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जयपुर। जयपुर में वाहनों की भीड़ को काबू करने के लिए शहर में ई रिक्शा सेवा को शुरुवात की थी। इसका असर भी हुआ। लोगों को सस्ती और सुलभ सवारी मिलने लगी। मगर प्रशासन की जल्दबाजी योजना में घुन्न की तरह साबित हो गई।
यह काम योजना बद्ध रूप से ना होने पर,जयपुर वासियों के जी का जंजाल बन गया है। हालत इस कदर बन गई है की बिना लाइसेंस,फिटनेस और परमिट के आभाव के चलते इन रिक्शों ने सब गुड गोबर कर दिया। सब से बुरा हाल पुलिस प्रशासन का हुआ। जयपुर का ट्रैफिक सिस्टम हाफ ने लगा। उनके प्रयास गर्त में चले गए।प्रशासन के सूत्र बताते है कि इस योजना को शुरू करने केलिए उन्हे उम्मीद थी की इस योजना से बेरोजगारों को कम लगे में ही रोजगार मिलेगा।
हजारों बेरोजगार युवक इससे जुड़े। यह बात यहां तक तो ठीक थी। मगर जल्दबाजी के चलते जयपुर की चार दिवारी और बाहरी कॉलोनियों की सड़क पर इनकी भीड़ लग गई। एक और शहर में भीड़ पहले से ही काफी अधिक थी। ऊपर से ई रिक्शों ने यातायात व्यस्था को चो पाट कर डाला। चार दिवारी की सड़कों पर तो चारों ओर ई रिक्से ही ई रिक्शो की भीड़ ने सारे सिस्टम की बखिया उधेड़ डाली है।प्रशासन की माने तो इनका कहना है कि ट्रैफिक जाम की बीमारी से निपटने के लिए ई रिक्शों केलिए लेन सिस्टम शुरू किया जाना था। लेकिन ये चालक अपने पुराने ढर्रे पर ही चलते रहे।
एक तो इनकी रफ्तार धीमी है। दूसरा ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन होने लगा है। इन चालकों ने रोड के बीच ही सवारियों को उतारना और चढ़ना शुरू कर दिया।पुलिस ने जब समझाईस का प्रयास किया तो यूनियन बाजी शुरू हो गई। इनके बीच झगड़े भी बढ़ गए।हाल ही में पुलिस प्रशासन ने इन रिक्सा धारियो की शिविरों का आयोजन शुरू करने का प्लान बनाया।हो सकता है कि इससे इस समस्या का कुछ हद तक समाधान हो जाए।मगर इस बीमारी की जड़ें कैंसर की तरह फेल गई। जिससे निपटने केलिए जन सहयोग भी अपेक्षित देगा।