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जयपुर। साफ सुथरे जयपुर के लिए यहां चलाए जा रहे अभियान की चाहे जितनी तारीफ की जाय, कम है। मगर इसमें अधूरापन भी है,जिसके लिए नगर वासी काफी समय से प्रयत्नशील है, मगर इस और ना जाने क्यों अनदेखी की जा रही है।
स्वच्छ जयपुर संस्था का कहना है कि यहां के नगर निगम द्वारा शहर भर में घर घर जाकर कचरा उठाने के अभियान को सफल बनाने के लिए अस्सी से अधिक गाडियां और कर्मचारी दिन रात कार्य कर रहे है। अच्छी बात यह है की नगर निगम प्रशासन को इसे लेकर जनसहयोग भी मिलने लगा है। हूपर गाड़ी पर लगी टेप पर बजने वाले गीत कि......गाड़ी वाला आया कचरा उठा के स्वर कानों में पड़ते ही लोग अपने घर के बाहर कचरे की थैली लिए गाड़ी का इंतजार करते है। यही कचरा इन वाहनों कें जरिये शहर के बाहर,निश्चित जगह डाल दिया जाता है। मगर अनेक लोगों ने इसमें कुछ सुधार का आग्रह भी किया जाने लगा है।
अभियान को नया रूप देने के लिए नगर वासियों का जो सुझाव है उसके मुताबिक नगर में सामान्य कचरे के डिस्पोजल के साथ साथ रसायनिक जहर नुमा कचरा बहुत बड़ा टेंशन है। यदि समय रहते इसका निदान नहीं खोजा गया तो इस सरकारी अभियान की हवा निकल जानी तय है। इस बारे में कहा यह जा रहा है कि जयपुर में प्रायः कर दो तरह का कचरा पैदा हो रहा है। इसमें पहला सूखा और गीला कचरा जिसे सामान्य कचरे के तौर पर जाना जाता है। दूसरा केमिकल कचरा, जो की हॉस्पिटल,क्लिनिक,और डायग्नोसिस सेंटर से निकलता है। इस तरह के कचरे को इकठ्ठा करने के लिए जयपुर नगर निगम की विशेष गाड़ी आती है
इन दोनो वैरायटी के अलावा कचरे की एक और किस्म है,जिसकी और किसी का ध्यान नहीं है। खतरनाक तरह के इस कचरे को केमिकल कचरे की संज्ञा दी गई है। इस गंदगी में सीवरेज,गटर लाइन, फैक्ट्रियों से निकला जहर ।
यहां अफसोस इस बात का है की कंपनीक्ट्रोनिक गैजेट्स हमारे जीवन को खुशहाल और सरल बनाने के लिए बना है। मगर शहर वासियों में ज्यादातर को शायद ही पता होगा की इसके वेस्ट में जहरीले पदार्थ होते है। उनका निपटान और punchrkran मानव सहित अन्य जीवजंतुओ के लिए दुःस्वप्न बना हुवा है। समस्या इस बात की हो गई है कि इस तरह का कचरा हमारे जीवन के हर पहलू में प्रवेश कर चुका है। यहां खतरे का संकेत यह है कि जब इन आइटम को हम त्यागते है या अपग्रेड करते है, तो इन गैजेट्स का आखिर होता क्या है। इनके निस्तारण का वैज्ञानिक विधि की जानकारी कम होने पर यह समस्या दिनों दिन विकराल होती जा रही है। इसी का परिणाम है कि अपशिष्ट धारा में विष का प्रभाव है लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इस समस्या के पीछे जो कारण सामने आ रहे है उसमें पहला, देश में इलेक्ट्रोनिक उपकरणों का उपयोगबहुत ज्यादा होने लगा है। देश में ई कचरे के उत्पन्न होने की समस्या अब काबू के बाहर हो चली है। जहां तक सवाल जयपुर का है,यहां भी हर घर में कंप्यूटर हो गए है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में भी कंप्यूटर के कचरे का निस्तारण उचित तरह से नहीं हो रहा है। इसके पीछे कारण, नगर निगम पर मंडराता आर्थिक संकट। वहां की डरावनी व्यवस्था और ताकतवर नौकरनशाही जिसने लोकतांत्रिक व्यवस्था का कचूमर निकाल दिया है।
निगम प्रशासन का कहना है कि सा मान्य कचरे के साथ इसका निपटान होने पर तरह तरह की बीमारियों के फैलने का खतरा बन हो गया है।
पिछले दो दशकों में इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रिक उपकरण का वैश्विक बाजार काफी विकसित हो गया है। जबकि इन उत्पादों का जीवनकाल छोटा और छोटा होता जा रहा है। एक अनुपात विश्व स्तर पर विद्युत उपकरणों की संख्या में वृद्धि जारी रहेगी और माइक्रोप्रोसेसर का उपयोग दैनिक वस्तुओं में बढ़ती संख्या में किया जाएगा।
इस नई तरह के कचरा से निपटने के लिए, विकसित और विकासशील दोनो देशों के निपटान और पुचरक्रण में एक गंभीर चुनौती पेश कर रहा है। कुछ सबसे उन्नत हाई टेक साफ्ट्वर ओर हार्ड वेयर विकसित करने की सुविधाएं होने के बावजूद भारत में री साइक्लिनिंग क्षेत्र को मध्य कालीन कहा जा सकता है। हमारे यहां ई अप शिष्ठ विषेश रूप से कंप्यूटर कचरे की डंपिंग और इन सभी ने ई कचरे के प्रबंधन को पर्यावरण और स्वास्थ्य संबधी चिंता का विषय बना दिया है। पारंपरिक नगरपालिका कचरे की तुलना में, इलिक्ट्रोनिक उत्पादकों के कुछ घटकों में जहरीले पदार्थ होते है। इससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते है। जैसे कि टेलीविजन और कंप्यूटर मोनीटर में आम तौर से सीसा, पारा और केडीमियाम जैसी खतरनाक सामग्री होती है। जबकि निकेल,बेरेलियम, जिंक अक्सर सर्किट बोर्ड में पाए जाते है। इन पदार्थो की मौजूदगी के कारण ई कचरे का पुनःर्च करण और उनका निपटान एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।
शहर की स्वस्थ में कार्य कर रहे लोग कंप्यूटर, मॉनिटर और टेलीविजन के तेजी से बढ़ते उपयोग को संभावित नकरात्मक प्रभाव से अनजान है। जब इन आइटम को लैंड फाइलिंग या भस्मीकरण में रखा जाता है। इस पर ये आईटम हर तरह के जीवों के लिए खतनाक है। क्यों की ई कचरे को लैंड फिल में जब रखा जाता है, तो इससे पर्यावरण को नुकसानदायक होने की संभावना बढ़ जाती है। जिससे कैंसर,विकास मत और तांत्रिक संबधी विकारों का खतरा बढ़ जाता है। बढ़ती ई कचरे की समस्या का एक प्रमुख चालक,अधिकांश एलेट्रिक उत्पादों का छोटा जीवन काल है। कंप्यूटर और सेल फोन के लिए दो साल से कम,विशेष रिपोर्ट में इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ इलेट्रोनिक री सैक्लर्स ने अनुमान लगाया की उपभोक्ता इलेट्रोनॉक्स रिसेकलर्स ने अनुमान लगाया था कि उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स की अनेक श्रेणियों की वर्तमान वृद्धि और प्र चलन दर के साथ,कहीं ना कहीं तीन बिलियन यूनिट के पड़ोस में चार सौ मिलियन यूनिट औसत समाप्त हो जायेगा।