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महाभारत से जुड़े कई पत्रों और उनकी कहानियों के बारे में आपने सुना होगा। आज हम आपको एक ऐसी ही घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जब श्रीकृष्ण ने दुर्योधन द्वारा भोजन के लिए आमंत्रित करने के बावजूद भी भोजन नहीं किया।
श्रीकष्ण पांडवों का संदेश लेकर दुर्योधन के पास जाते हैं। वे चाहते थे कि शांति और समरसता बनी रहे। लेकिन दुर्योधन अपनी ही अकड़ में रहता था। तभी दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को भोजन के लिए आमंत्रित किया। जिसके माध्यम से वह अपनी राजसी शान दिखाना चाहता था।
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया क्योकिं उन्होंने देखा कि दुर्योधन पांडवों के प्रति वैर रखता है। श्रीकृष्ण ने बताया कि अन्न केवल प्रेम या आपत्ति में ग्रहण किया जाना चाहिए। वैर में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।
श्रीकृष्ण ने धर्म का पालन करने की आवश्यकता को दर्शाया और बताया कि पांडव धर्म में स्थित रहते हैं। इसके अलावा श्रीकृष्ण ने दुर्योधन की ईर्ष्या का जिक्र करते हुए कहा कि जो ईर्ष्या रखता है, उसका अन्न कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के राजसी घर से निकल कर विदुर के घर जाने का फैसला किया जो दर्शाता है कि सच्चे मित्र और गुणवान व्यक्ति का अन्न ही महत्वपूर्ण है। इस प्रसंग से श्रीकृष्ण के न्यायप्रिय और धर्मात्मा व्यक्तित्व का परिचय मिलता है।
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