नई दिल्ली। इस मंदिर के कपाट शीत ऋतु में बंद होते हैं, लेकिन भक्तों का कहना है मंदिर से घंटियों की आवाज आती है, शिवलिंग पर ताजा बेल पत्रों का चढ़ावा भी मिलता है। बाबा केदारनाथ का मंदिर। 12 ज्योतिर्लिगों में से एक केदारनाथ पर्वतराज हिमालय की केदार चोटी पर स्थित है। बात 2013 की है जब केदारनाथ के समीप स्थिर मन्दाकिनी नदी ने एक प्रलय का रूप ले लिया था। जो कुछ भी इनके रास्ते में आता वो इसे अपने साथ बहा ले जाती थी।
मंदाकिनी के विकराल प्रलयकारी रूप ने आस-पास के सभी देवालयों को अपने साथ बहा लिया और उसकी लहरें बार बार केदारनाथ धाम पर चोट कर रहीं थीं। मन्दाकिनी नदी का साहस इतना बढ़ चुका था की वह केदारनाथ को भी अपने साथ बहा ले जाना चाहती थी। लेकिन तभी इस तबाही को रोकने के लिए मंदिर के आगे कुछ शिलाएं प्रकट हुई जिन्होंने मंदिर को मन्दाकिनी की चोटों से बचा लिया और मंदाकिनी का अहंकार चूर कर दिया।
भक्तों की माने तो यह स्वयं भगवान शंकर थे जिन्हें देवालय की रक्षा के लिए प्रकट होना पड़ा।
केदारनाथ के दर्शन को आने वाले भक्तों द्वारा आज यह शिला भीम शिला के रूप में पूजी जाती है। इसके अलावा जैसा कि आप सभी जानते हैं। महादेव अर्थात शिव जी की सवारी थी नंदी बैल। जिसकी प्रतिमा इस मंदिर के बाहर स्थित है, लेकिन मन्दाकिनी की तेज लहरें इस मूर्ति को बहाना तो दूर खरोंच भी नहीं पंहुचा सकीं। इस मंदिर के कपाट शीत ऋतु में बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन भक्तों का कहना है कि इस काल में भी मंदिर से घंटियों की आवाज आती है और शिवभलग पर ताजा बेल पत्रों का चढ़ावा भी मिलता है, दर्शनार्थियों का मानना है कि इस काल में देवता महादेव की अर्चना करने आते हैं।
यही नहीं छ: माह पश्चात जब मंदिर के कपाट खुलते है तब भी मंदिर के अंदर स्थित दीप जल रहा होता है। इसके अलावा मंदिर में नंदी की मूर्ति को कोई क्षति नहीं हुई बल्कि पांडवों समेत सभी मूर्तियां खंडित हो चुकीं हैं।आखिर चमत्कार हैं खुद प्रभु, जिनका देवालय मंदाकिनी के आये जल प्रलय में मलवे से पट गया, लेकिन अभी भी इसमें स्थित शिवलिंग के दर्शन सा$फ मिलते हैं, जैसे महादेव मंदाकिनी के अहंकार को तोडने के लिए मंद-मंद मुस्कुरा रहे हों।