old age home: अकेली बूढी मां हूं, बेटों ने घर से बाहर कर दिया,अब चिराग खोजती हूं....!

varsha | Wednesday, 17 May 2023 10:07:24 AM
I am a lonely old mother, sons have thrown me out of the house, now I search for a lamp....!

जयपुर। कभी वृद्धआश्रम में जाना हुवा है? नहीं गए तो जाना भी मत। दिल रो देगा। नींद नहीं आयेगी। अपने आप में इस कदर तूफान। ईमान,धर्म और इंसानिया की छत गंजी हो चली है। छप्पर ढकने वाला तो दो साल पहले ही मर गया था। आज की औलाद....! रोको नहीं मुझे। दिल भरा पड़ा है। आंसुओं की बाढ़ है बहने दो इसे। अब तो रोने पर ही आराम मिलता है।

शाहिद नगर की डेजी रानी मेरे सामने है। झुर्रियों से भरा चहरा डराता है, मुझे। गुलाबी हाथ काले पड़ गए है। ढीली चमड़ी में आंखों का upla हिस्सा। जी हां आप लोग जिसे पलक के नाम से जानते है। पहले की तरह, ना काजल है और ना ही माथे पर चंदन की मट मैली सी। आदत सी पड़ गई थी।  पहले पूजा ठाकुर जी की, फिर नंद लाल की प्रसादी। मन खुश होजाया करता था। मथुरा से आई यह मैया। जिंदगी के अस्सी साल पर कर चुकी है। अब इच्छा नहीं जीने की। पास ही बिछी, मुंझ वाली चार पाई पर, दो दिन पहले ही ठुकराईन मरी है। अच्छे परिवार से थी। कोठी, गाड़ी और सबसे बड़ी पौता और पोती। बच्चों में मन लगता बहुत है। पर बहु चुडैल सी आ गई। छोरो को छीन लिया। भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

इसी की परिणीति थी। दिन भर पड़ी रही लाश। अपने बच्चों का इंतजार करती रही। सांझ ढले ,यहां की औरतें ही बात बनाने लगी....बदबू आने लगी है। पूरी रात तो किसी भी हालत में भी नहीं निकल पायेगी। बेटों का इंतजार आखिर कब तक। बिगड़ी औलाद के मां है। स्वर्ग धाम में इंतजार है। बस कुछ ही देर बाद,श्रंगार किया। ठुकराइन थी तो सुंदर। मौत आई और सारे दुखड़े साथ ही ले गई। ठुकराईन का समान थोड़ा बहुत। कांसी की थाली और कटोरी। पानी का गिलास तो बड़ी हिफाजित के साथ ही रखती थी। अर्थी पर बांध डाली। कई बरस पुराना,चमकीला लाल रंग का रेशमी लहंगा। बताती किसी को नहीं थी। कोई कुछ कहती तो नाराज हो जाया करती थी। अब......! क्या किया जाय इसका। आश्रम के स्टोर में समेट कर रख दी।

ठुकराईंन की अर्थी को सुलगानी,बहुत औरते आई थी। ठाकुर परिवार बहुत बड़ा था। राजपूती लाल रंग चुनरी का साफा। वाह क्या बात....! एक बात बताना भूल गई। समाज में थू थू ना हो जाए। दो पुपाड़ी वाले और एक ढोल बजाने वाली ना यन पूरे ठुसके के साथ आई थी। दो खानदानी रोने वालियों को भी न्योता दिया था। सबसे बड़ी बात.. दोनो छोरों की गंज खोपड़ी दूर से ही दिखाई देती थी। लाश उठाते समय,अर्थी की फेरी,आश्रम में घुमाई गई। कहते है इससे आत्मा अर्थी संग ही चली जाती है। टोटका है। जो भी होता हो करलें सब। ठुकराईं कौन सी बार बार आनी है। मगर एक सवाल, जब जिंदा थी तब आया कोई मिलने...! बेटा बहु और छोरियां। हमें तो दिखाई नहीं दी। ठुकराइन की बात है। अब हमारा....! क्या होगा हमारा। मेरी औलाद तो इससे भी बुरी है। मुझे खांसी थी। ठुकराईन की लाश के पास पूरी रात बैठी थी।

 मुझे बुरा लगा। फिर सोचा,आज की दुनियां की हवा ही ऐसी है। मुझे चाहिए भी क्या था। दो वक्त की दो रोटी और डाल। मगर उसका भी सराहा नही रहा। बहु अपनी पर आ गई। रोटी मिलेगी एक दिन पुरानी। दिनेश ने समझा ने की कौशिश की। बस उसी पर टूट पड़ी। कहने लगी....क्या हो गया एक दिन पुरानी चपाती डाल दी। मर थोडे हिं जायेगी। रसोई में बचा कूचा भोजन घर की औरतों को ही खाना पड़ता है। हमारे रिवाज अलग थोड़े ही है।बात रोटी की नहीं छोटी छोटी बात पर झगड़ा। बस उस दिन तो हद ही हो गई। चाय का गिलास ही तो टूटा था। दिनेश और उसकी बहू ने पहले तो मेरी चुटिया खींची। दिनेश ने भी नहीं बचाया। मुझे जीप में डाला गया। फिर मेरा सामान। राम आश्रम में छोड़ आए। मैं रोई। कई दिनों तक रोटी रही। फिर आदत सी पड़ गई। और सुनो। मेरे पलंग से दो छोड़ कर बूढ़ी ठुकराईन के साथ तो क्या कुछ नहीं हुआ।

रजवाड़े के समय की पुरानी हवेली। सारे ठाठ बाट। उसकी बहू तो और भी खतरनाक निकली। अपने आदमी को साथ लेकर इसी राम आश्रम में छोड़ गई। समान में दो वक्त की कुर्ती कांचली। पुराने फ्रेम का चश्मा। हवाई चप्पल और पुराने कपड़ों की गठड़ी। ठुकराईन को जाने क्या हुआ। रात में आराम से रोटी खाई। सुबह तो मरी मिली। बन्ना को सूचना दे दी गई थी। मगर कोई रिस्पोंस नहीं। इंतजार करते रहे। शाम तक शव में बदबू सी आने लगी।हिंदू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार होते है। इसने मौत के बाद किए जाने वाले आखरी रस्म रिवाज को अंतिम संस्कार कहा जाता है। हिंदू धर्म में यह भी बताया गया है कि रात के समय स्वर्ग के दरवाजे बंद हों जाते है और नर्क के द्वार खुल जाते है। मृतक की आत्मा को नर्क की यातना भोगनी पड़ती है।

जब तक शव का अंतिम संस्कार नहीं हो जाता,आत्मा शव के आस पास ही घूमती रहती है। रात में दाह संस्कार करने पर अगले जन्म में व्यक्ति के अंग में दोष हो सकता हैं।आमतौर पर महिलाएं शव को मुखाग्नि नहीं देती। इसके पीछे कहा जाता है  महिलाएं पराया धन होती है । ठुकरैन की मौत के बाद सारी बातों की जानकारी मिली। वरना सारे रिवाज सुने सुनाए चलते रहे है।टूकरायन के रिवाज तो और भी सख्त होते है। शव का शानदार श्रंगार किया जाता है। लाल रंग का मखमली लंहगा,ओढ़नी लहराए की। जुड़ा चोटी।   शव यात्रा के समय ढोल वाला और उसके साथ पीपड़ी बाज। नायन को भी न्योता जाता है। इसके अलावा एक और बात। किराए पर रोने वालियों को बुलाया जाता है।

ठुकराइन के मामले में भी सारे रिवाज किए गए। ऐसे मौके पर पूरा गांव पंच पटेल रिश्तेदार और सगे संबंधी। सारे इक्ट्ठे होते है। जरा भी चूक हों जाने पर पूरी जागीरदारी में बदनामी होती है। मैं खुद हैरान थी। मेरी औलाद कुछ करनी धारणी नही। पूरे दिन इसी तरह की चर्चाएं होती रही। मेरी मौत कब होगी। संस्कारों का क्या होगा। बस यही सोचती रही।
 



 


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