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किठेलमंबी (मणिपुर)। सेना ने अंधेरा छाने के साथ ही मणिपुर की राजधानी इंफाल से करीब 40 किलोमीटर दूर घने जंगल से घिरे न्यू किठेलमंबी गांव की धीरे-धीरे घेराबंदी शुरू की और लोगों के घरों पर छापे मारकर हथियार बरामद किए।
सेना और असम राइफल्स के जवान शुक्रवार को इंफाल घाटी के किनारे कांगपोकपी जिले में स्थित गांव में घुसे और हथियारों की तलाश की।सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘पिछले कुछ दिन में हमने देखा कि समुदाय आग्नेयास्त्रों से एक-दूसरे पर हमला कर रहे हैं। कुछ मामलों में लोगों की हत्या की जा रही है...अचानक से हथियारों के आने से पूरी शांति प्रक्रिया में देरी हो रही है।’’इस गांव में अचानक की गई छापेमारी में ‘पीटीआई’ का यह संवाददाता भी सैन्य कर्मियों के साथ गया और इस दौरान वहां से भारी मात्रा में विस्फोटक के साथ
एक एअर गन और कारतूस के खाली पैकेट मिले।राज्य में जातीय हिंसा के कारण कई हिस्सों में सशस्त्र समूह कानून अपने हाथ में ले रहे हैं जिससे शांति प्रक्रिया जटिल हो गयी है। उग्रवादी समूह भी इसमें शामिल हो गए हैं जिससे जातीय तनाव और भी बढ़ गया है।नाम न उजागर करने की शर्त पर सेना के एक अधिकारी ने बताया कि वे अब राज्य में शांति बहाली के लिए खतरा पहुंचा रहे तत्वों को रोकने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।इस महीने की शुरुआत में हिंसा भड़कने के बाद मणिपुर भेजे गए अधिकारी ने कहा, ‘‘भारतीय सेना और असम राइफल्स ने विभिन्न समुदायों के गांवों में अचानक तलाश अभियान चलाने का फैसला किया है। हम किसी एक समुदाय को निशाना नहीं बना रहे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा उद्देश्य पूरे गांव में उस व्यक्ति को रोकना है जो हथियार रखकर अन्य समुदाय को खतरा पहुंचा रहे हैं। हम ऐसे हथियार जब्त कर रहे हैं और उन्हें पकड़ रहे हैं।’’शुक्रवार के अभियान के बारे में उन्होंने बताया कि न्यू किठेलमंबी गांव राष्ट्रीय राजमार्ग-37 से सटा है जो इस वक्त मणिपुर की एकमात्र जीवनरेखा है।उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास खबरें थीं कि गांव में लोगों के पास आग्नेयास्त्र और विस्फोटक हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य राजमार्ग की रक्षा करना है ताकि वहां कोई अप्रिय घटना न हो। करीब 250 ट्रक हर दिन इस सड़क का इस्तेमाल कर रहे हैं और आवश्यक सामान लेकर यहां से गुजरते हैं।’’
सैन्य अधिकारी ने कहा, ‘‘इसलिए हमने अचानक तलाश अभियान चलाया और विस्फोटक तथा एक एअर गन बरामद की। हालांकि, एअर गन गांव के बुजुर्गों को लौटा दी गई क्योंकि इसे बिना लाइसेंस के रखा जा सकता है।’’एक पहाड़ी पर बसे इस गांव का दौरा करते हुए ‘पीटीआई’ संवाददाता ने बंकर और खाइयां देखीं जो विरोधी समुदाय के किसी हमले को रोकने के लिए बनायी गयी।एक महिला ने अपने घर की तलाशी लिए जाने पर आरोप लगाया कि सुरक्षा कर्मी हर दूसरे दिन आते हैं और तलाश अभियान के नाम पर उन्हें प्रताड़ित करते हैं।
बहरहाल, सैन्य अधिकारियों ने इससे इनकार किया है। उन्होंने कहा कि खुफिया सूचना के आधार पर तलाश ली गयी और टुकड़ियों में असम राइफल्स की महिला सैनिक भी थीं ताकि यह सुनिश्चित किया जाए कि जिन महिलाओं के घरों की तलाशी ली जाए, वे सुरक्षित रहे।गौरतलब है कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को कई जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजन किया गया था, जिसके बाद मणिपुर में हिंसक झड़पें हुई थीं।मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेइती समुदाय की है और ये ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। आदिवासी - नगा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है और ये पर्वतीय जिलों में रहते हैं।
मणिपुर में हुए इस जातीय संघर्ष में 70 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी और पूर्वोत्तर राज्य में सामान्य स्थिति की बहाली के लिए लगभग 10,000 सैन्य और अर्ध-सैन्य कर्मियों को तैनात करना पड़ा था।
Pc:TV9 Bharatvarsh