हरियाणा में सरकार विरोधी लहर को भाजपा और आरएसएस ने कैसे संभाला?

Trainee | Wednesday, 09 Oct 2024 05:16:07 PM
Wave of protests in Haryana: BJP-RSS strategy exposed!

जब 130 दिन पहले लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे, तो हरियाणा में भाजपा के खिलाफ जोरदार सत्ता विरोधी अभियान देखने को मिला था। हालांकि, विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सत्ता विरोधी लहर को खारिज कर दिया है। तो अब सवाल यह है कि भाजपा और आरएसएस इतने बड़े सत्ता विरोधी मुद्दे को कैसे संभाल पाए?

जब 4 जून 2024 को लोकसभा के नतीजे आए, तो हरियाणा में भाजपा सरकार के खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर देखने को मिली। जबकि भाजपा की लोकसभा सीटों की संख्या आधी हो गई थी। ऐसे में विधानसभा में भी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहने की संभावना थी। हालांकि, इस नतीजे के 130 दिन बाद विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सभी को चौंका दिया है।

आरएसएस पदाधिकारी 4 महीने पहले ही मैदान में उतर आए
जिस तरह 2023 में मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी मैदान में उतरे, उसी तरह हरियाणा में भी संघ के पदाधिकारियों ने कमान संभाली। जुलाई के मध्य में संघ के पदाधिकारियों ने हरियाणा की कमान संभाली। भाजपा ने संघ के फीडबैक के आधार पर रणनीति तैयार की। कई मौके ऐसे भी आए जब भाजपा संगठन और सरकार में वरिष्ठ लोगों को भी फैसले की जानकारी नहीं मिल पाई। जैसे- नायब सिंह सैनी कहां से चुनाव लड़ेंगे और गोपाल कांडा के खिलाफ भाजपा प्रत्याशी नामांकन वापस लेंगे या नहीं? बताया जाता है कि संघ पदाधिकारियों ने उन क्षेत्रों पर खास ध्यान दिया, जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा परिवार के सीधे गढ़ नहीं थे। जाट बनाम गैर जाट की रणनीति तैयार की आरएसएस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक पहले की तरह संगठन ने हरियाणा में जाट बनाम गैर जाट की रणनीति पर फोकस किया। संघ पदाधिकारियों ने गांव-गांव जाकर मतदाताओं के बीच जाकर प्रचार किया। हरियाणा की राजनीति में 2014 से जाट बनाम गैर जाट वोटों का ट्रेंड रहा है। बताया जाता है कि हरियाणा में 36 बिरादरियों में से जाट एक तरफ हैं, जबकि बाकी 35 बिरादरी दूसरी तरफ हैं। इन 35 बिरादरियों में दलित, अहीर, गुर्जर और ब्राह्मण जैसी बड़ी आबादी भी है। जिसका असर हरियाणा के नतीजों पर भी देखने को मिला। अहीरवाल और गुर्जर क्षेत्र में सत्ता विरोधी लहर के बावजूद भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है।

चुनाव से पहले भाजपा ने ब्राह्मणों को आकर्षित करने के लिए मोहन लाल बडोली को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की घोषणा की थी। यह फैसला भी पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुआ।

वोटरों को लुभाने के लिए खट्टर को किनारे किया गया
हरियाणा में भाजपा के कोर वोटरों में सबसे ज्यादा मनोहर लाल खट्टर से नाराजगी थी। कार्यकर्ताओं का कहना था कि खट्टर किसी की नहीं सुनते। भाजपा ने चुनाव से पहले खट्टर को सीएम की कुर्सी से हटा दिया, लेकिन लोकसभा टिकट बंटवारे में खट्टर का दबदबा कायम रहा।

विधानसभा चुनाव में आरएसएस ने खट्टर के दबदबे को पूरी तरह खत्म कर दिया। खट्टर सिर्फ एक बार कुरुक्षेत्र रैली में प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच पर नजर आए। इसके बाद बड़े नेताओं ने खट्टर के साथ कोई रैली नहीं की। टिकट बंटवारे में भी खट्टर के करीबियों को तरजीह नहीं दी गई।

कांग्रेस गुट वाली सीटों पर फोकस
हरियाणा चुनाव में कांग्रेस तीन गुटों में बंट गई थी। एक गुट भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उदय भान का था। दूसरा गुट कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला का था और तीसरा गुट कैप्टन अजय यादव का था, जिसमें कुछ अहीर और गुर्जर नेता भी शामिल थे। कांग्रेस के टिकट बंटवारे में हुड्डा गुट का दबदबा रहा। इसके बाद कांग्रेस पार्टी में घमासान शुरू हो गया। आरएसएस ने तुरंत इस मौके को भुनाया। संघ ने उन सीटों पर खास ध्यान दिया, जहां कांग्रेस गुटबाजी के कारण फंसी हुई थी।



 


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