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pc: dainik bhaskar
आपने श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मणि के बारे में तो सुना होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक श्राप के कारण उन्हें 12 साल का वियोग सहना पड़ा था। इसी कथा के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
श्रीकृष्ण दुर्वासा ऋषि को अपना कुलगुरु मानते थे। इसीलिए एक बार भगवान श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मणि दुर्वासा ऋषि के आश्रम पहुंचे। उन्होंने ऋषि से महल आकर भोजन ग्रहण करने और आशीर्वाद देने का आग्रह किया। उन्होंने इस निमंत्रण को स्वीकार तो किया लेकिन एक शर्त रखी कि आप जिस रथ से आए हैं, उस रथ को आप दोनों को ही खींचना होगा।
भगवान ने उनकी शर्त मान ली और घोड़ों की जगह श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी रथ में जुत गए। द्वारका से करीब 23 किमी दूर टुकणी नामक गांव के पास देवी रुक्मणी को बहुत ज्यादा प्यास लगने लगी.उनकी प्यास बुझाने के लिए श्रीकृष्ण ने जमीन पर पैर का अंगूठा मारा, जिस से वहां से गंगाजल निकलने लगा। इस से रुक्मणि और श्रीकृष्ण ने अपनी प्यास बुजगाइ लेकिन दुर्वासा ऋषि से जल के लिए नहीं पूछा। जिस से वे बेहद क्रोधित हुए।
दुर्वासा ने 2 श्राप दिए, जिसके कोप से भगवान भी नहीं बच सके। क्रोध में दुर्वासा ऋषि ने भगवान कृष्ण और देवी रुक्मणी को 12 साल का वियोग का श्राप दिया। दूसरा श्राप दिया कि द्वारका की भूमि का पानी खारा हो जाएगा। इसी वजह से देवी रुक्मणी के भगवान द्वारकाधीश की पटरानी होने के बावजूद भी उनके निवास के लिए अलग से मंदिर बनवाया गया। फिर 12 साल की तपस्या के बाद रुक्मणी वापस द्वारका आईं।
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