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भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 से नई टैक्स व्यवस्था को डिफॉल्ट टैक्स रिजीम के रूप में लागू कर दिया है। इसका मतलब है कि अगर कोई करदाता पुरानी टैक्स व्यवस्था को नहीं चुनता है, तो उसे स्वचालित रूप से नई टैक्स व्यवस्था में माना जाएगा।
नई टैक्स व्यवस्था को अधिक आकर्षक और सरल बनाने के लिए इसमें कटौतियों और छूट की सीमित व्यवस्था रखी गई है। इससे करदाताओं को कम दस्तावेज़ीकरण और प्रक्रिया में आसानी मिलती है। हालांकि, इस वजह से निवेशकों के बीच एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है — क्या अब ELSS (इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम) फंड्स का महत्व कम हो जाएगा या ये बंद हो जाएंगे?
क्या है ELSS फंड? ELSS फंड इक्विटी आधारित म्यूचुअल फंड होते हैं, जिनमें निवेश करने से टैक्स में छूट मिलती है। पुरानी टैक्स व्यवस्था में धारा 80C के तहत ELSS फंड में निवेश करने से ₹1.5 लाख तक की छूट मिलती थी। इसके अलावा, ELSS फंड्स का लॉक-इन पीरियड केवल तीन साल का होता है, जो अन्य कर-बचत विकल्पों से कम है।
नई टैक्स व्यवस्था और ELSS का भविष्य नई टैक्स व्यवस्था में छूट और कटौतियों का लाभ नहीं मिलता, जिससे ELSS में निवेश करने का प्राथमिक कारण कमजोर पड़ता दिखाई देता है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के अनुसार, लगभग 74% करदाता अब नई टैक्स व्यवस्था को अपना चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब ELSS फंड्स का महत्व समाप्त हो जाएगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि ELSS फंड्स का महत्व पूरी तरह समाप्त नहीं होगा। कई निवेशक केवल टैक्स छूट के लिए नहीं, बल्कि बेहतर रिटर्न की संभावना के लिए भी ELSS फंड्स में निवेश करते हैं। इसके अलावा, पुरानी टैक्स व्यवस्था का विकल्प अभी भी उपलब्ध है, और जो करदाता पुरानी व्यवस्था को चुनेंगे, वे अभी भी ELSS का लाभ ले सकेंगे।
नई टैक्स व्यवस्था के आने से ELSS फंड्स का आकर्षण कुछ हद तक कम हुआ है, लेकिन यह पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। अगर आप टैक्स बचत के साथ-साथ इक्विटी में निवेश करने की योजना बना रहे हैं, तो पुरानी टैक्स व्यवस्था का चयन करके ELSS फंड्स का लाभ उठा सकते हैं।