अनाथ बच्चे: बिना मां के मदर्स डे मनाया

varsha | Tuesday, 23 May 2023 12:06:22 PM
Orphan children: Mother's Day celebrated without mother

जयपुर। कुछ ही दिन गुजरे है, घर घर में मनाया गया था मदर्स डे। मां के प्यार के एक से एक दिलचस्प वा किए देखने को मिले । इसी से जुड़ा था कौशल्या जी का  छोटा सा आश्रम। जिसे उन्होंने अपनी संपत्ति में बिना किसी की मदद के डेवलप किया।

राजस्थान भर के गरीब और अनाथ बच्चों को आवास और भोजन की सुविधाएं उपलब्ध करवाई। तब जरूरतमंद बच्चों को खोजना भी बड़ी समस्या थी। मगर व्यक्ति चाहे तो हर मुसीबत को धाराशाही कर सकता है। यही हुवा। उनके प्रयासों से बच्चे सरकारी पाठशाला में पढ़ने जाने लगे। निशुल्क शिक्षा योजना का लाभ उठाया।
कौशल्या देवी के इस आश्रम का भवन छोटा ही है। भवन के मुख्य गेट से प्रवेश करतें ही ईंटो से बना बड़ा हाल था। रात के समय बच्चे इसी जगह सोया करते थे।

इसी के एक कोने में कोशल्या देवी का तख्ता रखा हुआ था। इसी पर उनका दफ्तर चला करता था। रात्रि में विश्राम के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं थी।पोर्टल ने जब वहां प्रवेश किया तब बच्चों के सुबह के कलेवे की तैयारियां आरंभ कर दी गई थी। छोटी सी प्रे थी। नाश्ते की प्रक्रिया में मुश्किल से पांच मिनट का समय लगा। बाद में पढ़ाई शुरू हो गई थी। अन्य दिनों की तुलना में क्लास में क्लास का माहौल अलग सा था।नन्हे बच्चों के चेहरे  मुरझाए हुए थे। सवाल उठा, नाजुक मन में यहं दुख कैसे अंकुरित हों गया।  बस इसी सवाल का जवाब खोजने की उत्सुकता हमारे मन में जाग उठी।

शाला के बच्चों की छुट्टी में पांच सात मिनट का समय था। हेड साहब से बातचीत का मौका मिल गया था। सादी सी पोशाक, सफेद रंग का कुर्ता और सफेद ही पायजामा। माथे पर तिलक लगा था। आभास होता था स्कूल  में कोई पूजा हुई थी। पीटी के शिक्षक यादव कहते थे। आज मदर्स डे था। सोचा की इन अनाथ बच्चों को मां के प्यार के सुख का आनंद का उपभोग करवाया जाए।बच्चों के इस आश्रम का भवन हरी भरी पहाड़ियों के बीच स्थित था।नंगी चट्टानों पर खड़ी, पीले रंग की पुरानी इमारत में दो दर्जन बच्चे रह रहे है । बाल पन में ही मां से पिछुड़ जाने पर इनके व्यवहार में रूखा पन का अहसास महसूस होने लगा था।

अफसोस इस बात का था कि सुख के अंश से वे अनभिज्ञ थे । इनके मन की पीड़ा को समझने में आश्रम वासियों ने कोई दिलचस्पी नहीं ली।बच्चों के इस आश्रम में आज का दिन बेहद खास था ।  मदर्स डे समारोह के आयोजन की तैयारियां चल रही थी। इस तरह के आयोजन यहां नए नही थे। हर माह कोई ना कोई आयोजन हो ही जाता था। एक तरह से इसने एक  परिपाटी का सा रूप ले  लिया था। शहर के अनेक लोग इस आश्रम में इसी मकसद से आया करते थे की उनके परिजनों को दान का पुण्य लाभ मिल जाय। हंसी खुशी के इस दिन आश्रम में शानदार सजावट हों जाती थी।अनाथ बच्चों के बीच टॉफी बांटी जाती थी।

केक और बेकरी के स्वादिष्ट बिस्किट क्रीम रोल आदि के जरिए बच्चों की किलकारियां देखने को मिल जाती थी। साहबजादो के पुराने खिलौने से भी आनंद की अनुभूति हो ने लगीं थी।आश्रम में कोशल्या दीदी छाई हुई थी। सच पूछो तो इस तरह की संस्थाओं का जन्म आसान बात नहीं थी। मगर कल्याणी का सुख इन लाचार बच्चों की किलकारियां में समाया हु आ था। कोई बच्चा क्या मजाल किंजरा भी बीमार हो जाय। उनकी पीड़ा को कम करने को वह रात रात भर जगा करती थी। शायद इसी के चलते उन्हें दीदी के नाम से संबोधित किया जा रहा था।भीस संस्थान के जन्म और उनके त्याग को लेकर  इस महिला सेविका की छवि बन चुकी थी।

बरसों संतान के सुख से वंचित रहने पर उनकी पुस्तैनी जमीन पर यह आश्रम खोला गया था, इस बात का उन्हे गर्व था। पुरानी पीड़ा इसके आगे कमजोर पड़ गई थी।
आज के इस आयोजन का मकसद  बेशक आश्रम की चार दिवारियो तक सीमित हो। मगर इसका प्यार  बच्चों के चेहरे  पर पूरी तरह पोषित  नही हों  सका था। इसी के चलते रात का खाना  किसी भी बच्चे नही खाया।चॉकलेट और मिठाईयों की ओर देखा तक नहीं था। नए परिधानो को नहीं छुआ । कल्याणी ने इस दुख को भापा था। बच्चों को मनाने के प्रयास किए थे।यह बात अलग थी कि इसमें उसे पूरी सफलता नहीं मिली।

सभी बालकों  को अपने संग सुलाया। देर रात तक लोरियां सुनाती रही।  सारे बच्चें गोलाकार आकृति में राजू को घेरे हुवे बैठे थे। दुबले  पतले कमजोर शरीर वाला यह बच्चा आश्रम में सब से पुराना था। समझदार भी होने पर वहां के बच्चे उसे अपना लीडर मानते थे। छह साल का बच्चा गोलू साल भर पहले ही आश्रम में आया था। भीलवाड़ा में उसका परिवार रहता था। तभी एक सड़क हादसे में उसके मां,बाप,भाई,बहन और बूढ़ी दादी मर  गए। दुर्घटना का बड़ा खौफनाक था। कोई तेज रफ्तार ट्रोला इस परिवार की जीप से, सामने की दिशा से भिड़ गया। कोई भी नहीं बचा। संयोग था की सोनू पानी पीने के लिए एक प्याऊ की ओर चला गया था।

दुर्घटना का चश्मदीन गवाह भी।वही था। एक्सीडेंट के धमाके के साथ ही जीप और ट्रोला के इंजन में आग लग गई थी। छोटू चिल्लाया। मां और बापू को पुकारने लगा। वह सीन आज भी डराने के लिए काफी था। जब भी एक्सीडेंट की बात होती है। रोने पीटने के क्षण भर में ही बेहोश हो जाता है। आश्रम वालों की उस पर नजर पड़ी। शौक ने झुलसे इस बच्चे को आश्रम ले जाया गया था। पांच साल के काले कलूटे बालक की हालत कुछ ज्यादा खराब थी। बालक के बारे में आश्रम के बच्चों ने बताया...। कालू का बाप तो दो साल पहले ही मर गया था। जाने कैसी बीमारी हो गई थी। कालू के परिवार में छह बच्चों के अलावा मां भी थी। कमाई का कोई साधन नही था। परिवार को पालने के लिए दूसरों के खेत में जाकर श्रमिक का काम करती थी। कालू से बात करने की कौशिश की थी,मगर सिसकियों के चलते मन का दर्द चाहकर भी समनें नही आया।

राजकुमार का दर्द लोगों को रुलाने के लिए काफी था। आश्रम के पिछवाड़े कोई गुप्ताजी का मकान था। वहां का बच्चा एक नंबर का शैतान था। उसकी गेंद अक्सर आश्रम के प्ले ग्राउंड में आ जाती थी। तभी उसकी शक्ल दिखाई देती थी। अक्सर एक सवाल सभी आश्रम के बच्चों के दिमाग में घूमता था कि हमारे पापा और मां क्यों नहीं हैं। भाई बहन थे जरूर मगर उन्हें चा चा के घर भिजवा दिया गया था। इसके बाद उनका कोई समाचार नहीं मिला। बच्चों का सवाल ही कुछ ऐसा था। जिसका उत्तर किसी के पास नहीं था। एक बात जरूर पूछी जाती थी कि मर क्यों जाते है मां बाप। और भी कई सारे सवाल बातचीत के समय सामने आए थे। बस किसी तरह इन्हे बहलाकर चुप कर दिया जाता था।



 


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