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समाचार जगत पोर्टल डेस्क। नन्हे मुन्ने बच्चों की दुनिया अलग होती है। अपनी मर्जी के मालिक होते है। जो सोचा सो सोच लिया। उनके जिद के आगे कई बार मम्मी पापा की भी नहीं चलती। मगर उनका यह खेल खतरनाक साबित हो सकता है। उनके अपहरण के केश चिंता जताने के लिए काफी है। यह वाकिया दो छोटे बच्चों का है। तानिया की उम्र तीन साल है। उसका भाई शाही पांच साल का है। पिछले रविवार को सुबह के आठ बजे है।
मैडम नूरिया घर की रसोई में व्यस्त है।इनके साहब का कबाड़ी का बिजनेस है। ऐसे में वहां जल्द ही जाना होता है। इस करोबार में परेशानी इस बात की है कि ग्राहक सुबह भोर होते ही गोदाम पर आना शुरू कर देते है। किसी को लोहे की एंगल चाहिए तो कोई पुराने बाई बायने या फिर कोई पुराना फर्नीचर की तलाश में आ जाता है। गोदाम बंद होने पर ग्राहकी मारे जाने का खतरा रहता है।
भाईजान की बेगम और उनके बीच कहासुनी का टॉपिक अक्सर यही होता है। आज भी यही हुवा। टॉफी की जिद को लेकर वे अम्मीजान के पास गए थे। मगर डांट खाकर घर के बाहर बैठ गए। टॉफी की जिद सताने लगी तो बस निकल गए घर से बाहर।
चलते गए चलते गए। कुछ दूरी पर सिंधी काका की दुकान पर गए। टाफी मांगी। बूढ़े काका ने फटकार लगाई..... हराम कहीं के। पैसे पास में है नहीं, चले आए टाफी खाने। भागो यहां से। पहले पैसे लाओ,फिर बात करो टाफी की। मुसीबत में फंस गए दोनों बच्चे एक दूसरे की शक्ल ताकने लगे। काका पर गुस्सा तो था,मगर करते भी क्या। कुछ देर दुकान के बाहर खड़े रहे फिर मुंह बना कर चलते रहे। भटकते भटकते अनजान दिसा की ओर चलते गए। घाट गेट के बाहर,भारी वाहनों के बीच ......खतरा तो था मगर वे अनभिज्ञ जो थे। घुटने खतरा जो रहता था। वक्त पर खाना जो मिल जाय,अच्छी बीबी की तरह देशी घी के चार पराठे पैक कर दिए थे। तभी दो ग्राहक घर पर ही आ गए। उनके साथ बातचीत में बच्चो का ध्यान नहीं रहा।
टॉफी टॉफी करते दोनों भाई बहन रोड पर अकेले ही निकल गए । नंगे पांव। तानिया फ्रॉक पहने हुए थी। नीले कलर की। पीछे के बटन खुले हुए थे। काले रंग के,बिना कंघी किए,अजीब से लग रहे थे। पावों में चैपल नहीं थी। बड़ा भाई साहिल कौन सा कम था। बदन पर सफेद रंग का सैंडो बनियान। घुटने तक की कच्छी। ढीला नाड़ा। एक हाथ कच्छी को पकड़े हुए था तो दूसरा हाथ तानिया को पकड़े हुवे था। एक ही धुन सवार थी। टॉफी चाहिए। कुछ दूरी पर बूढ़े सिंधी को किराना की दुकान थी। इसी के काउंटर पर जांच की बरनी में सस्ती सी मीठी गोलिया थी। वहीं जाकर ,तुतली सी आवाज में। टॉफी..... टॉफी।
काका की उम्र ज्यादा होने पर ऊंचा सुनता था। झल्ला कर बोला..... क्या चाइए। पहले पैसा। फिर हंसने लगा,मुंह के आगे वाले दो टूटे डांट और इनके बाहर निकलती सांप जैसी जीभ। मुंह से सरकती लार। फिर हंसा,फिर हंस कर कहने लगा, नहीं लाए पैसे। नहीं मिलेगी टॉफी। पापा जी का मॉल थोड़ी है। काका की बात सुन कर दोनों बच्चे वहीं जाम हो कर एक दूसरे की ओर ताकने लगे। टॉफी नहीं मिली तो आगे की ओर चल दिए। अनजान सफर। ना जाने क्या सूझा,आगे बढ़ते रहे। घाट गेट के बाहर व्यस्त रोड पर,गाड़ी यो से किसी तरह बचते करते,अजमेरी गेट की दिशा में बढ़ने लगे। कुछ लोगों की नजर पड़ी। रोकने की कोशिश की मगर नहीं रुके । मम्मी मम्मी पुकार कर रोने लगे। तानिया के पांव में कोई पैना कंकर घुस गया। खून निकलने लगा। साहिल घबरा गया ।
वह भी रोने लगा। तभी पुलिस की गाड़ी की नजर पड़ी। लेडी पुलिस तपाक से गाड़ी से उतरी। बगल में घुसेठ कर जीभ में जा चढ़ी।
थाने पहुंच कर,बच्चों को पुचकार कर चुप जाने कौसिस की। पानी पिलाया,पर्स में रखी तोफिर पर प्रेशर डाला तभी तानिया के रोने की आवाज सुनाई दी। रोड की सतह पर पड़ा नुकीला पत्थर,मुलायम पांव में घुस गया। ब्लड निकलने। साहिल भी रोने लगा। चांस था। गैस्टी पुलिस की गाड़ी निकली । जीप रुकी तो लेडी पुलिस गाड़ी की पिछली सीट से नीचे कूदी।
दोनों बच्चों को हाथो में समेट कर फिर से गाड़ी में जा घुसी। दोनों बच्चे प्यासे थे। होटों पर सुखी पापड़ी जम गई थी।इसके बाद अपने से टॉफी निकाल कर दी। कांस्टेबल ने धमकाया तो जोर जोर से मम्मी मम्मी पुकारने लगी। मम्मी का नाम पूछा,तानिया चुप रही। था। कांस्टेबल के निकट गया और प्यारी सी गाली सरका दी। नन्ही सी मुट्ठी का वार सुन कर कांस्टेबल हंसने लगी। रोते रोते दोनो बच्चों को नींद आ गई। दूसरी ओर उसका भाई निकट ही खड़ा था। जोर से चिल्ला कर प्यारी सी गाली सरका दी। हॉल में बैठा स्टाफ हंसने लगा। इस बीच थाना इंचार्ज का फोन आया। लेडी कॉस्टेबल को कहा की बच्चों के पापा मम्मी का फोन उनके मोबाइल पर आया था। सब काम छोड़ो,मम्मी पापा पुकार रहे हैं, छोड़ आओ वहां पर। दोनों बच्चे परेशान थे।। मां को देख कर,लिपट कर रोने लगे।