- SHARE
-
टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह हमेशा शांत और विनम्र रहे। उन्हें कंपनी के सबसे छोटे कर्मचारियों से भी लगाव था, उनकी आवश्यकताओं को समझना और हर संभव तरीके से मदद करना उनके लिए महत्वपूर्ण था।
आज जब रतन टाटा को याद किया जा रहा है, तो उनके सरल, ईमानदार और सहज स्वभाव की चर्चा उनकी बड़ी बातें और संपत्ति से कहीं ज्यादा हो रही है। उनके लिए काम का मतलब पूजा था। उन्होंने कहा, "काम तभी अच्छा होगा जब आप उसका सम्मान करेंगे।"
रतन टाटा, जो एक अनुभवी अरबपति थे, अक्सर कहा करते थे कि किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए आप इसे अकेले शुरू कर सकते हैं, लेकिन उसे ऊंचाइयों तक पहुँचाने के लिए लोगों का समर्थन आवश्यक है। हम केवल एक साथ ही आगे बढ़ सकते हैं।
रतन टाटा को जानवरों, खासकर stray dogs से बहुत प्यार था। वे कई NGOs और पशु आश्रय स्थलों को दान देते थे। इसके अलावा, वे वित्तीय संकट का सामना कर रहे छात्रों की मदद में भी आगे रहते थे। उनका ट्रस्ट ऐसे छात्रों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान करता है। ऐसे छात्रों को JN टाटा एनडowment, Sir Ratan Tata Scholarship और Tata Scholarship के माध्यम से सहायता प्रदान की जाती है।
रतन टाटा ने एक सुखद जीवन बिताया, लेकिन उन्हें कई चीजों का शौक था, जैसे कारें, पियानो बजाना और उड़ान भरना। टाटा सन्स से रिटायर होने के बाद उन्होंने कहा, "अब मैं अपने जीवन के बाकी हिस्से में अपने जुनून को आगे बढ़ाना चाहता हूँ। अब मैं पियानो बजाऊँगा और उड़ान भरने का अपना शौक पूरा करूँगा।"
जब देश कोरोनावायरस संकट में था, तो उन्होंने 1500 करोड़ रुपये दान किए। पहले, 2004 में जब सुनामी आई थी, तब समूह की एक कंपनी ने 'सस्ता' जल शुद्धिकरण यंत्र 'सुजल' विकसित किया और इसे हजारों लोगों को मुफ्त में उपलब्ध कराया। इस उत्पाद को टीसीएस द्वारा और विकसित किया गया और 'टाटा स्वच्छ' नाम से लॉन्च किया गया, जो लगभग हर सामान्य आदमी के किचन में जगह बना चुका है।
रतन टाटा को 2000 में 'पद्म भूषण' और 2008 में 'पद्म विभूषण' से नवाजा गया। उन्हें कोर्नेल यूनिवर्सिटी द्वारा 26वां रॉबर्ट एस. पुरस्कार भी मिला। इसके अलावा, दुनिया भर के 15 संस्थानों ने उन्हें इंजीनियरिंग से लेकर व्यवसाय प्रबंधन तक के अध्ययन क्षेत्रों में मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी।
जब टाटा समूह के एक संयंत्र के कर्मचारियों ने गुंडों के डर से काम पर आने से मना कर दिया, तो रतन टाटा खुद वहां आए और कई दिनों तक रहे। एक सच्चे नायक की तरह, उन्होंने उस गुंडे की चुनौती का सामना किया और अपने कर्मचारियों को भयभीत नहीं होने दिया, बल्कि उनका मनोबल बढ़ाते रहे।
वह एक ट्रेंड पायलट भी थे। 2004 में, जब उनके एक कर्मचारी की तबियत बिगड़ गई और उसे तत्काल उपचार की आवश्यकता थी, तो रतन टाटा ने खुद विमान उड़ाने का निर्णय लिया। इससे यह साबित होता है कि उन्होंने अपने कर्मचारियों को परिवार की तरह माना और उनसे सच्चा प्यार किया।