चलो करे , असफलता का अंतिम संस्कार

varsha | Saturday, 03 Jun 2023 12:18:28 PM
Let's do the last rites of failure

जयपुर। जिंदगी में उतार चढाव नियति है। मगर कुछ लोग भ्रमित होते है, कि असफलता ही विराम है जिदंगी का।मगर यह कथन सच नहीं है। सच तो यही है कि बिना असफलता के व्यक्ति को सफलता हासिल नहीं हो पाती। यह कहानी एक ऐसे कर्म योगी की है,जिसने एक बार ही नहीं अनेक बार असफलता जहर पीया।    इसकी परिणीति यह  रही की एक दिन उसने सुसाइड की ठानी। तभी विचार कौंधा, सुसाइड से उसे क्या हासिल होगा। रोटी बिलखती पत्नी और दो छोटे छोटे बच्चे,कौन करेगा उनका पालन पोषण। सवाल चुभने वाले थे।

तनाव की ज्वाला में उस रात...? आसमान में उस रात आशा का चांद भी नजर नहीं आया। शायद मेरी नाकामियों  से रूठा , वो कही चल गया हो। हर तरफ से निराशा, हताश मैं अपनी थड़ी में सिमटा हुआ ग्राहकों को ताकने लगा। मेरा लक्ष यहीं तक सीमित है। दुनिया दारी से मेरा क्या लेना देना। घर में चूल्हा जल जाए बस।रहा सवाल कल की चिंता पर। ऊपर वाला ही कुछ करेगा। गरीबी और तनाव उसी की लीला है। ग्राहकी का जहां तक सवाल है, मेरा क्या बस है उन पर। आज का सच मेरे सामने है, दिनभर के इंतजार के बाद भी,चाय का भगोना ठंडा पड़ा है। केरोसिन के धूवे की जलन।आंसुओं की बहती बूंदे।

मगर यह दुख भी खुश करने वाला था।ग्राहक आए तो पैसा मिलेगा। बच्चों के लिए रोटी।  चाय के लिए दूध और मेरा बीड़ी का बंडल और माचिस। इसके सिवाय और कोई और शोक नही था।मेरा राजा। भूरे रंग का देसी कुत्ता...।उसकी मुराद पूरी होगी। रोटी की आस में पूंछ हिलाता, थक गया है शायद...! मेरे कुछ दोस्त भी है। मुफ्त की चाय पीने वाले। दो दिनों से उनके चेहरे भी दिखाई नहीं दे रहे है। रहा सवाल मेरा। निराशा की धुंध से बचना चाहता है।

यही सोच कर लंबी अंगड़ाई के साथ तपाक से उठा और निकट के छाया दार  नीम के वृक्ष के नीचे खड़ा हो कर, राहगीरों को ताकने लगा। तभी मेरी नजर,चंचल गिलहरी पर पड़ती है। कितनी चंचल है। अजीब सी मोहक आवाज के साथ अपनी दुनिया दारी में व्यस्त है । एक ही लक्ष्य  है उसका। घोंसले में बैठे नवजात बच्चों के लिएं भोजन जो जुटाना उसकी जिम्मेदारी उसका निजी लक्ष है। मगर मेरा मन,नाकामियों से संघर्ष कर रहा है। आंखों के चारों ओर घनघोर अंधेरा है। 

मगर मेरे मन का अंधेरा इससे भी अधिक गहरा चुका है।मेरी तरह रोड पर दौड़ते वाहन शायद थक गए है। नाकामियों ने उन्हें भी थका दिया लगता है। मेरे मार्ग की विफलता,ऐसे लोगों के कंधों पर सवार है।  सच  तो यह है कि कुछ लोग ऐसे भी होते है जो असफलता को लक्ष नहीं मानते। हर क्षण प्रयासों की डगर पर फिर से जोश के बूते पर आगे बढ़ने की कोशिश करते  है। मगर, मुझे अफसोस है। असफलता ने घेरा हुआ है। मैने पूछा,और उसी क्षण फट पड़ा,यह कि मैं थक चुका हूं।

क्यों नहीं समझते मेरे आने वाले सपने। मेरी यादें भी अब मेरा साथ नही देती। मेरे मन की बात, मैं लेखक बनना चाहता था, मगर मुझे वह माहोल मुझे नहीं मिलता।
  फिर...। मन के भीतर का पलट वार। लेखन को माहोल की नहीं,मन की जरूरत होती है। मेरे मन का यह कर्म स्थल । मेरी छोटी सी मेरी चाय की थड़ी। मेरे सुख दुख की साथी। किसी पूंजीपति की बड़ी फैक्ट्री से कम थोड़ी है।मेरे कारोबार में मेरा मन लगने लगा है। बूढ़े पिता और पत्नी का झुंझलाया सा चेहरा अब सुकून देने लगा है। मेरा मन भी उत्साहित है।

मेरे टी स्टाल के सामने से गुजरती सड़क। मेरा मन उछलने लगा है।कभी आसमान की ओर तो कभी उन सड़कों की ओर जो थकने का नाम नही लेती है। मगर यह सोचो तो जरा यह थक जाय तो क्या हो, क्या हो अगर इसके छोर पर बैठी कुछ नई जिंदगी को कोई सकुन दे दे। क्या हो अगर यहां जीवन के ढर्रे को बदलकर, नई ज़िंदगी की ओर उनकी नजरें जाय। क्या हो अगर ये दौड़ती तेज गाडियां थम जाय किसी बेजुबान को देख कर और ना फैले सड़क पर खून उनका। जिनके रहने की जगह छीन ली हमने की वो जो कभी नहीं कह पाते की हमारी जल्दबाजी  किस कदर भारी पड़ती है उन्हे।



 


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