B'day Special : अपनी रूमानी आवाज़ से दीवाना बनाया था मोहम्मद रफ़ी ने, जानें ये खास बातें.....

Samachar Jagat | Saturday, 24 Dec 2016 03:27:34 PM
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सुरों के सबसे बड़े फनकार मोहम्मद रफ़ी का आज जन्मदिन है। हिंदी सिनेमा के इतिहास में जब भी गानों का जिक्र होता है तो मोहम्मद रफ़ी का नाम जरूर याद किया जाता है। रफी का जन्म 24 दिसंबर, 1924 को अमृतसर के पास कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था। जब वह छोटे थे, तभी उनका परिवार लाहौर से अमृतसर आ गया था। 

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आइये जानते हैं मोहम्मद रफी के बारे में कुछ खास बातें...

1. मोहम्मद रफी का निक नेम 'फीको' था और बचपन से ही राह चलते फकीरों को सुनते हुए रफी साहब ने गाना शुरू कर दिया था। 

2.  मात्र 13 साल की उम्र में मोहम्मद रफी ने लाहौर में उस जमाने के मशहूर अभिनेता 'के एल सहगल' के गानों को गाकर पब्लिक परफॉर्मेंस दी थी। 

3.रफी के बड़े भाई की नाई की दुकान थी।रफी ज्यादा समय वहीं बिताया करते थे। एक फकीर वहां से गाते हुए गुजरा करते थे। सात साल के रफी उनका पीछा किया करते थे और फकीर के गीतों को गुनगुनाते रहते थे। एक दिन फकीर ने रफी को गाते हुए सुन लिया। उनकी सुरीली आवाज से प्रभावित होकर फकीर ने रफी को बहुत बड़ा गायक बनने का आशीर्वाद दिया, जो आगे चलकर फलीभूत भी हुआ। 

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4.मोहम्मद रफी ने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी।

5. रफी साहब ने सबसे पहले लाहौर में पंजाबी फिल्म 'गुल बलोच' के लिए 'सोनिये नी, हीरिये नी' गाना गाया था। 

6. मोहम्मद रफी ने मुंबई आकर साल 1944 में पहली बार हिंदी फिल्म म 'गांव की गोरी' के लिए गीत गाया था। 

7. मोहम्मद रफी को एक दयालु सिंगर माना जाता था, क्योंकि वो गाने के लिए कभी भी फीस का जिक्र नहीं करते थे और कभी कभी तो 1 रुपये में भी गीत गए दिया करते थे। 

8. मोहम्मद रफी ने सबसे ज्यादा डुएट गाने 'आशा भोसले' के साथ गाए हैं। उन्होंने सिंगर किशोर कुमार के लिए भी उनकी दो फिल्मों 'बड़े सरकार' और 'रागिनी' में आवाज दी थी। 

9. चौदहवीं का चांद' (1960) के शीर्षक गीत के लिए रफी को पहली बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. 1961 में रफी को दूसरा फिल्मफेयर पुरस्कार फिल्म 'ससुराल' के गीत 'तेरी प्यारी-प्यारी सूरत' के लिए मिला

फिल्म 'दोस्ती' (1965) के गीत 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे' के लिए उन्हें तीसरा फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. उन्हें 1965 में पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा गया। 1966 की फिल्म 'सूरज' के गीत 'बहारों फूल बरसाओं' के लिए उन्हें चौथा पुरस्कार मिला। 1968 में 'ब्रह्मचारी' फिल्म के गीत 'दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर' के लिए उन्हें पाचवां फिल्मफेयर पुरस्कार मिला और 1977 की फिल्म 'हम किसी से कम नहीं' के गाने 'क्या हुआ तेरा वादा' के लिए गायक को छठा पुरस्कार मिला। 

10. मोहम्मद रफी ने हिंदी के अलावा असामी, कोंकणी, भोजपुरी, ओड़िया, पंजाबी, बंगाली, मराठी, सिंधी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगू, माघी, मैथिली, उर्दू, के साथ साथ इंग्लिश, फारसी, अरबी और डच भाषाओं में भी गीत गाए हैं। 

11.उनकी रुखसत पर अभिनेता मनोज कुमार ने कहा था कि ऐसा लगता है कि आज मां सरस्वती भी अपने बेटे के जाने से दुखी हैं। 

मोहम्मद रफी को दिल का दौरा पड़ने की वजह से 31 जुलाई 1980 को देहांत हो गया था और खबरों के अनुसार उस दिन जोर की बारिश हो रही थी। रफी साहब के देहांत पर मशहूर गीतकार नौशाद ने लिखा, 'गूंजते है तेरी आवाज अमीरों के महल में, गरीबों के झोपड़ों में भी है तेरे साज, यूं तो अपनी मौसिकी पर सबको फक्र होता है मगर ए मेरे साथी मौसिकी को भी आज तुझ पर नाज है। रफी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं । 

 

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