भारत में कुछ ऐसे लोग हैं, जिनके अस्तित्व पर विज्ञान तक सिर्फ सवाल ही उठा सकता है। कुछ ऐसी जगहें हैं, जो इतनी विचित्र हैं कि कोई समझ ही नहीं पाता। कुछ ऐसी घटनाएं भी घटी हैं, जिनके होने के पीछे कोई पुख्ता कारण नही हैं। बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी इन रहस्यों के बारे में कुछ साबित नहीं कर पाया है, या ये कहें कि आधुनिक विज्ञान इनके आगे घुटने टेकता है। आज हम आपको उन्हीं रहस्मयी घटनाओं, लोगों, जगहों के बारे में बताने वाले हैं। ये हमारे समय के 7 सर्वाधिक अकथनीय रहस्य हैं…
इंटरनेट पर इस एलियन जैसे पुरातन जीव ने मचाया तहलका
मुह्नोच्वा- उत्तर प्रदेश
यहा किसी चोर, डाकू या जानवर की बात नहीं हो रही है। उत्तर प्रदेश के खचाखच भरें क्षेत्रों में वर्ष 2002 में एक बड़ी प्रकाश उत्सर्जक वस्तु ने सैकड़ों लोगों के चहरे और शरीर को नुकसान पहुंचाया था। इस हादसे में 7 लोगों ने अपनी जान गवां दी थी। इस वस्तु के Attack ने बहुत से लोगों के चहरे और बाजुओं पर चोट और खरोंच के निशान दिए थे। हवा में उड़ने वाली वह विचित्र वस्तु क्या थी, इसका आजतक पता नहीं चल पाया है। एक पुलिस अधिकारी का कहना था कि यह दुश्मन देश से आया विमान था। कुछ लोग इसे Aliens का UFO मानते थे। IIT-Kanpur के शोधकर्ताओं ने उन ग्रीन और ब्लू हानिकारक लाइट्स को वातावरण के अनियमित होने से निकली ऊर्जा बताया था। लेकिन अगर ऐसा था तो ऐसी घटना फिर कभी क्यों नहीं हुई?
Kongka-La भारत-चीन बॉर्डर पर बना है एक UFO Base?
भारत और चीन के Line of Control (LOC) क्षेत्र में स्थित है Kongka-La Pass। सालों से यहां विचित्र आकृतियां दिखती हैं। कभी हवा में उड़ने वाली उड़न तश्तरी, कभी कोई दूसरी दुनिया से आया प्राणी। शुरुआत में जब भारतीय सेना के जवानों को यह महसूस हुआ था, तब इस तरह की चीज़ को वो चाइना का ड्रोन या फिर कोई विमान समझते थे। लेकिन कई सालों में स्थानीय लोगों और वहां शोध के लिए आये वैज्ञानिकों ने खुद बहुत-सी अजीबोगरीब चीज़ें महसूस की हैं। इन रहस्यमयी विमानों के बारे में चीन भी वाक़िफ़ है, जब तब यह चीज़ें दिखने लगती हैं, तब-तब चीन वहां से सैनिकों की तैनाती हटा देता है। अमरनाथ यात्रा करने गए भक्तों को भी कुछ साल पहले ही एक एलियन के होने का आभास हुआ था, आसपास के टूरिस्ट गाइड्स तो मानते हैं कि यहां एक ‘UFO Base’ है।
जयगढ़ का किला और रहस्यमयी खजाना-
जयगढ़ का किला और रहस्यमयी ख़ज़ाना राजा अकबर के भारत में वर्चस्व के दौर में कुछ प्रभावशाली मुस्लिम अधिकारी उसकी उदार धार्मिक नीतियों से खफ़ा होकर उसके खिलाफ साज़िश रचने लगे थे। अकबर को यह पता चला तो वह अपने वफ़ादार ‘मान सिंह’ के साथ सेना लेकर काबुल की और निकल पड़ा। बाघियों को मौत के घाट उतार कर अकबर ने मान सिंह को काबुल का गवर्नर बनाया। मान सिंह ने सालों वहां राज किया, वह शहर बसाया जिसे आज हम जयपुर के नाम से जानते हैं। माना जाता है कि मान सिंह ने राजा अकबर से छुप कर जयगढ़ के किले में कुएं खुदवाकर हीरे-जवाहरात और करोड़ों की संपत्ति रखी थी। सदियों बाद खज़ाने की लालच में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के समय जयगढ़ के किले की तलाशी और खुदाई करवाने का सोचा।
यहाँ महिलाएं ही आपस में करती है शादिया !
इंदिरा के इरादे सामने आते ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने उस रहस्यमयी खज़ाने पर पाकिस्तान का भी हिस्सा होने का दावा किया। भारत सरकार को लिखे पत्र में पाकिस्तान ने कहा कि विभाजन से पहले की हर संपत्ति में पाकिस्तान का हक है, इसलिए जयगढ़ में अगर कोई ख़ज़ाना है तो उसका एक हिस्सा पाकिस्तान को भी मिले। इंदिरा गांधी की ओर से काफी समय तक पाकिस्तान को कोई जवाब नहीं भेजा गया। भारत सरकार कहती है कि कोई ख़ज़ाना मिला ही नहीं। लेकिन फिर कुछ दिनों बाद दिल्ली-जयपुर हाई-वे को 3 दिनों के लिए बंद करवा दिया जाता है ताकि सेना वहां से आसानी से निकल पाए। उस क़िले में कुछ था या नहीं, इस रहस्य पर से पर्दा आज तक नहीं उठ पाया है।
प्रहलाद भाई मगन लाल जानी-
एक स्वस्थ साधू जो कुछ खाता नहीं है शायद इनके बारे में आप में से कुछ लोगों ने सुना होगा. देश-विदेश के डॉक्टर्स और वैज्ञानिक इस तपस्वी साधू पर रिसर्च कर चुके हैं। दरअसल यह व्यक्ति कुछ खाता नहीं है। इस साधु के साथ कुछ ऐसा किस्सा है जो जिसे आप पढ़कर चौक जाएगें। दरअसल यह व्यक्ति कुछ खाता नही है। कहा जाता है कि इन्होंने आखिरी बार विश्व युद्ध-2 के अंतिम दिनों में खाया था। ये 1929 में पैदा हुए थे और सिर्फ 7 वर्ष की आयु में ही घर से भागकर तपस्वी बन गए थे।
वर्ष 2003 में डॉक्टर्स ने इन्हें 10 दिन तक कड़ी निगरानी के बीच रखा था, ताकि इनके भूखे रह सकने के दावे को परख सकें। लेकिन 10 दिन के बाद डॉक्टर्स की आंखें फटी रह गई थीं। प्रह्लाद भाई को उन 10 दिनों में एक बीकर में रोज़ाना कुल 100 मिलीलीटर पानी ही दिया जाता था, लेकिन फिर भी वे नियमित रूप से मूत्रविसर्जन किया करते थे। प्रहलाद भाई की इस सुपर नेचुरल पॉवर का राज़ आजतक विज्ञान भी नहीं बता पाया है।
छत्तीसगढ़ की रहस्यमयी रॉक पेंटिंग, जिसमें दिखाया गया कि एलियंस इंसानों को किडनैप करके ले जाते थे-
एक पेंटिंग में एलियंस को मानवों को किडनैप करते दिखाया गया था। आसपास के गांव वालो के हवाले से कुछ और रहस्यमयी चीज़ें सामने आई। गांव निवासियों के पूर्वज उन्हें बताया करते थे कि रोहेला लोग (एलियंस) हर महीने इंसानों को UFO में किडनैप कर के ले जाते थे और कभी वापस नहीं देते थे।
ताजमहल
कुछ इतिहासकारों का दावा है कि यहां एक शिव मंदिर हुआ करता था हम हमेशा सुनते आये हैं कि शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज़ के लिए ताज महल का निर्माण करवाया था और बाद में बनाने वालों के हाथ काट दिए थे ताकि ऐसी इमारत फिर न बन सके। लेकिन एक मशहूर इतिहासकार और Professor P.N OAK के अनुसार यह एक झूठ है और ताज महल वास्तव में भगवान शिव का मंदिर था, जिसे ‘Tejo Mahalaya’ कहा जाता था। Oak के अनुसार जयपुर के तत्कालीन राजा जयसिंह से शाहजहां ने जबरन एक बेहद खूबसूरत इमारत छीन ली थी।
शाहजहां की अपनी कोर्ट ‘बादशाहनामा’ के एक कागज़ात में बादशाह ने यह खुद माना है कि जयपुर के राजा से मुमताज़ की कब्र के लिए एक इमारत छीनी गयी थी। हालांकि कहीं भी यह साफ़ तौर पर नहीं लिखा है कि वह इमारत ताजमहल ही थी। ताजमहल के अस्तित्व और इतिहास को पुख्ता मानने वाले भारतीयों के लिए इस प्रोफेसर का दावा वाकई हैरान करने वाला था। यह दावें साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ा सकते थे, इसलिए इनको दबाने के ज़्यादा से ज़्यादा प्रयास हुए थे।
ज्वाला जी मंदिर की अखंड ज्योति आज भी बनी है रहस्यमयी स्त्रोत?
ज्वाला जी का मंदिर हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा डिस्ट्रिक्ट में स्थित है, धर्मशाला से करीब 55 किलोमीटर दूर। वहां कभी न ख़त्म होने वाली एक ज्वाला है, जिसे भक्त ज्वाला जी कहकर पूजा करते हैं। कहानी यह है कि भगवान शिव की अर्द्धांगिनी सती अपने पिता द्वारा अपने पति की भत्सर्ना बर्दाश्त नहीं कर पायी थी, जिस कारण उन्होंने प्राण त्याग दिए थे। भगवान शिव पत्नी की मौत के दुःख में हर काम-काज छोड़ चुके थे और भगवान विष्णु को डर था कि अगर भगवान शिव सती के पार्थिव शरीर के साथ ही जुडे रहे, तो धरती का क्या होगा। विष्णु ने सती के मृत शरीर के 51 टुकड़े किये और जिस जगह पर उनकी जीभ गिरी वहां आज ज्वाला जी का मंदिर है।
कहा जाता है कि मुगलों के शासन के समय राजा अकबर ने इस ज्वाला को बुझाने के लिए हर संभव प्रयास किया लेकिन वह कामयाब नहीं हुआ। आज ज्वाला जी मंदिर में कार्यरत पुजारी निडरता से इस ज्वाला में हाथ डालते हैं और फिर भक्तों के माथे को लगाते हैं। और ऐसा करते हुए उन्हें कोई नुकसान नहीं होता। इस ज्योति के स्त्रोत, उसकी शक्ति पर काफी शोध हुए। साफ़ कहें तो विज्ञान ने घुटने टेक दिए लेकिन कुछ निष्कर्ष निकल न पाया कि वह ज्योति आखिर आई कहां से।