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न्यूज टेस्ट। हमारी मासूम बेटी प्रिशा बेहद खूबसूरत है। वह जब भी हमें प्यारी मुस्कान देती है, उसे खुश करने के लिए तरह तरह आवाजें निकालते है। उसके प्यारे प्यारे,गुलाबी होठ खिल उठते है। फिर उसकी चंचलता देखने लायक होती है। अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाती है। मेरे बालों को छूने की कौशिश करती है। उसकी किलकारिया, मेरे मन में गुद गुदी पैदा कर देती है। मेरी लोरियां सुनकर,मेरी गुड़ियां अपनी आंखे मूंद लेती है.........नींद रिया हो। नींद भरी सोजा सोजा लाडली......! बदरवा हो.....। चंदन का पलना हो।आजा री आरी। तु ही मेरे नैनो का तारा,सोजा री मेरी रानी…...! अफसोस ! मगर यह
कब तक। इसकी सीमा अब डराने लगी है। बीमारी की वजह से, उसकी पहले से ही नाजुक पकड़ और भी ढीली होती जा रही है। उसके जीवन को बचने के लिए केवल एक चमत्कार की उम्मीद कर सकता हूं। उसी राह की तलाश है।
मेरी बच्ची प्रिशा अभी तीन महीने की है। लेकिन उसकी मासूमियत संगीन समस्याओं का सामना कर रही है। यहां तक कि बड़े लोगों को भी इससे निपटने में मुश्किल होती है। फिर यह बच्ची.......। उसकी डिलीवरी सामान्य हुई थी। बिना किसी जटिलता से हुई थी। उसके जन्म के दो माह तक वह स्वस्थ बच्ची थी। तभी एक दिन,उसकी आंखों में पीलापन देखा। अचानक उसके शरीर का तापमान बढ़ने लगा। बढ़ता ही गया। जिस डर का अंदेशा था,वह हमे डराने लगा।
हम प्रिशा से पहले एक बच्चे के साथ धन्य थी। लेकिन दुर्भाग्य से हमारी ,बच्ची के जन्म पर हमारी खुशी घंटो तक सीमित रही। एक घातक बीमारी ने हमारी बच्ची को हम से छीन लिया। और अब एक असफल जिगर हमारी प्रिशा के जीवन पर भी दावा करने लगा है। मगर क्यों। आखिर इस बच्ची ने किसी का बिगड़ा क्या है।मेरे अपने अतीत के भूतों को याद करके रो पड़ता हूं। हाय मेरी मजबूरियां मुझे खाए जा रही है। बेबी प्रिशा जीर्ण जिगर की बीमारी से पीड़ित है। उसके बदन की चमड़ी पीली हो गई है। उसका पेट हर गुजरते दिन के साथ तेजी से बढ़ता है। डॉक्टर ने कहा की प्रिशा की जान बच सकती है। मगर फिर से सताती है,मेरी मजबूरियां.....। लीवर ट्रांसप्लांट कोई नई मामूली बात थोड़ी है। इसका खर्च सुन कर मेरी पूरी दुनिया फिर से मुझ कर टूट पड़ी है। मैं साधारण प्राथमिक शिक्षक हूं। मेरा वेतन कम है। मेरी पत्नी एक ग्रहणी है। मगर उसकी काबलियत से हमने कुछ बचत की है। मगर लीवर ट्रांसप्लांट के लिए २८ लाख की आवश्यकता है। कहां से आएगा इतना पैसा। मैं अपने दम पर प्रिशा को नहीं बचा सकता। यदि आपका सहयोग नहीं मिला तो मेरी बच्ची को कौन बचाएगा। उसका ऑपरेशन तुरंत होना जरूरी है। मुझे उसकी मुस्कान की याद सताती है। मेरा एड्रेस प्रिशा कुमारी,आसूबी गुंजन, कुंज की बालक,अपोलो अस्पताल है। मेरी बच्ची को बचाने के लिए इंपैक्ट गुरु संस्था बहुत मदद कर रही है। मगर जयपुर के अंजियों पर बहुत बहुत भरोसा है। देश भर के सेवा भावी कर्मयोगी उसकी मदद कर रहे है। आप भी,थोड़ा बहुत जो भी संभव हो अपना दिल बड़ा करें। आप के आशीर्वाद का इंतजार है।