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कोर्ट ने 'भंगी', 'नीच', 'भिखारी' और 'मंगनी' जैसे शब्दों को जातिवादी मानने से इनकार करते हुए आरोपों को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट की जोधपुर बेंच ने कहा कि इन शब्दों का इस्तेमाल प्रशासनिक असंतोष व्यक्त करने के लिए किया गया था, न कि जाति आधारित अपमान के उद्देश्य से।
मामला और कोर्ट का निर्णय
यह मामला चार आरोपियों से जुड़ा था, जिन्होंने सरकारी कर्मचारियों पर गलत माप का आरोप लगाते हुए इन शब्दों का प्रयोग किया। कोर्ट ने पाया कि आरोपियों का उद्देश्य जातिवादी टिप्पणी करना नहीं था और न ही उनके पास सरकारी कर्मचारियों की जाति की जानकारी थी।
न्यायमूर्ति बीरेंद्र कुमार ने अपने फैसले में कहा कि एससी/एसटी एक्ट के तहत दोषी ठहराने के लिए यह आवश्यक है कि जाति आधारित अपमान का उद्देश्य स्पष्ट रूप से सिद्ध हो। साथ ही, घटना का सार्वजनिक होना भी एक महत्वपूर्ण कारक है, जिसे इस मामले में साबित नहीं किया जा सका।
बचाव पक्ष का तर्क और कोर्ट की राय
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपियों को कर्मचारियों की जाति की जानकारी नहीं थी और घटना सार्वजनिक रूप से नहीं हुई थी। कोर्ट ने इन दलीलों को मानते हुए आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि केवल अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल को आधार बनाकर एससी/एसटी एक्ट लागू नहीं किया जा सकता।
एससी/एसटी एक्ट की व्याख्या में नया दृष्टिकोण
यह फैसला एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी को दोषी ठहराने के लिए जातिवाद का स्पष्ट और सिद्ध उद्देश्य होना चाहिए। यह निर्णय जातिसूचक शब्दों के संदर्भ में कानून की व्याख्या को नए सिरे से परिभाषित करता है।