भारत के सरकारी स्कूलों में एक सबसे बड़ी समस्या होती है लड़कियों का अचानक से स्कूल छोड़ देना , एक उम्र आने के बाद वे स्कूल जाने से कतराने लगती है और कईयो के पेरेंट्स खुद उन्हें घर में बैठने को बोल देते है। वजह सिर्फ एक है उन स्कूलों में शौचालय का ना होना। ऐसे में लड़कियों की पढ़ाई तो बिलकुल छूट ही जाती है। मगर लड़कों को कोई दिक्कत नहीं आती। फर्स्ट एजुकेशन फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक -
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स्कूल ड्रॉपआउट्स की संख्या में वृद्धि ,
रिपोर्ट कहती है, 2014-2016 स्कूल ड्रॉपआउट्स की संख्या में इजाफा हुआ है।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य सबसे ऊपर है। उत्तर प्रदेश में इन दो वर्षों के बीच स्कूल न जाने वाले बच्चों का प्रतिशत 4.9% से बढ़कर 5.3% हो गया। प्रदेश के केवल 37 फीसदी बच्चे ही सरकारी स्कूलों में जाते हैं। यही नहीं सात से 16 वर्ष की आयु के करीब 8 फीसदी बच्चे कभी स्कूल जाते ही नहीं हैं।
अधिकतर लड़कियां शौचालय ना होने पर स्कूल छोड़ देती है ,
सरकारी स्कूलों में सर्वे से सामने आया है की 2016 में कुल 1966 सरकारी स्कूलों में किये गए 60 से कम बच्चों वाले स्कूल की संख्या 2010 में 5.3 प्रतिशत थी जो 2016 में बढ़कर 13 फीसदी हो गयी है।
रिपोर्ट के मुताबिक लड़कियों के 50 फीसदी से ज्यादा स्कूलों में शौचालयों की व्यवस्था ही नहीं है। जहां शौचालय हैं, वो इस्तेमाल लायक नहीं हैं। लड़कियों के ड्रॉप आउट की यह भी एक बड़ी वजह है।
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50 प्रतिशत से अधिक टीचर्स स्कूल आते ही नहीं ,
पांचवीं के 80 फीसदी छात्र दूसरी कक्षा के पाठ सही तरीके से पढ़ नहीं पाते। आठवीं के 70 फीसदी छात्र दूसरी कक्षा के पाठ भी नहीं पढ़ पाते। आंकड़ों के मुताबिक इसकी एक बड़ी वजह यह भी मानी गई है कि इन स्कूलों में करीब 50 फीसदी शिक्षक पढ़ाने ही नहीं आते, रिपोर्ट कहती है सरकारी स्कूल में पांचवी के 80 फीसदी बच्चों को जोड़ना घटाना नहीं आता। बाकि 70 प्रतिशत को अंको की पहचान ही नहीं।
SOURCE : GOOGLE
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