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जयपुर। कोरोना की दूसरी लहर का सामना करने वाले रोगियों को लाइफ में सतर्कता बरतनी जरूरी है, क्योंकि कोरोना के वायरस का असर एक साल तक बना रहता है।
सवाई मानसिंह हॉस्पिटल में हार्ट के रोगों के नई तरह के पेटेंट अपने उपचार के लिए आ रहे है। इस मामले में खतरे की बात यह है कि इन रोगियों में उपचार के बाद दिखाई देने वाले लक्षण ऊपरी तौर पर खत्म हो जाते है। मगर असलियत में ये वायरस मानव शरीर के भीतर के अंगो पर हमले जारी रखता है। इस स्टेज में यदि पेसेंट का तुरंत उपचार ना होने पर रोगी के मरने का खतरा बहुत ज्यादा हो जाता है।
शहर के अनेक कार्डियोलॉजिस्ट बताते है कि कोरोना वायरस दिल टीसू को खराब करने लगता है। इस पर अनेक रोगियों के दिल की मांस पेसियो में सूजन आ जाती है। हार्ट के धडकनों में अनौमिकता आ जाती है। आर्टरीज में खून के थक्के जमना,स्ट्रोक, हार्ट अटैक या हार्ट फेलियर की नौबत आ जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है की यह स्थिति कोरोना वायरस में मौजूद एक खास किस्म के वायरस के चलते हो जाती है।
कार्डियोलॉजिस्ट यह भी कहते है कि कोरोना की मूल स्ट्रेन sars स्ट्रेन कोविड टू के प्रोटीन शरीर के जरूरी तिसूज को नुकसान पहुंचाने लगते है। ये बिलकुल वैसा ही है की जैसा ह्यूमन इम्यूनो डेफीसिशियांसी वायरस एचआईवी और जीका वायरस के संक्रमण के दौरान देखने को मिलते है। जयपुर में इन दिनों करोंना की तीसरी लहर का कोप कम करने जिन वैक्सीन और दवाओं को बनाया जा रहा है, वह भी हार्ट और दूसरे अंगों को होने जा रहे नुकसान को नहीं बचा सकते।
एक रिसर्च ने दिल पर कोरोना वायरस के प्रोटीन के नेगेटिव इफेक्ट को रिवर्स करने केलिए एक ड्रग का नाम सिलेक्सर है। इसे मधुमक्खियों और इंसानों के सेल पर यूज किया गया। ड्रग ने हानिकारक प्रोटिंस में से एक प्रोटीन में से एक प्रोटीन की टेक्सिसिटी को घटाया। इसका नाम nsp६ है।
यहां यह भी पाया गया कि मधुमक्खी के दिल के सेल्स पर कब्जा कर लेता है। इससे ग्लाइकोलाइसिस प्रोसेस शुरु हो जाती है। इसमें सेल्स एनर्जी के लिए फैटी एसिड के बजाय शुगर ग्लूकोस को ग्रहण करने लगते है। यह प्रक्रिया केवल हार्ट फेलिया के दौरान देखने को मिलती हैं। इससे मैटोकॉन्ड को भी नुकसान पहुंचाता है।
कोरोना की एक और दवा टू डिओक्सी टू जी ड्रग का भी उपयोग किया गया। इससे दिल और मातोकांडिया को एनएसपी सिक्स