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जयपुर। किडनी फेलियर के पेसेंट के बारे में अक्सर कहा जाता है की किडनी ट्रांसप्लांट के अलावा उसका और कोई इलाज नहीं है। मगर कई बार हालत इस कदर paichide हो जाते है कि मरीज के मरने या जिंदा घोषिद करने में बड़ी परेशानी हो जाती है। ठीक इसी तरह का एक विचित्र पसेंट यहां के सवाई मानसिंह हॉस्पिटल की नेफ्रो लॉजी विभाग में उपचारित है।
भारी भरकम शरीर वाली यह महिला रोगी भरतपुर की रहने वाली है। इसकी उम्र साठ साल की है। कहा जाता है कि एक साल पहले वह अचानक बेहोश हो गई थी। इस पर परिजन उसे उपचार के लिए भरतपुर ले गए, मगर एक साल के इंतजार के बाद भी जब पेसेंट को होश नही आया तो केस को फरीदाबाद के एक बड़े निजी हॉस्पिटल रेफर कर दिया। जीवन रक्षक मशीन की मदद से जब उपचार के लिए लाया गया था,तब भी वह होश में नहीं थी।
यहां उसका डेलेसिस किया गया तो उसके शरीर में कैरिटन और यूरिया कंट्रोल हो गया। इस पर वहां के नेफ्रोलॉजिस्ट भी हैरान रह गए। उनके सामने एक बड़ी समस्या पेसेंट की बेहोशी बनी रही,इसका कारण नहीं खोजा गया। केस जब काबू में नहीं आया तो उसे दिल्ली के सफदरजंग रेफर कर दिया। यहां के किडनी फेलियर के केस के चिकित्सक से संपर्क किया तो परिजनों को बताया गया कि किडनी फैलियर की पांचवी स्टेज में रोगी के गुर्दे गंभीर रूप से डेमेज हो जाते है।
इस पर रोगी के ब्लड से अपशिष्ट को छानने का काम बंद हो जाता है। अपशिष्ट उत्पाद रक्त में जमा होने पर वे गंभीर स्थिति पैदा कर देते है। ब्लड प्रेसर , एनीमिया की स्थिति पैदा हो जाती है। साथ ही पेसेंट में हड्डी रोग,दिल को बीमारी हाय पोटेशियम,उच्च फास्फोरस और एसिड का भी निर्माण होने लगता है। इस स्थिति में मरीज को कमजोरी थकान, पेसाब, बाहों,हाथों. और पैरों में सूजन, सिर दर्द, पीठ के नीचे के हिस्से में दर्द और मांसपेशियों में ऐठन की समस्या हो जाती है।
भरतपुर की इस महिला रोगी की सिकेडी के कारण का पता लगाने के लिए उसके पेशाब की जांच साथ ही मरीज के शरीर के भीतर की तस्वीरे लेने के लिए इमेजिंग टेस्ट जैसे अल्ट्रासाउंड, सिटी स्कीन या एमआरआई, गुर्दा बायोप्सी के अलावा आनुवंशिक परीक्षण किया जाता है।मरीज की समस्याओं का असर कम करने के लिए दी जाती है। मधुमेह कंट्रोल करने के लिए दवाएं दी जाती है। हड्डियों को करनेके लिए कैल्शियम,फास्फोरस रिथ्रोपोइजिस या आयरन की खुराक दी जाती है।
Pc:VON Radio