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इंटरनेट डेस्क। राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने सहारनपुर के एक सर्राफा व्यवसायी और उनकी पत्नी ने कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या करने को लेकर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस विधायक टीकाराम जूली ने इस संबंध में सोशल मीडिया के माध्यम से बड़ी बात कही है। उन्होंने इस संबंध मेंं मंगलवार को ट्वीट किया कि कर्ज का खूनी चक्र और खरबपतियों की कर्जमाफी। कल खबरों में आया कि सहारनपुर के एक सर्राफा व्यवसायी और उनकी पत्नी ने कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या कर ली। इस आत्महत्या की वजह से एक हँसता-खेलता परिवार उजड़ गया और दो बच्चे अनाथ हो गए।
देश में हर दिन औसतन 19 लोग कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या कर रहे हैं। जबकि करोड़ों आम लोग अपनी इनकम पर टैक्स देते हैं। करोड़ों मध्य वर्ग के लोग, नौकरी पेशा लोग, छोटे व्यवसायी और किसान जब घर की जरूरत की चीजों को खरीदते हैं, तब उस पर भी मोटा जीएसटी देते हैं । मोटरसाइकिल, बच्चों को पढ़ाने, घर में बिटिया की शादी और बड़ी मेडिकल इमरजेंसी जैसी जरूरतों के लिए उन्हें मोटी ईएमआई पर बैंकों या मोटे ब्याज पर निजी साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है। आपकी कर्ज की एक किस्त छूट जाए तो फोन पर, दरवाजे पर वसूली एजेंटनुमा गुंडे भेजे धमकाने चले आते हैं और 2-3 किस्त छूट जाने पर तो घर-जमीन-खेत पर नोटिस लग जाती है। लेकिन आपके ही टैक्स के पैसे से बड़े-बड़े पूँजीपतियों का कर्ज माफ होता है और न तो उनके घर कर्ज वसूली के लिए गुंडे जाते हैं, न ही कोई नोटिस।
पिछले पांच साल में 9.90 लाख करोड़ रुपए के कर्ज को बट्टे खाते में डाला
क्या आपको पता है कि देश के बैंकों ने सिर्फ पिछले पांच साल में 9.90 लाख करोड़ रुपए के कर्ज को बट्टे खाते में डाला। इसमें से मात्र 18 प्रतिशत वापस वसूले जा सके। 81 प्रतिशत से ज्यादा की रकम एक तरह से माफ की जा चुकी है। ये कर्जमाफी उन पूंजीपतियों के लिए थी जिनसे सरकार टैक्स भी कम ले रही है, जिन्हें कर्ज न लौटाने पर थाली में सजाकर कर्जमाफी भी दी जा रही है।
सरकार के चंद उद्योगपति मित्रों के लिए बनाई गई है नीति
भाजपा सरकार की इस अर्थनीति को जरा देखिए, जहां एक तरफ आम लोग, छोटे व्यापारी और किसान टैक्स, महंगाई और कर्ज का दंश झेलते हुए अपना जीवन खत्म करने को मजबूर हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकार के चंद उद्योगपति मित्रों के लिए ऐसी नीति बनाई गई है कि उनका अरबों-खरबों का कर्ज चुटकी बजते ही माफ हो जाता है। न तो कोई वसूली का सिस्टम है, न ही कर्ज लौटाने की जिम्मेदारी। इस दोहरी व्यवस्था में वो आम लोग पिस रहे हैं, जो जरा सा कर्ज न चुका पाने के चलते अपना जीवन खत्म करने को मजबूर हैं। क्या इस अर्थनीति में आप जैसे आम लोगों की कोई परवाह है?
PC:rajasthan.ndtv
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