होलाष्टक लगने के पीछे छिपी कुछ रोचक कहानियां

Samachar Jagat | Sunday, 05 Mar 2017 10:55:50 AM
Some interesting stories behind the seemingly Holashtk

शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक होलाष्टक लगे रहते हैं। ये आठ दिनों तक रहते हैं। इन दिनों कोई भी शुभ काम संपन्न नहीं किया जाता है। इन दिनों में ग्रह प्रवेश, शादी या फिर गर्भाधान संस्कार जैसे महत्वपूर्ण काम भी नहीं किए जाते है। होलाष्टक अवधि भक्ति की शक्ति का प्रभाव दिखाने की है।

आज से होलाष्टक शुरू, जानिए क्यों नहीं किया जाता इन दिनों में शुभ कार्य

होलाष्टक लगने के पीछे छिपी हैं ये कहानियां :-

कामदेव-रति का विरह काल :-

शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिव जी ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने पर संसार में शोक की लहर फैल गई थी। कामदेव की पत्नी रति ने शिव जी से क्षमा याचना की और अपने पति कामदेव को पुनर्जीवन का आशीर्वाद दिया। रति को मिलने वाले इस आशीर्वाद के बाद होलाष्टक का अंत धुलंडी को हुआ। क्योंकि होली से पूर्व के आठ दिन रति ने अपने पति कामदेव के विरह में काटे। जिसके कारण इन दिनों में कोई शुभ काम नहीं किया जाता है।

भक्त प्रहलाद को दी गई यातनाओं का काल :-

सतयुग में हिरण्यकश्यपु ने घोर तपस्या करके भगवान विष्णु से अनेक वरदान प्राप्त किए। वरदान के अहंकार में आकंठ डूबे हिरण्यकश्यपु ने अनाचार-दुराचार का मार्ग चुन लिया। भगवान् विष्णु से अपने भक्त की यह दुर्गति सहन नहीं हुई और उन्होंने हिरण्यकश्यपु के उद्धार के लिए अपना अंश उनकी पत्नी कयाधू के गर्भ में स्थापित कर दिया, जो जन्म के बाद प्रह्लाद कहलाए।

प्रह्लाद जन्म से ही ब्रह्मज्ञानी थे। प्रह्लाद की भक्ति का उनके पिता हिरण्यकश्यपु बहुत विरोध करते थे। प्रह्लाद को भक्ति से विमुख करने के उनके सभी उपाय जब निष्फल होने लगे तो उन्होंने प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को बंदी बना लिया और मृत्यु हेतु तरह-तरह की यातनाएं देने लगे। प्रह्लाद विचलित नहीं हुए। इस दिन से प्रतिदिन प्रह्लाद को मृत्यु देने के अनेकों उपाय किए जाने लगे, पर वे हमेशा बच जाते।

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इसी प्रकार सात दिन बीत गए। आठवें दिन अपने भाई हिरण्यकश्यपु की परेशानी देख उनकी बहन होलिका (जिसे ब्रह्मा द्वारा अग्नि से न जलने का वरदान था) ने प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में भस्म करने का प्रस्ताव रखा और होलिका जैसे ही अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती आग में बैठी, वह स्वयं जलने लगी और प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ।

तभी से भक्ति पर आघात हो रहे इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है। भक्ति पर जिस-जिस तिथि, वार को आघात होता, उस दिन और तिथियों के स्वामी भी हिरण्यकश्यपु से क्रोधित हो जाते थे। इसीलिए इन आठ दिनों में क्रमशः अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं।

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