वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी बरुथनी एकादशी कहलाती है। यह एकादशी पुण्यदायिनी एवं सौभागयदायिनी है। इस एकादशी का व्रत करने से जीव के सभी पापों का नाश होता है, सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है तथा अंत में जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पद्म पुराण के अनुसार राजा मांधाता ने इस एकादशी का व्रत करके मोक्ष को प्राप्त किया था।
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यह व्रत सभी दुखों से मुक्त करवाता है। इस एक एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को 10 हजार वर्ष तक तप करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है तथा जीव को कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय किए जाने वाले स्वर्ण दान के समान शुभ फल मिलता है। इस दिन अन्न दान करने से कन्यादान के बराबर फल की प्राप्ति होती है।
शास्त्रानुसार कन्या का धन लेने वालों को प्रलय काल तक नरक में रहना पड़ता है तथा उन्हें विलाब का जन्म भोगना पड़ता है। जो लोग प्रेम एवं धन सहित कन्या का दान करते हैं, उनके पुण्यों का अनुमान लगाना भी असम्भव है क्योंकि ऐसे लोगों के पुण्यकर्म लिखने में चित्रगुप्त भी असमर्थ है।
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व्रत में क्या करें :-
इस व्रत में भगवान मधुसूदन जी का विधिवत पूजन करें। रात्रि को जागरण करें। एक समय फलाहार करें। सत्संग में समय बिताएं।
व्रत के अगले दिन ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान देकर स्वयं अन्न ग्रहण करें। इस व्रत के प्रभाव से जीव को संसार के सभी सुखों की प्राप्ति होती हैं, जिस कामना से व्रत किया जाता है वह कामना भी सहज ही पूरी हो जाती है।
संसार के सभी सुखों को भोगने के पश्चात अंत में मोक्ष फल मिलता है। इस प्रकार यह व्रत सभी सुखों से युक्त एवं सभी दुखों से जीव को मुक्त करने वाला है।
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