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जयपुर। एसएमएस के न्यूरोसर्जरी वार्ड में। बड़े अजीब से हालात। पेसेंटो की खचा खच । सीपीआरयू रूम के बाहर, कोने वाले बिस्तर पर लेटी हूं। एक तो वजन बहुत भारी था। फिर कमर में असहनीय दर्द। बड़ी पीड़ा में थी। हिलना डुलना भी बंद सा होगया था।
सर्जरी के इस वार्ड में मैं दस दिनों से भर्ती थी। मुझे चक्कर आया करते थे। बेहोशी तक आ जाया करती थी। पहली कुछ समझी नहीं। सोचा की ऐसे ही हो जाता है सिर दर्द और बदन दर्द। पुरानी बस्ती में कई सारी क्लिनिक थी। सस्ती सी।ऐसे ही डॉक्टर थे। ज्यादा नहीं,खांसी जुकाम बुखार में ही जाया करती थी। मगर लापरवाही थी मेरी। सिर दर्द और बेहोशी के कारण नहीं समझ सकी। फिर समझ कर भी क्या करती, मेरे पति का साथ छूट चुका था। तीन छोटे छोटे बच्चे है मेरे।
हॉस्पिटल के नाम से ही घबराती थी। ठीक ही तो था सोचना मेरा। कौन करेगा सेवा मेरी। यही सोच कर दिन टालती रही। बिना दिखाए ही अपने हिसाब से खुद का ईलाज करती रही।यही गलती रही मेरी। बीमारी बढ़ती गई। इस परेशानी में मेरी पड़ोसन ने मेरी मदद की। ऑटो में डाल कर हॉस्पिटल ले गई। डॉक्टर का कमरा बड़ा सारा था। नर्स और छोटे सिखचू। मुझे घेर लिया। जांचे शुरू हो गई। मैं घबराई। पास में पैसे थे नहीं। जरूरत पड़ गई क्या करूंगी।
पड़ोसन के पास भी सौ रुपया का नोट था। अस्सी रूपया तो ऑटो वाले ने ले लिया। बाकी बचे बीस रूपये। क्या होगा इसमें। हम दोनो की चाय भी नहीं आयेगी। मैं हंसी। पड़ोसन ने डांटा... पगाला गई तू। इलाज करवाने आई है तू। दावत में नहीं। जांच में दो तीन घंटे लग गए । डॉक्टर बोला ... मांजी, तबियत ठीक नहीं है आपकी। यह बोला और आगे बढ़ गया। मैं सूटट हो गई। घबटाकर हांफने लगी। पसीने से भर गई। सलवार के नाड़े में पुराना पर्स फंसा रखा था। कुछ नहीं बचा था। बस चंद सिक्के थे। चेहरा उतर गया था मेरा। सोच में डूब गई। हालात ही कुछ ऐसे थे।
कैसे होगा मेरा इलाज। घर में बच्चों के लिए दाना तक नहीं है। मुझे देख कर पड़ोसन सरोज...। मुझे घूर रही थी। फिर बोली चिंता ना कर। मंदिर के नाम पर चंदा खाने वाले नही है हम। क्या हिंदू क्या मुस्लिम...! फिर हम दोनों हंसने लगी। तभी, हमारी बेंच के पास ही मेरी तरह मोटी नर्स खड़ी थी। हमें हंसता देख,दोनों को घूर ने लगी। जाने क्या सोचा। हमारे नजदीक आई। मेरे सिर पर हाथ फेरा। हमारी परेशानी सुन कर कहने लगी...। इलाज की चिंता ना करो। जनाधार कार्ड तो होगा ना आपके पास। बस सब ठीक होगा। मुख्य मंत्री जी की योजना से सारा खर्च मिल जाएगा । हम हैरान थी।
मगर यह सुन कर, संतोष से लंबी सांस lलेकर एक दूसरी को देखने लगी। बड़े डॉक्टर से हमारी बात हुई थी। बताने लगा कि तेरे सिर में बड़ा सा ट्यूमर याने फोडा हो गया है। ऑपरेशन होगा। वह भी तुरंत।: सरकार से मदद बहुत बड़ी बात होती है। मगर पैसे तो फिर भी चाहिए। अपने रिश्तेदारों के यहां फोन किए। एक ने भी मदद तो दूर ठीक से बात तक नहीं की। पीहर हो या ससुराल। कोई भी हो, मुसीबत में कोई भी खड़ा नही होता। अल्ला मियां को याद करती रही। किस्मत ने साथ दिया।
यो कहो अल्लाह ने सुनली। कोई संस्था वालों ने मुझ से बात की। फिर दिलाई तसल्ली। चिंता ना करो। सब ठीक होगा....! उनकी बात सुन कर बड़ा आराम मिला। मेरी चिंता काफी हद तक दूर हो गई। कुल आठ लाख का खर्चा था। कहां से आएगा इतना पैसा। सोचती सोचती सो गई। रात तसल्ली से कट गई। सुबह उठी तो तीनों बच्चे मेरे पास ही खड़े थे। फिर...अरे तुम। तुम कहां से आ गए।वही पड़ोसन भी खड़ी थी। हाथ में थैला था। कहने लगी, गर्मा गर्म हलवा बनाया है,तेरे लिए। चल खाले फटाफट। ठंडा हो जायेगा। मैं हैरान थी। मानो किसी ने प्यार की थपकी दी। बच्चों की ओर देखा। मैं कुछ पूछती कि इसके पहले तीनों ने अपनी तम्मी दिखादी।
Pc:CBS News