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pc: abplive
23 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार 3.0 का पहला बजट पेश किया। कैंसर रोगियों को राहत देने के लिए सरकार ने तीन ज़रूरी कैंसर दवाओं पर सीमा शुल्क समाप्त कर दिया है और एक्स-रे ट्यूब पर शुल्क घटा दिया है। इससे यह सवाल उठता है कि इस फ़ैसले का कैंसर के इलाज की लागत पर क्या असर होगा। देश में कैंसर एक तेज़ी से बढ़ती बीमारी है, हर साल कई लोगों में इसका निदान होता है। उच्च मृत्यु दर का मुख्य कारण महंगा इलाज और देर से पता लगना है।
कैंसर का इलाज महंगा क्यों है?
कैंसर एक जानलेवा बीमारी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की संसदीय समिति की एक रिपोर्ट ने संकेत दिया कि केवल 20% रोगियों के पास ही रेडिएशन थेरेपी की सुविधा है, जबकि WHO प्रति दस लाख लोगों पर एक रेडियोथेरेपी मशीन की सिफारिश करता है। भारत को लगभग 1,300 रेडियोथेरेपी मशीनों की ज़रूरत है, लेकिन हमारे पास केवल 700 के आसपास ही हैं, जिससे बड़ी चुनौतियाँ पैदा होती हैं। इसके अलावा, केवल 250 अस्पताल ही रेडियोथेरेपी की सुविधा दे रहे हैं, जिनमें से 200 निजी हैं, जहाँ इलाज बहुत महंगा है।
भारत में कैंसर के इलाज की लागत
कैंसर का इलाज कैंसर के प्रकार और अवस्था के आधार पर अलग-अलग होता है। औसतन, उपचार की लागत ₹280,000 से लेकर ₹1,050,000 तक होती है। कैंसर के चरण और स्थान के आधार पर लागत में उतार-चढ़ाव हो सकता है। रोबोटिक सर्जरी की लागत लगभग ₹525,000 है। कैंसर की गंभीरता के आधार पर कीमोथेरेपी की लागत लगभग ₹18,000 प्रति सत्र है।
कैंसर की दवाओं और एक्स-रे ट्यूब पर सीमा शुल्क कम करने का सरकार का फैसला कैंसर के इलाज को और अधिक किफायती बनाने की दिशा में एक कदम है।
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