई के साथ कार्यक्रम में हिस्सा लेने जाया करते थे। अपने शहर में हो रहे कार्यक्रम में हिस्सा लेने के एवज में मास्टर मदन को 80 रुपये मिला करते थे जबकि शहर से बाहर हुए कार्यक्रम के लिए उन्हें 250 रुपये पारिश्रमिक के रूप में मिलता था।

मास्टर मदन की प्रतिभा से प्रख्यात कवि मैथिलीशरण गुप्त भी काफी प्रभावित हुए और उन्होंने इसका वर्णन अपनी पुस्तक भारत भारती में किया है। गर्मी की छुट्टियां मास्टर मदन शिमला में बिताया करते थे। इस बीच मास्टर मदन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा शिमला के शांता धरम स्कूल से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने अपनी मैट्रिक की शिक्षा दिल्ली के रामजस स्कूल से पूरी की और उनकी शिक्षा हिन्दू कालेज में भी हुई।

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पढ़ाई-लिखाई के प्रति ध्यान देने के कारण मास्टर मदन का ध्यान वर्षों तक संगीत से हटा रहा लेकिन कुछ वर्ष बाद उन्हें यह सब कुछ अजीब सा लगने लगा और उन्होंने अपना ध्यान संगीत की ओर लगाना शुरू कर दिया।

मास्टर मदन ने श्रोताओं के बीच अपना अंतिम कार्यक्रम कलकत्ता (अब कोलकाता) में पेश किया था जहां उन्होंने राग बागेश्वरी गाकर सुनाया। उनके आवाज के माधुर्य से प्रभावित श्रोताओं ने उनसे एक बार फिर से गाने की गुजारिश की। लगभग दो घंटे तक मास्टर मदन अपनी आवाज के जादू से श्रोताओं को मदहोश करते रहे। श्रोताओं के बीच बैठा एक शख्स उनकी आवाज के जादू से इस कदर सम्मोहित हुआ कि उसने उनको उपहारस्वरूप पांच सौ रुपये भेंट किये।

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कुछ समय के बाद मास्टर मदन दिल्ली आ गये। जहां वह अपनी बड़ी बहन और बहनोई के साथ रहने लगे थे। उनकी बहन उन्हें पुत्र के समान स्नेह किया करती थी। दिल्ली में मास्टर मदन दिल्ली रेडियो स्टेशन में अपना संगीत का कार्यक्रम पेश करने लगे। शीघ्र ही उनकी प्रसिद्धी फिल्म उद्योग में भी फैल गयी। एक बार एक फिल्म निर्माता ने उनके पिता से मास्टर मदन के काम करने की पेशकश भी की लेकिन उनके पिता ने निर्माता की पेशकश को यह कहकर ठुकरा दिया कि फिल्म उद्योग में मास्टर मदन के गुणों का सदुपयोग नहीं हो पाएगा।

दिल्ली में मदन की तबीयत प्राय: खराब रहा करती थी। दवाओं से उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो पा रहा था। इसलिए वह स्वास्थ्य में सुधार के लिए दिल्ली से शिमला आ गये। मगर उनके स्वास्थ्य में कुछ खास सुधार नहीं हुआ। महज 15 वर्ष की अल्पायु में 5 जून 1942 को शिमला में मास्टर मदन ने इस दुनिया से विदाई ले ली।

मास्टर मदन ने अपने संपूर्ण कैरियर में महज आठ गीत रिकार्ड कराये थे। इन गीतों में रवि दे पइले कांडे विच मित्रा बसदा है दिल दा चोर, बागा विच पी निगत पाइयां, गोरी गोरी बंइया, मोरी विनती मानो कान्हा रे, चेतना है तो चेत ले, माना कि माना हि मान है शमिल है। उनके रिकार्ड किये गये आठ गीतों में महज दो गीत ही ऑल इंडिया रेडियो के सूची में शामिल है जबकि छह अन्य गीत आज भी श्रोताओं की पहुंच से बाहर है।- एजेंसी 



 

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