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समाचार जगत पोर्टल। किडनी फेलियर को साइलेंट किलर माना गया है। एक बार इसकी चपेट में आने परh बड़ी मुश्किल ही मरीज की जान बच पाती है।
यह वाकिया यहां बच्चों के जेके लॉन हॉस्पिटल का है। दस वर्ष के एक बच्चे को उल्टियां होने लगी थी। काफी उपचार के बाद भी उसे कोई राहत नहीं मिली। बाद में उसे वहां के नेफ्रोलॉजी उपचार इकाई में शिफ्ट कर दिया। अनूप नाम का यह बच्चा बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हवा था। उसके पिता विकलांग है। दोनों पावों से लाचार होने पर वह घर पर ही रहा करता है। रहा सवाल घर का खर्च उठाने का, उसकी बीमार मां दूसरे लोगों के खेत में काम किया करती है। बहुत सी बार आटा खरीदने तक के पैसे ना होने पर लोगों के घरों पर जा कर भीख तक मांगनी पड़ जाती थी।अनूप के परिवार में चार सदस्य है। वे दो भाई है। दूसरा वाला भाई उससे साल दो साल बड़ा है।
अनूप का जहां तक सवाल है, वह हंसमुख बच्चा था। पढ़ने लिखने में मीडियम था। मगर स्कूल का मोह बहुत था। क्या मजाल कि कभी स्कूल नहीं जाय,इस तरह के उलाहने की नौबत नहीं आती थी। तभी एक साल पहले वह जब स्कूल से घर लौटा तो उसे तेज बुखार था। उसका बदन तप रहा था। अपना बैग अपने झोपे में फैंका और मां को गोद में लेट गया और रोने लगा। परिजनों ने सोचा कि मौसम के बदलाव के चलते तबियत खराब हो गई होगी। कुछ देर सोलेगा तो तबियत ठीक हो जाएगी मगर सांझ तक उसकी तबीयत में और अधिक गिरावट आगई। बुखार के साथ साथ उसे उल्टियां भी होने लगी। बस्ती में कोई ठेला छाप डॉक्टर की क्लिनिक थी। वहीं उसे दिखाया। ना जाने कौन कौन से इंजेक्शन लगा दिए। रियेक्सन होने पर वह अचेत हो गया। लोगों की सलाह पर उसे तुरंत ही जेके लॉन हॉस्पिटल ले जाया गया। बच्चा सीरियस होने पर उसे जनरल इंडोर वार्ड में भर्ती कर लिया। सोनोग्राफी हुई तो पता चला कि अनूप की दोनों किडनियां खराब हो चुकी है। शुरू में उसे डेलेसिस पर रखा गया था।उसे आराम मिला। मगर यह आराम स्थाई नही था। धीरे धीरे इसका ड्यूरेशन घट गया। अंत में,जब उससे हमारी मुला काट हुई तो उसके बाएं हाथ में काफी ज्यादा सूजन थी।
दो दिन बाद उसके पांव की उंगलियां भी सूज गई। तेज दर्द भी था। बालक की हालत देखी नहीं जा रही थी। समूचे बदन तक दर्द बढ़ जाने पर,वह कभी लेटने का प्रयास करता था,मगर दूसरे ही क्षण फिर से बैठने की कौसिस नाकाम हो रही थी। ड्यूटी डॉक्टर से बात हुई तो वह बोला यह केश किडनी ट्रांसप्लांट का है। मगर किडनी देने वाला कोई भी नही है। सोचो जरा इस तरह बच्चे की जान कैसे बच पाएगी। अनूप ने खाना पीना कई दिनों से छोड़ रखा है। नींद ना आने पर पूरी रात कर्रहता रहता है। वार्ड की हालत खराब है। केवल पांच बच्चे ही बिस्तर पर थे। डॉक्टर्स की हड़ताल के चलते ज्यादातर मरीज अपने घर लोट चुके थे। अनूप केवल डेलेसिस के लिए ही यहां हॉस्पिटल आया करता था गांव से जेकेलोन अपडाउन कर रहा था। अनूप मरना नहीं चाहता था। मगर जिंदगी खोफ खा कर।भाग रही थी।
चिकित्सक बताने लगे कि अनूप की किडनियां पूरी तरह डेमेज होने पर,केवल एक ही विकल्प था कि किडनी ट्रांसप्लांट किया जाय। रहा सवाल किडनी डोनर का। घर में कोई भी तैयार नहीं था। अनूप के बैड के निकट बेंच पर बैठी,देहाती ओढ़नी ओढ़े उसकी मां से सवाल किया,आप क्यू नहीं डोनेट कर देती अपनी किडनी। मेरे सवाल के बाद कुछ देर तक वह चुप रही, मुझे घूरती रही। मुंह बिगाड़ कर बोली , नहीं दे सकती। फिर से सवाल ... । वह चुप ही रही। डॉक्टर कहने लगे इस बच्चे की किडनी ट्रांसप्लांट का सारा खर्च सरकार उठाएगी। इसकी प्रक्रिया की जा चुकी है। मगर किडनी तो मरीज के परिजनों को ही करनी होगी। सच पूछो तो निकट के परिजनों को ही कुछ करना होगा। किडनी ट्रांसप्लांट का दस लाख का खर्च चिरिंजीवी से मिल रहा हो। वह भी कोई कम नहीं है। किडनी को लेकर रस्सा कस्सी के बीच
शनिवार की रात अनूप को एका एक सांस में तकलीफ होने लगी। ड्यूटी डॉक्टर ना होने पर बच्चे को वेंटिलेटर की सुविधा नहीं मिल सकी। कुछ देर तड़फने के बादउसने दम तोड़ दिया। हॉस्पिटल में अफरा तफरी मच गई। अनूप जिंदा था या मर चुका था, इस बारे में वार्ड के दूसरे पसेंट के परिजन भी कुछ भी नही कह सके। मगर आसीयू में लेजाने के कोई पांच मिनट के बाद इस बच्चे की लाश बाहर निकली गई। अनूप की मां रो रही थी। किडनी नहीं देने के सवाल पर,वह मुंह बंद किए रही।l