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समाचार जगत पोर्टल डेस्क। सेंट्रल जेल का नाम सामने आने पर,एक अजीब सी सिरहन महसूस होती है। वह कुछ इस तरह की जिसे देख कर जेल सुप्रीडेंट तक हैरान होकर अपना सिर पीट लेते है। यह घटना हाजीपुर की जेल का है। एक खतरनाक कैदी जो कई दिनों सी बीमार चल रहा था, उसकी आकस्मिक मौत हो गई।आम तौर पर इस तरह के मामलो में बीमार को जेल के चिकित्सक को दिखाया जाता है।
जरूरत होने पर सक्षम हॉस्पिटल में भर्ती करवा कर,उसके ठीक होने के प्रयास किए जाते है। कोई तीस साल के इस कैदी तेज बुखार की परेशानी थी। जेल का चिकित्सक कहने को उसका उपचार कर रहा था,मगर इसकी बीमारी को वह दूर नहीं कर सका। यह मामला ज्यादा पेचीदा ना बन जाय, इसके लिए जेल के अधीक्षक को एक अर्जेंट लेटर लिख दिया। मगर दुर्भाग्य की बात यह थी कि जेलर साहब खुद बीमार चल रहे थे। पिछले सात दिनों से वहां का सीनियर स्टाफ जेल की सारी व्यवस्था देख रहा था। इसे लापरवाही कहा जाय या फिर काम का बोझ। फिर को कुछ हु वा कि जेलर साहब का पसीना निकाल दिया। यहां बड़ी समस्या यह थी की शनिवार की रात इस कैदी की हालत बहुत अधिक बढ़ गई। सीरियस हालत में,जिस तरह हॉस्पिटल पहुंचाया गया,इस पर खासा विवाद होगया।
सच पूछो तो यहां प्रशासन से चूक हो गई। जो कैदी पिछले एक माह से लगातार बीमार चार रहा था,उसकी हेल्प का प्रॉपर फॉलोअप होना चाहिए था। जो किसी कारण नही हो पाया और जेल की बैरक में ही उसने दम तोड़डिया। कहते है की दोपहर कोई दो बजे,का समय था। एका एक उसे उल्टियां होने लगी थी। बैरख के साथी कैदी ने जेल प्रहरी को इसकी सूचना दी। इसके बाद जेल प्रशासन को विधिवत अवगत करवा दिया। जेल के डिप्टी सुप्रीडेंट ने भी चुस्ती दिखाई,मगर दुर्भाग्य यह रहा की राजकिशोर अचेत हो गया था और सांस लेने में परेशानी व्यक्त करने लगा था। वहां के चिकित्सक ने उसे चेकअप किया।
तभी उसे पसीने आने लगे। ललाट से पसीने की बूंद झलक ने लगी। घबराहट होने लगी थी। सूखे पत्ते सा कांपने लगा था। पता रहे कि जेल में यदि किसी कैदी की मौत होजाय तो तूफान खड़ा हो जाता है। तरह तरह की जांचें होने लग जाती है। जेल प्रभारी का कैरियर खराब हो जाता है। राम किशोर का केश इसी दिशा की ओर बढ़ रहा था । जेल में सजा काट रहे दूसरे कैदियों को इस मामले की जानकारी ना हो जाए , इस पर उसकी लाश को जैल की डिस्पेंसरी के स्टोर रूम में लॉकअप कर दिया। जेल प्रशासन के बीच रात भर खुसर फुसर चलती रहीकि इस आफत से कैसे निपटा जाए।
सुबह की किरणें खुलते ही जेल की विशेष गाड़ी को बुलवाया गया। स्टोर में रखी हाथ कड़ी को बाहर निकाला गया। उसके नंबर रिकार्ड में दर्ज किए गए। रामकिशोर की बीमारी की डिटेल खानापूर्ति के लिए रिकॉर्ड किया गया। यहां इस बात का खास ध्यान रखा गया था की राम किशोर मर चुका था। मगर जेल के रिकार्ड में उसे जिंदा ही बताया गया। हॉस्पिटल की इमरजेंसी में ड्यूटी के डॉक्टर ने उसे रिसीव डेथ बता कर लाश को पोस्मार्टम के लिए भिजवा दिया। कहा गया है कि अपराधी चाहे जितना शातिर हो, कोई ना कोई चूक कर ही देता है। राम किशोर के कैश में यही हुवा। पोस्टमार्टम में पेसेंट की मौत का जो समय बताया गया था ,उसके अनुसार रामकिशोर की डेथ जेल में ही , बैरक में हो गई थी। सवाल उठा कि जब कैदी मर चुका था,इस पर भी उसे हथकड़ी क्यों पहनाई गई। जांच चल रही है,ना जाने कितने खुलासे होने को है।