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समाचार जगत पोर्टल। अजीबो गरीब घटनाए आपने कई सारी देखी होंगी, मगर यहां आप मात खा जाओगे।आपको विश्वास नहीं होगा की ऐसा भी कुछ हो सकता है।
यह स्टोरी एक सीनियर चिकित्सक के परिवार की है। जब तक वह जिंदा रहे किसी बात की चिंता नहीं थी। पैसा ही पैसा था। घर में दो दो गाड़ियां । नौकर चाकर। संतान के तौर पर एक बेटा और एक बेटी। खूबसूरत और
पढ़ीलिखी बीबी। मगर कहते है ना,वक्त जब करवट बदलता है तो व्यक्ति को अपनी औकात का पता चलता है। डॉक्टर बाबू के साथ भी कुछ ऐसा ही हुवा। उनमें अहंकार कूट कूट कर भरा हुवा था। दूसरी कमी इस बात को लेकर थी की हर किसी को वे संदेह की नजर से देखा करते थे। यही कारण था की वे अपनी कमाई कहां छिपाए रहते थे । किन जगह इन्वेस्टमेंट किया करते थे कि इस बात का पता इनकी बीबी और बच्चों में किसी को नहीं था।मगर एक बात अच्छी यह थी की परिवार में किसे कितनी आवश्कता है,उसका पूरा ध्यान रखा करते था। इस मामले में उनका हाथ खुला रहा करता था। किसी को भी शिकायत का मौका नहीं होने देते थे। तभी उनपर वज्रपात हुवा और कार्डिक अरेस्ट से चल बसे। पति के वियोग में पत्नी ने भी दम तोड़ दिया। पीछे से उनके पुत्र और पुत्री अकेला जीवन व्यतीत करते रहे। दोनो का रुझान पढ़ाई लिखाई में रहा करता था।इस पर बेटी ने पीएचडी की और इसके बाद कंपीटेटिव परीक्षा की तैयारियां करने लगी। बेटा बारह क्वास पास था। उसका भी दुनिया दारी से कोई लेना देना नही था ।बस हर वक्त अपने कमरे में बंद। उनके व्यवहार को देख कर उनके रिश्तेदार और परिचितों ने आना जाना बंद कर दिया। अकेली जिंदगी के बीस साल गुजर गए। इस बीच किसी सक्स ने मनुख्ता दी सेवा नामक एनजीओ को इसकी जान कारी दी। संस्था के लोग डॉक्टर साहब के बंगले गए। वहां का नजारा देख कर हैरान रह गए। कोठी का बाग बगीचा जंगल में बदल गया था। घर के तमाम दरवाजे और खीड़कियां सायद ही कभी खुली होंगी। मकड़ी के जाल के अलावा घोषले दुनियां भर के हो गए। कोठी के बैक में सर्वेंट क्वार्टर था जहां कोई नेपाली परिवार रहता था। बहुत ही वृद्ध था। कहिए यह की हाड़ का कंकाल। ना सुनाई देता था। नहीं ही दिखाई देता था। छोटी छोटी गोल गोल आंखे , कुछ ऐसी की गोरखे की जैसी।चहरे की झुर्रियां काफी नीचे लटक चुकी थी। नाक तो कोरी हाजरी दे रहा था। बदन पर सफेद रंग की पुरानी धोती,नंगे पन को ढक रही थी। नेपाली हिंदी समझता नहीं था। पहाड़ी भाषा बोला करता था। जो हमारी समझ के बाहर था। ऐसे में इशारों से ही काम चलाना पड़ा।
नेपाली से ज्यादा कुछ जानकारी नहीं मिली। किसी तरह कोठी का पिछवाड़ा वाला दरवाजा कूटते रहे। कोई जवाब नहीं। क्या माजरा है। हम बुदबुदा कर एक दूसरे का चेहरा देखते रहे। सस्पेंस और बेबसी का सा। तभी परमेश्वर की कृपा हो गई। किसी के पदचाप की हल्की सी आहट महसूस हुई। हम अलर्ट हो गए। चर चू की आवाज के साथ लकड़ी का गेट खुला। फिर हमारे सामने था बड़ा ही विचित्र जीव। सिर के उलझे हुवे लंबे बाल। दाढ़ी सीने से भी नीचे लटक रही थी। मोटी मोटी आँखें। गीद से भरी गहरे लाल रंग की। ना कोई हाव भाव। मानो मूरत हो। कुछ तो रिस्पॉन्स करता। बिना कुछ बोले घूरता रहा। कमरे के भीतर बड़ी गंदी बदबू आ रही थी। फर्श पर काफी पुराना खाना बिखरा पड़ा था। ब्रेड के टुकड़े और बदबू दार सब्जी। गंध बर्दास्त नही हुई। उल्टी सी आने लगी। एक खयाल आया....... हे मेरे प्रभु यह कैसी तेरी माया। बस खयालों में......।
अपनों ने ऐसा ठुकराया कि जिंदगी के बीस साल एक कमरे में गुजार दिए,खाने पीने के नाम पर कुछ मिल जाय तो ठीक नहीं तो जूठन या कचरा खा कर जीवन गुजार दिया। ये दुखभरी कहानी एक भाई बहन की है,जो डॉक्टर पिता की मौत के बाद से एक ही कमरे में बंद रहे। मानसिक रूप से बीमार इन भाई बहन की सुध लेने उनका कोई भी रिश्तेदार इतना समय गुजरने के बाद भी इनके पास नहीं पहुंचा।
लुधियाना की संस्था मनुखता दी सेवा ने बोह निवासी भाई बहन को घर से रेस्क्यू किया। वे डिग्री धारक जानवरों से भी बदतर। नरकीय जिंदगी जी रहे थे। वहीं अंबाला शहर के जोगीवाड़ा से भी एक व्यक्ति को रेस्क्यू किया गया है। वह मानसिक रूप से मंद है। उसकी मदद करने वाला भी कोई नहीं है। इसकी मदद वंदेबीस साल से घर में बंद थे भाई बहन,जी रहे थे नरकीय जीवन
इन्हें अपनों ने ऐसे ठुकराया कि जिंदगी के बीस साल एक कमरे में गुजार दिए,खाने पीने के नाम पर कुछ मिल जाय तो ठीक नहीं तो जूठन या कचरा खा कर जीवन गुजार दिया। ये दुखभरी जिंदगी गुजरने के बाद भी इनके पास सिवाय अभाव और बदनसीब।
लुधियाना की संस्था मनुखता दी सेवा ने बोह निवासी भाई बहन को घर से रेस्क्यू किया। लगा मानो वे मानसिक रूप से मंद है। उसकी मदद करने वाला भी कोई नहीं है। इसकी मदद वंदे मातरम दल के कार्यकर्ताओं के द्वारा की जा रही है।