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श्रीनगर। कश्मीर घाटी में इमारती लकड़ी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए लगभग चार दशक पहले रूसी चिनार के पेड़ लगाए गए थे, लेकिन इन आयातित पेड़ों से रूई जैसे परागकण (पोलेन) झड़ने से निवासियों के लिए स्वास्थ्य जोखिम पैदा हो रहा है।हर साल मई और जून के महीने में खास तौर पर बच्चों और बुजुर्गों में सांस की समस्या के मामलों में काफी बढ़ोतरी होती है।
डॉक्टर हकीम नसीर ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “इस प्रकार के पेड़ यहां लाए गए थे और किसानों को बताया गया था कि यह प्रजाति अधिक उपज देगी और आठ साल में पेड़ बड़े हो जाएंगे, लेकिन अब हम देखते हैं कि ये पराग लगभग दो महीने तक वातावरण में रहते हैं और इसके परिणामस्वरूप गले में संक्रमण, सीने में तकलीफ, आंखों में जलन समेत अन्य ईएनटी (नाक, कान, गला) संबंधी रोग पैदा होते हैं। अस्थमा, राइनोसिनिटिस और एलर्जी से ग्रस्त लोगों को इसका खामियाजा ज्यादा भुगतना पड़ता है।”
हर साल पैदा होने वाले इस खतरे से निपटने के लिए श्रीनगर समेत कई जिलों ने इन रूसी चिनारों को गिराने के आदेश जारी किए थे, लेकिन ये पेड़ अब भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं क्योंकि इनसे लकड़ी उद्योग के लिए कच्चा माल मिलता है।पर्यटकों सहित विभिन्न लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्या से बचने के लिए चेहरे पर मास्क लगाने के लिए कहा जाता है।गौतम नाम के एक पर्यटक ने कहा, “स्थानीय लोगों को मास्क पहने देखने के बाद, मुझे लगा कि वे कोविड-19 के कारण ऐसा कर रहे हैं, लेकिन जब मैंने लोगों से पूछा, तो उन्होंने कहा कि वे हवा में उड़ने वाली चीज के कारण ऐसा करते हैं।”
एक अन्य पर्यटक प्रियंका ने कहा कि पराग के कारण समस्याएं पैदा हो रही हैं क्योंकि इसके कारण बाहर रहना मुश्किल हो जाता है।उन्होंने कहा, “जब हम सड़कों पर खा रहे होते हैं या बात कर रहे होते हैं तो पराग के कारण परेशानी होती है। यह हमारे चेहरे और कपड़ों पर भी चिपक जाता है।”एक स्थानीय किसान मोहम्मद हुसैन ने कहा कि पराग किसान समुदाय के लिए कई समस्याएं पैदा कर रहा है क्योंकि यह फलों और फसलों को प्रभावित करता है।
Pc:Good News Today