History of Jaipur: कभी चीतों से खुले में खेला करते थे जयपुर वासी

varsha | Tuesday, 16 May 2023 11:03:21 AM
History of Jaipur: Jaipur residents used to play with cheetahs in the open

जयपुर। चीतों का नाम सामने आते ही, लोगों की हालत खराब हो जाती है मगर विश्वास नहीं होगा आप को सच यह है की यहां के मौहल्लों में एक समय खूंखार चीते आम नागरिकों के बीच खुले में घूमा करते थे। कहा जाता है कि एक समय तक जयपुर में चीतों का एपीसेंटर हुआ करता था। इसकी पुरानी हवेलियां और ट्रेनरों की वर्तमान पीढ़ी अभी तक मौजूद है। हल्के पीले रंग की इस हवेली में प्रवेश करते ही,चीतों को रखने का बड़ा सा बाड़ा बना हुआ है।

इन बड़ों में एक साथ चार चीतों को बांधा जा सकता है। पुराने किस्सो में यह भी कहा गया हैं की पिंजरे में बंधे चीतों के पीने के पानी के कुंड आज भी यथावत हालत में रखे हुवे है। पास में पालतू हाथियों के अलावा चीतों की कोठियां बनी हुई है।अकबर नामा में बताया गया है कि मुगल बादशाह अकबर के समय उनकी सेना में चीतों को एक बड़ी फौज हुआ करती थी। दरअसल इन चीतों के माध्यम से सम्राट और अन्य लोग शिकार किया करते थे। इसके लिए इन चीतों को प्रशिक्षित किया जाता था। इतना ही नही जयपुर के निकट सांगानेर के जंगलों में बादशाह खुद अक्सर शिकार केलिए आया करते थे। इन चीतों की मदद से हिरणों का शिकार किया करते थे।

चीतों का जयपुर का कनेक्सन सिर्फ सांगानेर के जंगल तक सीमित नहीं था। यहां की वाल्ड सिटी में चीतो के ट्रेनर वाजिद खां जो की अफगानिस्तान के रहने वाले थे,इनका निवास स्थान देखा जा सकता ही।सवाई माधो सिंह द्वितीय के शासनकाल के समय 1914 में चीता जयपुर के आसपास से गायब हो गया था। इस पर माधो सिंह ने हैदराबाद के निजाम को पत्र लिख कर कुछ चीते भेजें जाने का आग्रह किया था। इस पर निजाम हैदराबाद ने इस पत्र के जवाब में जयपुर नरेश को बताया कि हमारे यहां भी चीते नही है। इसके बाद आठ चीते  नामोनिया से लाए गए। तभी इंग्लैंड से दो और चीते जयपुर  में लाए गए है।इनमें एक चीता पांच साल के बाद ही मर गया था।दूसरा चीता 1931 तक जीवित रहा। तब यह। चीता जयपुर की शान हुआ करता था।



 


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