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ईरान अब जो रवैया अपना रहा है, कुछ दशक पहले ऐसा नहीं था। ईरान की इजरायल और अमेरिका से भी अच्छी दोस्ती थी। इतना ही नहीं, एक समय ऐसा भी था जब ईरान यूरोपीय देशों जितना ही उदार और आधुनिक था। लेकिन आज वह कट्टर इस्लामिक देश बन गया है।इस समय पूरी दुनिया की नजर ईरान पर है, क्योंकि हाल ही में ईरान और इजरायल के बीच युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए हैं। इजरायल पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद मध्य पूर्व में तनाव बढ़ गया है। ईरान के हमले के बाद इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने ईरान को इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकी दी है। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई के रवैये से भी पता चलता है कि ईरान अब इजरायल से खुलकर लड़ने को तैयार है। ईरान ने सिर्फ इजरायल ही नहीं बल्कि अमेरिका को भी धमकी दी है। ईरान ने कहा कि यह उसके और इजरायल के बीच युद्ध है और अमेरिका को इससे दूर रहना चाहिए। इतना ही नहीं, एक समय ऐसा भी था जब ईरान यूरोपीय देशों की तरह ही उदार और आधुनिक था। लेकिन आज यह एक कट्टर इस्लामी देश बन गया है, जहां हिजाब न पहनने पर भी सजा दी जाती है।पश्चिमी देशों से कहीं ज़्यादा आधुनिक था ईरान
70 के दशक में ईरान उतना ही आधुनिक था, जितना आज पश्चिमी देश हैं। यहां पश्चिमी सभ्यता का बोलबाला था। लोगों के पहनावे और खान-पान पर कोई पाबंदी नहीं थी। ईरान के इस साहस की वजह वहां के शासक रेजा शाह पहलवी थे। 1936 में पहलवी वंश के रेजा शाह ने हिजाब और बुर्का पर प्रतिबंध लगा दिया था। महिलाओं की आज़ादी के लिहाज़ से यह एक बहुत ही क्रांतिकारी कदम था। उनके बाद उनके बेटे रेजा पहलवी ईरान के शासक बने। लेकिन 1949 में एक नया संविधान लागू हुआ। 1952 में मोहम्मद मोसद्दिक प्रधानमंत्री बने, लेकिन 1953 में उन्हें पद से हटा दिया गया। इसके बाद रेजा पहलवी देश के नेता बने।
रेजा पहलवी के शासनकाल में हिजाब और बुर्का पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन उसके बाद पुरुषों ने महिलाओं को घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने इस नियम में कुछ रियायतें दीं, लेकिन वे पश्चिमी सभ्यता के पक्षधर थे। लेकिन इन सबका नतीजा यह हुआ कि लोग रेजा पहलवी को अमेरिका की 'कठपुतली' कहने लगे। उस समय उनके विरोधी अयातुल्ला रूहोल्लाह खामेनेई थे। 1964 में पहलवी ने खामेनेई को निर्वासित कर दिया।
इस्लामिक क्रांति की शुरुआत
1963 में ईरान के शासक रेजा पहलवी ने श्वेत क्रांति की घोषणा की। यह आर्थिक और सामाजिक सुधारों के लिहाज से एक बड़ी घोषणा थी। लेकिन जैसे-जैसे ईरान को पश्चिमी मूल्यों की ओर ले जाया जा रहा था, जनता ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया।
1973 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिरने लगीं। जिससे ईरान की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी। सितंबर 1978 तक जनता का गुस्सा भड़क उठा था। पहलवी के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। जिसका नेतृत्व मौलवियों ने किया। कहा जाता है कि इन मौलवियों को फ्रांस स्थित अयातुल्ला रूहोल्लाह खामेनेई से निर्देश मिल रहे थे।
कुछ ही महीनों में हालात बिगड़ने लगे। आखिरकार 16 जनवरी 1979 को रेजा पहलवी अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गए। ईरान छोड़ते समय उन्होंने विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया।खामेनेई की ईरान वापसी
शापोर बख्तियार ने खामेनेई को ईरान लौटने की इजाजत दे दी। हालांकि, उन्होंने शर्त रखी कि अगर खामेनेई वापस लौट भी गए तो प्रधानमंत्री सत्ता में बने रहेंगे। फरवरी 1979 में खामेनेई ईरान लौट आए। बख्तियार के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी विरोध प्रदर्शन बंद नहीं हुए। इस बीच खामेनेई ने मेहदी बजरगन को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया। अब देश में दो प्रधानमंत्री हो गए थे। धीरे-धीरे सरकार कमजोर होती जा रही थी। सेना में भी विभाजन हो रहा था। लेकिन धीरे-धीरे सेना से लेकर जनता तक सभी खामेनेई के आगे झुकने लगे।
एक क्रांति ने रातों-रात ईरान को बदल दिया
ईरान के नाम पर मार्च 1979 में जनमत संग्रह हुआ था। जिसमें 98 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों ने ईरान को इस्लामिक गणराज्य बनाने के पक्ष में वोट दिया था। इसके बाद ईरान का नाम 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ ईरान' हो गया।
खामेनेई के सत्ता में आते ही नए संविधान पर काम शुरू हुआ। नया संविधान इस्लाम और शरिया पर आधारित था। विपक्ष ने इसका विरोध किया, लेकिन खामेनेई ने साफ़ कहा कि नई सरकार को 100 प्रतिशत इस्लाम पर आधारित कानून के तहत काम करना होगा। लाखों विरोधों के बावजूद 1979 के अंत में नया संविधान अपनाया गया।
नए संविधान के बाद ईरान में शरिया कानून लागू हुआ। कई तरह की पाबंदियाँ लगाई गईं। महिलाओं की आज़ादी छीन ली गई। अब उन्हें हिजाब और घूंघट पहनना अनिवार्य कर दिया गया। 1995 में एक कानून पारित किया गया, जिसके तहत अधिकारियों को 60 साल तक की उम्र की महिलाओं को बिना हिजाब के घूमते हुए पाए जाने पर जेल भेजने का अधिकार दिया गया। इतना ही नहीं, ईरान में हिजाब न पहनने पर 74 कोड़े से लेकर 16 साल की जेल की सज़ा हो सकती है।
इस कानून ने ईरान को पूरी तरह बदल दिया। 1980 के दशक से पहले ईरान पश्चिमी देशों जितना ही आज़ाद था। महिलाओं को अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आज़ादी थी। वो पुरुषों के साथ घूम सकती थीं। लेकिन इस्लामिक क्रांति ने ईरान को पूरी तरह बदल दिया।