घर में सब है,लेकिन हम अनाथ हो गए

Preeti Sharma | Tuesday, 04 Apr 2023 12:28:54 PM
Everyone is at home, but we have become orphans

जयपुर। जयपुर में अनेक संस्थाएं और अंजियों है,जो समाज के पिछड़े और असहाय लोगों के लिए काम कर रही है। इन्ही में एक है को मदर टेरेसा होम,जिसका कोई मुकाबला नहीं है।इन मगर इनमे मदर टेरेसा होम ने संक्रमण के शिकार परिवार के मासूम बच्चों के उत्थान के लिए सराहनिय काम किया है । साफ सुथरा माहौल और शिक्षा का दीप जला कर इन बच्चों उज्वल भविष्य के प्रयास किए है। संस्था में कहने को साठ से अधिक लोग रह रहे है,जिनमें एक तेरह साल की एक बच्ची से मुलाकात होती है।


बच्ची का नाम आसिया है। गहरे नीले रंग की घुटनों तक लंबी फ्राक पहने संकोच के साथ,हम से कोई पांच फुट की दूरी पर खड़ी है।
अपनी अम्मी और बाबा को लेकर बताती है, मेरी मां बहुत सुंदर थी। हमें दूध और भात अपने हाथों से खिलाया करती थी। मेरे हाथ मुंह साफ करके,कमरे के भीतर,चार पाई पर सुलादीया करती थी। मां को कभी भी आराम करते नहीं देखा था। हर वक्त काम ही काम.....! मेरे अब्बा,इसके एक दम उलट। गंदा काम किया करते थे।इसी के चलते वे एड्स के शिकार हो गए थे। यही बीमारी मेरी मां को भी हो गई। पास में पैसा ना होने पर मां ने दम तोड़ दिया। फिर कुछ दिनों के बाद अब्बा भी मर गए। देखते ही मेरी छोटी बहन और भाई ने भी दम तोड़ दिया। मैं अकेली रह गई। तब मेरी उम्र पांच साल की ही थी। अनाथ होने पर मेरे चाचा चाची का बरताव बदल गया। परिवार से अलग, घर की अंधेरी कोठरी में मुझे डाल दिया । मुझे लेकर अक्सर कहा करती थी.....! इसके माई बाप मर गए। मगर यह नहीं मरी। मर जाती तो पीछा छूट जाता। बिना मतलब मुझे गालियां पड़ती थी। खाने के लिए कागज की थाली में दो रुखी चपातियां डाल दिया करती थी। एड्स के शक में मेरा स्कूल छूट गया। हर वक्त कमरे में रहना होता था। क्या करती दिन भर रोया करती थी। कोई भी मुझसे बात नहीं किया करते थे। पास की ढाणी से भोपा को बुलाया जाता था। मेरी मौत का कोई ना कोई टोटका करवाया जाता था। मगर मैं ढीठ थी। मरने का नाम नहीं लेती थी। तभी मुझे कोई संस्था के अनाथ आश्रम में डाल दिया गया। कक्षा आठ पास करने मुझे टरेसा होम में डाल दिया गया। मेरे ही जैसे गरीब लोग थे। कुछ को खतरनाक बीमारियां थी। मगर सभी का उपचार चल रहा था। मेरी सोच थी की एड्स के मरीज जिंदा नहीं रहते थे। संस्था में एक बूढ़े से डॉक्टर आया करते थे। जब भी वे आश्रम में आते थे,हमें साफ सुथरे कपड़ों में। मुंह हाथ धोकर रहना होता था। मैं सुंदर थी। डॉक्टर प्यार करता था। कहता था कि एड्स का मतलब मौत नहीं होता। मैं जो भी दवाएं दू,पूरी जिम्मेदारी से लेना। 


एड्स के रोगियों के लिए अलग कमरा था। एक दम साफ सुथरा। हमारा रूटीन था। दिन में दो बार, फिनेल का पोछा लगाना होता था।
हमारी अम्मा साथ इंडियन थी।हिंदी में बोलने में उनहे परेशानी होती थी। मगर इस पर भी उनके प्यार में कोई कमी नहीं रहती थी। हमारे बीच बैठ कर हमारे साथ भोजन किया करती थी। हमें ताज्जुब होता था,हमारी बीमारी खतरनाक थी,फिर भी....! अम्मा बताया करती थी, एड्स छूत का रोग नहीं होता। इन बच्चों को भी प्यार की जरूरत है। मैं उनके पास जाती और उनकी गोद में सो जाया करती थी। और फिर वे प्यार से,अपनी उंगलियों से मेरे बालों को सहलाया करती थी। कोई कहता की अनाथ छोरी है। मनहूस कही की। उनकी बातों का कोई असर नहीं होता था। मैं मुस्करा कर,उनकी बातों को अनसुना कर देती थी। मैं हंसा करती थी।उनकी बातों को अनसुना करदेती थी।



 


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