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राष्ट्रीय फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी ने इस साल की शुरुआत में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया कि पिछले दशक में कनाडा में जाने वाले भारतीयों की संख्या 32,828 से बढ़कर 1,49,715 हो गई है। यानी इसमें 326 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कनाडाई विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में भी 5800 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। देश में कुल 8 लाख विदेशी छात्र हैं, जिनमें 40 प्रतिशत भारतीय हैं।
कनाडा में रहने वाले भारतीयों की संख्या से यह स्पष्ट है कि वे वहां की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अंतरराष्ट्रीय छात्र हर साल कनाडा की अर्थव्यवस्था में 22.3 अरब डॉलर का योगदान देते हैं। उल्लेखनीय है कि निजी कॉलेजों में विदेशी छात्रों की फीस कनाडाई छात्रों से पांच गुना अधिक होती है।
कनाडा में विदेशी छात्र वार्षिक 14,306 डॉलर की ट्यूशन फीस अदा करते हैं, जबकि घरेलू छात्र केवल 3,228 डॉलर का भुगतान करते हैं। इसका मतलब है कि भारतीय छात्र कनाडाई कॉलेजों में भारी रकम चुका रहे हैं। कनाडा की पूर्व ऑडिटर जनरल बोनी लिसिक ने भी कहा है कि कनाडा की कॉलेज अर्थव्यवस्था विदेशी छात्रों के फंडिंग पर निर्भर करती है।
यह केवल कॉलेजों और छात्रों की बात नहीं है, बल्कि भारतीय छात्रों का कनाडा की अर्थव्यवस्था में और भी महत्वपूर्ण योगदान है। भारतीय रियल एस्टेट बाजार को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके साथ ही, विदेशी छात्र कई क्षेत्रों में निम्न-भुगतान वाली नौकरियों में काम कर रहे हैं। अगर भारतीय छात्र कनाडा आना बंद कर देते हैं, तो जाहिर है कि श्रमिकों की भारी कमी होगी।
कनाडा में 100 व्यापारियों में से 33 प्रतिशत प्रवासी हैं, जिनमें एक बड़ी संख्या भारतीयों की है। कुल मिलाकर, कनाडा के लिए भारतीयों के बिना कार्य करना बहुत कठिन होगा। चाहे वे छात्र हों, दुकानदार, व्यापारी या सामान्य श्रमिक, हर क्षेत्र में भारत की बड़ी हिस्सेदारी है।
दोनों देशों के संबंधों को देखते हुए यह निश्चित है कि इसका प्रभाव कनाडा में रहने वाले भारतीयों पर जरूर पड़ेगा। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान में पर्यटकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन कनाडा में रहने वाले भारतीयों को सावधान रहने की आवश्यकता है।
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