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जयपुर। यह वाकिया है ढाई साल की बच्ची का। जयपुर से सैकड़ों किलो मीटर दूर से लाई गई थी। केस काफी उलझा हुआ था। पंजाब के भटिंडा शहर से कोई चालीस किलोमीटर दूर छोटी सी ढाणी है। काश्तकार परिवार से है। खाते पीते लोग है , नहरी जमीन होने पर सालभर का अनाज पैदा हो जाता था। मगर इस बात का अफसोस था। उनके संतान नहीं थी। डॉक्टरों के चक्कर लगाए। तब जाकर उसकी घर वाली पेट से हुई।
अर्जुन सिंह और उसकी पत्नी दोनो खुश थे। एक बार को लेकर जिज्ञासा थी कि संतान के रूप में उनके आंगन में लड़का होगा या लड़की। आखिर वह दिन भी आगया जब सुलोचना लेबर रूम में गई। कुछ ही देर में सूचना मिली कि उनके घर में लड़की हुई है। उसने सोचा की चलो यह भी ठीक है। उनकी गृहस्थी में लक्ष्मी हुई। बच्ची का चेकअप हुआ तो अफसोस हुआ उनकी बेटी में बोलने वाली तंत्रिका में कमी है। करीब दो साल बाद उसकी सर्जरी होगी। बस इस नुक्स के अलावा वह कमाल की खूबसूरत थी। मगर एक कलंक साथ जो लाई थी। विपत्ति थी। बर्दास्त तो करनी ही थी। दिन गुजरते गए। साल भर बाद सुलोचना फिर से पेट से हो गई थी।
सोचा इस बार सब ठीक रहेगा। मगर नसीब में जब पत्थर भरा पड़ा हो तो एक के बाद एक परेशानियां....! भद्दी शक्ल वाली नर्स बोली,लड़की हुई है। मगर रोई नहीं। क्या हुआ। कैसे हुआ। कुछ भी कहने सुनने की हालत में नहीं थी। जो हुआ, नसीब का खेल समझ कर मुसीबत से लड़ने की ठान ली। मयूरी नाम रखा था। फिर थी कुछ ऐसी ही। मोटी मोटी आँखें। बड़ी सुंदर सी ऊपर से जरा उठी हुई नाक थी। एक बात का डर था कही मयूरी मंद बुद्धि तो नहीं थी। बस बस। शुभ शुभ । ऐसी कोई बात नही थी। डॉक्टर ने बताया की ऐसे केश ठीक भी हो सकते है। मगर इसके लिए ऑपरेशन की आवश्कता पड़ेगी। मैं तैयार था। सुलोचना तो यह खबर सुन कर बावली सी मोरनी की तरह नाचने लगी।
दो साल गुजर गए मयूरी बड़ी होने लगी। सामान्य बच्चों की तरह ग्रोथ ले रही थी। ऑपरेशन तो होना ही था। पैसों की व्यवस्था करनी शुरू करदी। तभी होली पर्व के दो दिन बाद से ही,वह पेट दर्द की शिकायत होने लगी थी। पहले सोचा बच्ची है। खाने पीने में गड़बड़ हो गई होगी। गुस्सा आया तो सुलोचना की क्लास लेली। खैर छोड़ो। बेकार की बातों में उलझना नादानी थी। भटिंडा में इलाज की व्यवस्था कमजोर थी। सोचा जालंधर ले जाया जाय। मगर मंहगा था। तभी एक परिचित से बात हुई। उसी का सुझाव था। जयपुर का जेके लोन हॉस्पिटल बेस्ट है। फिर महंगा भी नहीं है। इस पर देर किस बात की। यहां चले आए। कई तरह के ब्लड टेस्ट हुए।
फिर सोनोग्राफी की रिपोर्ट ठीक नहीं थी। मयूरी के पेट में ट्यूमर बताया गया था। साइज बड़ा था। इसकी पहुंच लीवर पर प्रेशर डाल रही थी। तुरंत ही ऑपरेशन की तारीख मिल गई। छह घंटे तक सर्जरी चली। डॉक्टर खुश थे।हमें बुलाया कि यह देखो ट्यूमर। साढ़े तीन किलो का था। क्या पता,यह बच्ची कैसे झेल रही थी। एक तरह का अचीवमेंट था। समूचे अस्पताल में चर्चा होने लगी। विडियो भी बनाई। मै खुश था। फिर सुलीचना की तो खुशी की सीमा नहीं थी।