दुखी मां सदा के लिए चली गई....!

varsha | Wednesday, 31 May 2023 10:08:01 AM
Sad mother gone forever....!

जयपुर। मां के प्यार को कोई नहीं जीत सकता।औलाद बेशक उससे नफरत करने लगे, मगर मां के स्नेह और उसकी आंखों से निकले दो आंसू की कोई कीमत नहीं होती। मां है ही ऐसा अनमोल रत्न , सुनो दिल की आवाज कि वो शाम ना आए,जब मां हम से दूर हो जाए। सच पूछो तो इस दुनियां में मां से बड़ा कोई धन नहीं है। जरा भी ओझल हो जाए मैया। मन बेचैन हो उठता है। यह वाकिया एक ऐसी मां का है,जिसके त्याग को उसकी औलाद ने नही समझा, वह जब विदा हुई तो उसके मतलबी पुत्र ने रो रो कर दुनिया उठा मारी। 

इस कहानी की नायिका का नाम सुंदर देवी है। पांच साल पहले पति का साथ छूट था। तसल्ली के नाम पर एक औलाद थी। उसी को पाला पोसा और उसकी शादी की। दिन गुजरते गए तभी एक घटना बिजली की तरह तड़क कर गिरी। शनिवार का दिन था। सांझ ढले दफ्तर से आने वाला उसका पुत्र देर रात तक नहीं आया। चिंतित थी। परेशान थी। एक सवाल मन से था...जिसकी आंखों में कटी थी सदियां,उसने सदियों की जुदाई दीं है। एक एक एक पल भारी होने लगा था।अशुभ खयालों से घेर लिया। ऑफ...! कही कोई अशुभ ना हो जाए। बहु बेटे से नाराज थी। मगर जरा भी आहत होती तो सारे कष्ट भूल जाती।

मगर एक सवाल। मगर नहीं मिला जवाब। बेटे बहु को याद में आंखें नम कर लेती थी।आखिर कहां चले गए। कोई सूचना नही।आखिर क्यों। यह भी नही सोचा।औलाद को खोजने,यह बूढ़ी मां किसका दरवाजा खट खताएगी। आम तौर पर विक्रम संध्या के समय आ जा या करता था। कभी कोई काम होने पर विलंब की सूचना हर हाल में मिल जाती थी। मगर आज...! मन ही मन में अशुभ ख्यालों में डूबी,घर के दरवाजे को घूरे जा रही थी। घड़ी के टिक टिक की आवाज दिल की धड़कनो के साथ खेल कर रही थीं तरह जनबी बनी इसे तोड़ने का प्रयास कर रही थी।

सुंदरी की बैचेनी एक और बड़ा कारण विक्रम का बर्थ डे का भी था। इस मौके पर खीर बनाया करती थी। चावल की खीर में ड्रायफ्रूट और केसर को  पत्ती डाला करती थी। मां की बनाई केसर की खीर उसे बहुत पसंद थी। हमेशा की तरह आज भी खीर बनी थी। साथ में आलू की भाजी और गरमा गर्म पूड़ी। मैया को विश्वास था  कि खीर देख कर विक्की का मूड ठीक हो जायेगा। खीर के अलावा फिर दाल की पकोड़ी, यह बहु  की पसंद थी। विक्की और खीर की रामायण रात बारह बजे तक चलती रही। उसकी यादों का विराम उस वक्त लगा जब दरवाजे पर लगी घंटी बज उठी। तपाक से वह उठी । बिना कोई विलंब के दरवाजा खोला। विक्रम के मुंह से शराब की आते ही वह चौकी। पहले ख्याल आया गाल पर तमाचा जड़ दूं। मगर रुक गई। इस तरह तो  बात और ज्यादा बिगड़ जाएगी।

विक्की के कदम लड़का रहे थे। बदन में फंसा कमीज खोला और उसे  फैंका सोफे पर। फिर बोला,,..इतनी रात हो गई तू सोई नहीं। सुंदरी चुप थी। कुछ देर के बाद,बोली। बहु मान्यता की ओर अपना चेहरा घुमाकर उसे घूरा। फिर बोली,।खाना गर्म करके परोस दो सभी को भूख लग रही होगी। विक्रम का मूड फिर गया था। नशे में गुर्राया ... आप को कहा ना।हमें नहीं खानी आप की बनाई खीर।आप हो क्यो ना खा लेटी थी।सुंदरी भूखी थी, मगर  विक्की के व्यवहार से उसकी भूख गायब हो गई।कांपते हाथो से खीर का बर्तन,रसोई में रखे फ्रीज में रखा। फिर बोली, आज तेरा जन्म दिन है। खीर इसी लिए बनाई थी कि तुझे पसंद है। फिर छोड़ो खीर की बात । तुम दोनों ने खाना बहत खा लिया, यह भी ठीक है। फ्रिज में रखी खीर सुबह तक और भी मजेदार हो जायेगी। 

सुंदरी के हाथ में कोई कागज था। कोई दवा मंगवाई थी। ब्लड प्रेशर की यह दवा वह काफी समय से ले रही थी। विक्रम को याद आया, अरे ...! यही दवा तो पांच दिन पहले ही मां ने मंगाई थी। मगर भूल गया। मां भी क्या सोचती होगी। दवा भी जरूरी थी। एक दिन भी ना लेने पर उसकी तबियत बिगड़ जाया करती थी। विक्की की आंखें नम हो गई थी। मां के कमरे की तरफ तुरंत दौड़ा। सबसे पहले उठने वाली मां को आज ना जाने क्या हो गया। आज क्यू नही उठी। मां की बनाई केसर की खीर उसे बहुत पसंद थी। हमेशा की तरह आज भी खीर बनी थी। साथ में आलू की भाजी और गरमा गर्म पूड़ी। मैया को विश्वास था  कि खीर देख कर विक्की का मूड ठीक हो जायेगा। खीर के अलावा फिर दाल की पकोड़ी, यह बहु की पसंद थी। विक्की और खीर की रामायण रात बारह बजे तक चलती रही। उसकी यादों का विराम उस वक्त लगा जब दरवाजे पर लगी घंटी बज उठी। तपाक से वह उठी । बिना कोई विलंब के दरवाजा खोला। विक्रम के मुंह से शराब की आते ही वह चौकी। पहले ख्याल आया गाल पर तमाचा जड़ दूं। मगर रुक गई। 



 


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