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इंटरनेट डेस्क। राजस्थान की गहलोत सरकार ने प्रदेश के लोगों की सुविधा के लिए आरटीएच बिल विधानसभा में पारित करवाया, लेकिन निजी अस्पताल के डॉक्टर उसके विरोध में उतर गए। पिछले 18 दिनों से डॉक्टरों की यही मांग थी की आरटीएच बिल को वापस लिया जाए। लेकिन सरकार भी इस पर अड़ी थी। आखिरकार आज सुबह सरकार और डॉक्टरों में सुलह हो गई।
हालांकि सरकार ने आरटीएच बिल वापस नहीं लिया है, लेकिन डॉक्टरों के साथ वार्ता में उनकी मांगों को मान लिया गया है। जिसके बाद 8 बिंदुओं पर सहमति बनी है।
ये हैं वो 8 शर्तें
1. 50 बिस्तरों से कम वाले निजी मल्टी स्पेशियलिटी अस्पतालों को आरटीएच से बाहर कर दिया गया है।
2. सभी निजी अस्पतालों की स्थापना सरकार से बिना किसी सुविधा के हुई है और रियायती दर पर बिल्डिंग को भी आरटीएच अधिनियम से बाहर रखा जाएगा।
3. ये अस्पताल आरटीएच के दायरे में आएंगे-
निजी मेडिकल कॉलेज अस्पताल
पीपीपी मोड पर बने अस्पताल
सरकार से मुफ्त या रियायती दरों पर जमीन लेने के बाद स्थापित अस्पताल (प्रति उनके अनुबंध की शर्तें)
अस्पताल ट्रस्टों द्वारा चलाए जाते हैं(भूमि और बिल्डिंग के रूप में सरकार द्वारा वित्तपोषित)
4. राजस्थान के विभिन्न स्थानों पर बने अस्पतालों को कोटा मॉडल के आधार पर नियमित करने पर विचार किया जाएगा
5. आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए पुलिस केस और अन्य मामले वापस लिए जाएंगे
6. अस्पतालों के लिए लाइसेंस और अन्य स्वीकृतियों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम होगा
7. फायर एनओसी हर 5 साल में रीन्यू करवाई जाएगी
8. नियमों में कोई और परिवर्तन हो तो आईएमए के दो प्रतिनिधियों के परामर्श के बाद किया जाएगा।
इसके बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी ट्वीट किया और लिखा की मुझे प्रसन्नता है कि राइट टू हेल्थ पर सरकार व डॉक्टर्स के बीच अंततः सहमति बनी एवं राजस्थान राइट टू हेल्थ लागू करने वाला देश का पहला राज्य बना है। मुझे आशा है कि आगे भी डॉक्टर-पेशेंट रिलेशनशिप पूर्ववत यथावत रहेगी।