ऋषि गौतम अपनी पत्नी के साथ सुख से रहते थे। माता अहिल्या इतनी सुंदर थी कि उनके रूप की चर्चा तीनों लोक में थी। जब यह बात देवराज इंद्र को पता चली तो वो उनके प्रति आकर्षित हो गए। एक दिन जब ऋषि गौतम अपनी कुटिया से बाहर गए तो इंद्र गौतम ऋषि का रूप रखकर माता अहिल्या के पास आए और उन पर मोहित हो गए। लेकिन जब गौतम ऋषि घर लौटे तो, अपने ही स्वरूप को देखकर चौंक गए।
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इंद्र अपने असली रूप में आए और ऋषि से क्षमा याचना करने लगे। तब गौतम ऋषि ने इंद्र को नपुंसक बनने का शाप दे दिया ( यह शाप अलग-अलग पौराणिक ग्रंथों में अलग-अलग तरीके से बताया गया है) और अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर की शिला बन जाने का शाप दिया।
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देवराज इंद्र को मिले शाप से देवगण काफी दुःखी हो गए। ऋषि गौतम ने अपनी पत्नी अहिल्या से कहा कि तुम्हें इसी तरह ही प्रायश्चित करना होगा और जब भगवान विष्णु के मानवरूप श्रीराम यहां आएंगे और इस शिला पर अपने पवित्र चरण रखेंगे। तब तुम्हारा उद्धार होगा। ऐसा ही हुआ जब भगवान विष्णु ने रामावतार लिया उस समय उन्होंने अहिल्या को स्पर्श कर उसका उद्धार किया।
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