भारत में है बेडरूम और म्यांमार में किचन
कोहिमा। कहा जाता है कि सरहदें खून मांगती हैं। जब-जब धरती को बांटने के लिए लकीरें खींची गईं, इन्सानी जानों का बेहिसाब नुकसान हुआ। 1947 में भारत-पाक विभाजन की खौफनाक तस्वीरें आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं जब हजारों बेकसूर लोग सिर्फ सरहद के नाम पर मौत के घाट उतार दिए गए, लेकिन भारत में एक ऐसा गांव भी है जो दुनिया की तमाम सरहदों के लिए अमन की मिसाल हो सकता है।
यह गांव अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसा है। यह गांव भारत के नागालैंड प्रांत में स्थित है। इसका नाम है - लोंगवा। यह बहुत खूबसूरत जगह है जिस पर कुदरत भी बहुत मेहरबान है।
यह नागालैंड के मोन जिले में है लेकिन यहीं से अंतरराष्ट्रीय सीमा भी गुजरती है। इन सबके बावजूद इस गांव में न कोई तनाव है और न ही किसी किस्म की दहशत। इस गांव से जुड़ी रोचक बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा गांव के मुखिया के घर से निकलती है।
उनका आधा घर भारत में है और आधा म्यांमार में। इस परिवार के लोगों का खाना म्यांमार में पकता है और वे आराम भारत में करते हैं। ऐसा कई घरों के साथ है। यह खूबी इस गांव को दूसरों से अलग बनाती है। लोंगवा गांव के लोगों के पास दोनों ही देशों के नागरिकता है यानी वे भारत के नागरिक भी हैं और म्यांमार के भी।
गांव के मुखिया का एक बेटा तो म्यांमार की सेना में भी है। यहंा देश के नाम पर टकराव तथा तनाव बिल्कुल नहीं दिखाई देता। मूलत: यह गांव आदिवासियों एवं उनकी प्राचीन परंपराओं से जुड़ा है। यहंा की मान्यता के अनुसार मुखिया एक से ज्यादा शादी करते हैं। यहंा तक कि उनकी प?ियां की संख्या 60 भी रही है। बहुत पहले यहंा कबीलों में आपसी युद्ध होते थे।
तब एक कबीला दूसरे कबीले के लोगों की गर्दनें काटकर उसे विजय के प्रतीक के रूप में सहेजकर रखता था। अब यह परंपरा बंद हो चुकी है लेकिन आज भी खोपडिय़ों के ढेर उन परंपराओं की यादें ताजा कर देते हैं।