भारत में साधू की बात करें तो ऐसे कम ही धार्मिक स्थल होगें जहां साधू संत ना हों। धार्मिक स्थल ही नहीं आजकल ये शहर की हवा का मजा लेनें के लिए अक्सर शहरी क्षेत्रों में देखे जा सकते है। साधू शब्द का विस्तृत वर्णन अगर करें तो ये वे समुदाय होते है जो अपनें भगवान की भक्ति के लिए संन्यास को अपनाते है। इनका ग्रहस्थी,परिवार से किसी भी प्रकार से संबध नही होता।
दो देशों के नागरिक हैं इस गांव के लोग
= लेकिन इस विषय में गहराई से जाया जाए तो आपके सामने साधू के ही कई रुपो के बारे में जानेगें। जी हां हम बात कर रहें है कापालिक साधू के बारे में।
= आपकों बड़ी हैरानी होगी लेकिन इनके नाम से ही जैसा की पता चल रहा है कि कापालिक संप्रदाय के लोग इंसान की खोपडी में ही पानी पीते और भोजन करते है। ये प्रसिध्द अपनें खाने पीने के तरीको से है।
= तंत्रशास्त्र में उल्लेख मिलता है कि कापालिक समुदाय के लोग शैव संप्रदाय के अनुयायी होते है। क्योंकि ये लोग मानव खोपड़िंयों के माध्यम से खाते-पीते है। इसिलिए इन्हें कापालिक कहा जाता है।
ये हैं देश की वो सडक़ें जहां है अनजानी ताकतों का राज, अहसास से ही कांप उठती है रूह
ऐसे रहस्य जिनसे अभी तक होगें अनजान-
= प्राचीन समय में कापालिक साधना को वैभव विलास का रुप माना जाता था। इससे आकर्षित होकर कई साधक इसमें शामिल हो गए। इसी वजह के चलते कापालिक साधना को अपनें वासना का ही एक मार्ग मात्र सा बना दिया गया। मूल अर्थों में कापालिकों की चक्र साधना को ही भोग विलास तथा काम पिपासा शांत करनें का साधन बना दिया गया। इस प्रकार इस मार्ग को घृणा भाव से देखा जाने लगा।
= इस मार्ग के जो सही अर्थो में कापालिक थे उन्होंनें अलग-अलग व्यक्तिगत साधनाएं शुरु कर दी। आदि शंकराचार्य ने कापालिक संप्रदाय में अनैतिक आचरण का कड़ा विरोध किया। इस विरोध के कारण इस संप्रदाय का एक बड़ा हिस्सा नेपाल के सीमावर्ती इलाके में और तिब्बत में चला गया। तिब्बत में यह संप्रदाय लगातार सक्रिय रहा,जिससे बौध्द कापालिक साधना के रुप में यह संप्रदाय जीवित रह सका।
= कापालिक साधू अपनी साधना में महाकाली, भैरवी, चांडाली, चांमुडा, शिव, तथा त्रिपुरासुंदरी जैसी देवी-देवताओं की साधना करते है। पहले के समय में कापालिक साधू मंत्रो से ही मुख्य से ही कापालिक साधी कापालिकों की काम को न्यूनता तथा उद्देग देते थे, जिससे योग्य मापदंड में यह साधना पूरी होती थी। इस प्रकार यह अध्दुत मार्द लुप्त होते हुए भी गुप्त रुप से सुरक्षित है। विभिन्न तांत्रिकं मठो में आज भी गुप्त रुप से कापालिक अपनी तंत्र साधनाएं करते रहते है।
= इनकी साधना को लेकर इतिहासकार ये मानते है कि कापालिक पंथ से शैव शाक्त कौल मार्ग का प्रचलन हुआ। इस संप्रदाय से संबधित साधनाएं अत्यधिक महत्वपूर्ण रही है। कापालिक चक्र में मुख्य साधक भैरव तथा साधिका त्रिपुर सुंदरी कहा जाता है। तथा काम शक्ति के विभिन्न साधन से इनमें असीम शक्तियां आ जाता है। फल की इच्छा प्राप्त से अपने शारीरिक अवयवों पर नियंत्रण रखना या किसी भी प्रकार के निर्माण तथा विनाश करनें की बेजोड़ शक्ति इस मार्ग से प्राप्त की जा सकती है।
= कापालिक साधना में कापलिक अपनी भैरवी साधिका को पत्त्नी के रुप में भी स्वीकार कर सकता था। इनके मठ जीर्णशीर्ण अवस्था में उत्तरी पूर्व राज्यों में आज भी देखने को मिलते है। यामुन मुनि के आगम प्रामाण्य, शिवपुराण तथआ आगम पुराण में विभिन्न तांत्रिक संप्रदायों के भेद दिखाए गए है। वाचस्पति मिश्र नें चार माहेश्नवर संप्रदायों के नामों का वर्णन किया है। ऐसा माना जा सकता है कि श्रीहर्ष ने नैषध में समसिध्दान्त नाम से जिसका उल्लेख किया है, वह कापालिक संप्रदाय ही है।