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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में CrPC की धारा 197 पर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जो सरकारी कर्मचारियों को उनके आधिकारिक कार्यों के दौरान कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। इस फैसले का उद्देश्य कर्मचारियों को अनावश्यक मुकदमों से बचाना है, हालांकि भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराधों में यह सुरक्षा लागू नहीं होगी।
CrPC की धारा 197 और सरकारी कर्मचारियों की सुरक्षा
न्यायमूर्ति एस.के. कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 197 का उद्देश्य सरकारी सेवकों को उनके आधिकारिक कार्यों के दौरान उत्पीड़न से बचाना है। इसके तहत, किसी सरकारी कर्मचारी पर उसके आधिकारिक कर्तव्यों के दौरान किए गए कथित अपराधों के लिए मुकदमा चलाने से पहले सक्षम प्राधिकारी से अनुमति लेना अनिवार्य है।
दुर्भावनापूर्ण मुकदमों से बचाव, लेकिन गंभीर अपराधों पर नहीं छूट
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यह प्रावधान केवल दुर्भावनापूर्ण मुकदमों से बचाने के लिए है। लेकिन यह भ्रष्टाचार, गबन, और रिकॉर्ड में छेड़छाड़ जैसे अपराधों में शामिल अधिकारियों को किसी भी प्रकार का संरक्षण प्रदान नहीं करेगा।
आधिकारिक कार्य और अपराध के बीच संबंध
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अपराध और सरकारी कर्मचारी के आधिकारिक कर्तव्य के बीच संबंध का प्रारंभिक आकलन किया जाना चाहिए। यदि कथित अपराध सरकारी कर्तव्यों से जुड़ा नहीं है, तो उसे धारा 197 के तहत सुरक्षा नहीं मिलेगी।
भूमि विवाद का मामला और क्लर्क की भूमिका
यह निर्णय राजस्थान निवासी इंद्रा देवी द्वारा दायर अपील के संदर्भ में आया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सरकारी अधिकारियों ने उनके परिवार को बेघर करने के लिए फर्जीवाड़ा किया। अदालत ने पाया कि उच्च अधिकारियों को संरक्षण मिल गया, लेकिन एक क्लर्क, जिसने केवल कागजी कार्य किया था, उसे निचली अदालत से सुरक्षा नहीं मिली।
सुप्रीम कोर्ट ने इस भेदभाव पर नाराजगी जताई और कहा कि सभी स्तर के कर्मचारियों के अधिकारों और सुरक्षा का सम्मान किया जाना चाहिए।