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समाचार जगत पोर्टल डेस्क।दोस्तों मेरा नाम है पंकज नीर। मैं आज मोटिवेसनल स्पीकर हूं। इसके अलावा ब्लॉक राइटर के रूप में अपना कैरियर बनाया। मेरा पास्ट बहुत ही संघर्षमय रहा। मगर मैंने मुसीबतों से दोस्ती की। आज मेरी लाइफ सफलता की लीक बन गई है। मैं अपनी खुशियों का दीवाना बन गया। एक समय तक मुझे परेशानी दुखी करती थी। मुझे लगता था कि मेरा परिचय कभी भी प्रेरणादायक नहीं रह पाएगा। मगर मेरी कौशिशे हर किसी का दिल बहलाने के लिए पर्याप्त होगी। मेरी कहानी जमीन से जुड़ी थी।
मेरा जन्म बिहार के एक छोटे से गांव 7के गरीब परिवार में हुवा था। हमारा परिवार बहुत बड़ा था। मेरे पापा दो भाई थे। दोनों के बहु बेटों और बेटियों को मिला कर करीब 22 लोगों का परिवार था। मेरे बड़े पापा के पास पक्की नौकरी नहीं थी। मगर उनका अपने परिवार से कोई लेना देना नहीं था। परिवार की सारी जिम्मेदारी अपने छोटे भाई को सौंप रखी थी। इसी के चलते किसी तरह हमारा गुजरा हो रहा था।तभी एक दिन मुसीबत सिर पर आ पड़ी। सेठ ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया। कारण यही बताया था कि आज के समय में लोग टीवी में ज्यादा दिलचस्पी रखने लगे है। सिनेमा हाल के बिजनेस के पीछे परिवार को नहीं पाला जा सकता।
बड़ी मेहनत के बाद भी खर्चा नहीं निकल पाता है। इस पर और कुछ करना ही होगा। पापा की नौकरी छूट जाने पर घर का बजट लड़खड़ा गया। बच्चों की पढ़ाई दूर की बात थी। घर का राशन जुटाना मुश्किल हो गया था।मेरी उम्र अधिक नहीं थी। तीसरी क्लास में पढ़ रहा था। परिवार की मदद के लिए,चाय की एक स्टाल पर ग्राहकों के झूठे बर्तन साफ करने लगा। दूसरे बच्चों की तरह मेरा भी मन करता था कि मेरे पास भी खिलौने हो। मैं बस सोचता रहता था कि ऐसा क्या किया जाय कि मेरे पास रहने को अच्छा घर हो।
गाड़ी हो।पहनने को खूब सारी पोशाक हो। मगर कैसे ।मेरे सपने उस वक्त धराशाही हो जाते जब मैं दिन भर की मेहनत के बाद हरा थका घर में घुसता था। इधर पापा खुद तनाव में रहने लगे। रोजाना शराब पीकर घर में मारपीट करने लगे। उधर परिवार के दूसरे सदस्य भी बदलने लगे। परिवार के माहोल के चलते मैं खुद डिप्रेशन में आगया। मेरे सपने धरा शाही होने लगे । कई बार तो लगता था कि ईमानदारी क्या रखा है। अपराध की दुनियां में उसके पास ज्यादा खुशियां होंगी। अपने दुख दूर कर सकूंगा। बचपन से ही मुझे अकेलापन भाने लगा। सिवाय किताबों और ईश्वर की भक्ति में राहत महसूस करने लगा था।
मेरे परिवार में एक नई बीमारी ने मेरी परेशानी और बढ़ा दी। घर के कुछ सदस्यों ने संपत्ति में बंटवारे की मांग की। इस बात को लेकर आपस में मारपीट तो आम बात हो गई। आखिरकार पंचों की मदद से संपत्ति का जब बंटवारा हुवा,तब जाकर यह महाभारत थमी। बटवारे के बाद हमारी आर्थिक हालत और ज्यादा खराब हो गई। पापा के पास बचत के नाम पर कुछ भी नहीं था। जमीन जायदाद भी नाम की थी। किताब कॉपी के लिए जब भी मैं पापा के पास जाता था तो वे इसे टाल दिया करते थे। घर के हालत कुछ ऐसे बन गए थे की अब मैं अपनी शिक्षा जारी नहीं कर सकूंगा। मगर मैं दिमाग से तेज था। हर बार पूरी क्लास में फर्स्ट आया करता था। मेरे शिक्षक कहा करते थे की यह लड़का एक दिन जरूर वैज्ञानिक बनेगा।
तभी पापा ने सिनेमा घर में साइकल स्टैंड का ठेका ले लिया। उनकी मदद के लिए घर के खर्च में सहयोग करने लगा। मगर मेरे दिमाग में तो पढ़ाई का भूत सवार था। जब भी कोई अच्छी किताब मिलती तो बहुत चाव से उसे पढ़ा करता था। सोलह साल की उम्र में अपने परिवार के साथ समाज और देश के बारे में भी दिलचस्पी रखने लगा। मेरे संपर्क बढ़ने लगे। उच्च विचार वाले जीनियस लोगों की संगत से काफी कुछ सीखा। इन्हीं दिनों पापा का साइकल स्टैंड का काम बंद हो गया। सच यह था कि पापा पुराने विचारों के थे। उनका मानना था कि हमारी किस्मत में गरीबी लिखी है। किस्मत के आगे कुछ भी नही हो सकता। मगर मैं आज के समय के मुताबिक जीना चाहता था। इसी से मुझे सफलता का मार्ग मिला। अपने आप को और अपनी खूबियों से मुझे समाज में सम्मान मिला।