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समाचार जगत पोर्टल डेस्क। घाटगेट इलाके की बात की जाय तो ढेर सारी समस्याएं गिना दी जाएगी। मगर इसका मतलब यह भी नहीं कि वहां भले और अनुकरणीय लोगों की किल्लत हो। यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है, जिसने लोगों की पुरानी सौच बदल डाली। पिछले रविवार की बात है। मैं किसी परिचित से मिलने घाटगेट की ओर का रहा था।
तभी लुहारो के खुर्रे पर चढ़ते ही कुछ सब्जी बेचने वाले ठेला धारियों की कतार दिखाई दी। मेरा मन किया घर के लिए कुछ सब्जियां खरीद लू। यही विचार कर एक ठेले पर जा कर खड़ा हो गया। वहां ठेला तो मौजूद था,मगर सब्जी विक्रेता दिखाई नहीं दिया। कई देर इंतजार किया,वह जब नहीं मिला तो मैं वापस लौटने को हुआ तो ठेले के कोने पर लगे बोर्ड पर गई। बोर्ड पर सूचना लिखी हुई थी। जिसमे लोगों से विनती की गई थी कि मेरे जितने भी ग्राहक आए है,अगर किसी को सब्जी लेनी हो उसके दाम इस पर्ची पर लिखे हुए है। आप अपनी जरूरत की सब्जी तोल ले और उसका भुगतान इस बोर्ड के सामने वाली जगह रख दें।
दरअसल मेरे पिताजी बहुत बीमार है। उनके देखभाल करने के लिए मेरे।अलावा कोई और नहीं है। मुझे उनको संभालने के लिए बार बार घर जाना पड़ता है। मेरे पिता की हालत भूत ही ज्यादा खराब हो चुकी है,मैं नहीं चाहता कि मेरी गैर मौजूदगी उनको कुछ हो जाए। इसलिए आप आओ और सब्जी ले जाओ। इस पर आप पैसे देदो या नहीं । इस बात में कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर कभी दे देना। मुझे हैरानी हुई कि आज के जमाने में कोई इतना भरोसा कैसे कर सकता है। मुझे देर हो रही थी। मैने सब्जी ली और चला गया। जब पैसे रखने लगा तो देखा की सच में लोग पैसे तो रख देते है,इस पर मेने भी इसका अनुकरण किया और आगे बढ़ गया।
एक दिन इसी तरह मैं ऑफिस से घर जा रहा था तो उसी ठेले पर सब्जी बेचने वाला दिखाई दिया। मेरे मन में कौतुक जगा कि क्यों ना इस अजीब सख्स से बात की जाय। मैने उससे सवाल किया जी तुम अपना यह ठेला किसके भरोसे छोड़ जाते हो। तुम्हें टेंशन नहीं होती कि कोई सक्स सब्जी खरीद कर पैसा नहीं देगा तो तुम्हारा घर खर्च किस तरह चलेगा इस पर सब्जी बेचने वाला बोला कि नहीं साहब मेरे माता पिता दोनो भगवान पर बहुत भरोसा करते है और मैं अपने माता पिता पर।
आप जैसा सवाल मैंने भी इनसे किया था। मगर उनका कहना था कि सच्चे मन से भगवान पर भरोसा करो। तुझे कभी भी धोखे का शिकार नहीं होना पड़ेगा। तब से में आज भी यहीं करता हूं। मुझे कभी कोई शिकायत नहीं होती। मेरी बात पर भरोसा ना हो तो एक और घटना मेरे साथ घटी। मेरे एक मित्र का बड़ा ही अजीब स्वभाव था। हर बात पर वह यही कहता था कि यह सब कैसे हुवा। वह काफी सोचता। सोचते सोचते वह डिप्रेशन में चला गया।