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सुप्रीम कोर्ट ऑन ओवरटाइम अलाउंस: सरकारी कर्मचारियों के ओवरटाइम काम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारी ओवरटाइम वर्क अलाउंस के हकदार नहीं हैं। यह मुआवजा की श्रेणी में नहीं आता है। अदालत ने कहा कि यह देखा गया है कि अनुबंध कर्मचारियों के विपरीत, सरकारी कर्मचारियों को कुछ अन्य विशेषाधिकारों के अलावा वेतन आयोग के संशोधन का लाभ मिलता है।
कोर्ट ने कहा कि ओवरटाइम वर्क अलाउंस क्लेम करना नियमों के मुताबिक नहीं है, इस वजह से इस पर क्लेम नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और उसके कर्मचारियों के बीच ओवरटाइम भत्ते को लेकर दिया है।
ओवरटाइम भत्ते की मांग नहीं कर सकते
न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम और पंकज मित्तल की खंडपीठ ने कहा कि कारखानों और औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के विपरीत, सिविल पदों, राज्य के सिविल और किसी भी सरकारी संस्थान में काम करने वाले कर्मचारियों को नियमों के अनुसार सरकार के नियंत्रण में रहना चाहिए। ये कर्मचारी ओवरटाइम भत्ते की मांग नहीं कर सकते हैं।
ओवरटाइम भत्ते की कोई गुंजाइश नहीं थी
बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस बात पर सहमति जताई थी कि निगम के कर्मचारियों को ओवरटाइम भत्ता भी मिलना चाहिए। खंडपीठ ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया है। सरकारी नियम का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि वास्तव में कर्मचारियों के लिए ओवरटाइम भत्ते के भुगतान की मांग करने की कोई गुंजाइश नहीं थी।
कॉर्पोरेट कर्मचारी और सरकारी कर्मचारी के बीच अंतर
खंडपीठ ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि वैधानिक नियमों का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी लाभ का दावा नहीं किया जा सकता है। दुर्भाग्य से केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण उन नियमों को पूरी तरह से भूल गया। कहा कि कारखाने में रोजगार और सरकारी सेवा में रोजगार में अंतर है। कोर्ट ने कहा कि कॉरपोरेट सेक्टर के कर्मचारी फिजिकल वर्क करते हैं, जिसके लिए उन्हें अलाउंस की जरूरत होती है।