लगातार ढलान की ओर है टेनिस स्टार रोजर फेडरर का करियर

Samachar Jagat | Saturday, 19 Nov 2016 04:02:08 PM
Roger Federer's career is going from bad Farm


खेल डेस्क- दुनिया के महानतम खिलाड़ी के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके स्विटजरलैंड के रोजर फेडरर को लगता है कि वे अपनी क्षमताओं व उम्मीदों में संतुलन न बैठा पाने का शिकार हो गए हैं। एटीपी की ताजा रैकिंग में वे चौदह साल में पहली बार टॉप टेन में नहीं हैं। वे सोलहवें स्थान पर लुढ़क गए हैं। इसकी एक वजह तो निश्चित रूप से यह है कि इस साल जुलाई में घुटने की सर्जरी के बाद से वे मैदान से दूर हैं।

इसी वजह से रियो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत पाने का उनका सपना पूरा नहीं हो पाया। इसके अलावा वे कोई टूर्नामेंट वे नहीं खेल पाए। इसकी वजह से एटीपी अंक उन्हें नहीं मिले और उनकी रैकिंग बिगड़ गई। फेडरर के डेढ़ दशक के करिअर में यह पहला मौका है जब वे स्वास्थ्य कारणों से अपने प्रिय खेल से इतने ज्यादा समय तक अलग रहे। अब तक उनके हमेशा चुस्त दुरुस्त रहने की मिसाल दी जाती थी। जुलाई से पहले ऐसा मौका कभी नहीं आया जब चोट या बीमारी की वजह से वे किसी बड़े टूर्नामेंट में न खेले हों।

घुटने की तकलीफ ने यह सिलसिला तोड़ दिया है। पूरी तरह स्वस्थ होने में जितना समय लग रहा है उससे यह आशंका बढ़ गई है कि कहीं फेडरर युग खत्म तो नहीं हो रहा? वे 35 साल के हो गए हैं। सामान्य खिलाड़ी इस उम्र तक पहुंचते-पहुंचते अपनी चमक खो बैठता है। इस उम्र में खिलाड़ी यह समझ जाता है कि शरीर और दिमाग साथ नहीं दे रहा। इसे उलटी गिनती का संकेत मान कर ज्यादातर खिलाड़ी अपनी पूर्व प्रतिष्ठा को समेट कर खेल से किनारा कर लेते हैं। फेडरर के सामने भी क्या ये संकेत आ रहे हैं?

2012 विंबलडन का खिताब जीतने के बाद से फेडरर कोई ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट नहीं जीत पाए है। फेडरर की अब तक की जो उपलब्धियां रही हैं उन्हें देखते हुए अब खुद को श्रेष्ठतम साबित करते रहने की उन्हें कोई जरूरत नहीं है। लॉन टेनिस के इतिहास में सबसे ज्यादा 17 ग्रैंड स्लैम खिताब उनके नाम है। एक लंबे अरसे तक वे दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी रहे। यह सब कुछ पाना किसी भी खिलाड़ी के लिए सपना होता है। फेडरर को यह मिल चुका है। ऐसे में यह सवाल महत्वपूर्ण हो गया है कि क्या अब वे स्वस्थ होने के बाद फिर मैदान में उतरेंगे या निढाल होते शरीर को कड़ी प्रतिस्पर्धा से मुक्ति दिलाना चाहेंगे।

जो खबरें आ रही हैं उनके मुताबिक रोजर फेडरर अगले साल आस्ट्रेलियाई ओपन से वापसी करेंगे। कुछ समय फेडरर के कोच रहे स्वीडन के स्टीफन एडबर्ग का मानना है कि फेडरर की वापसी ज्यादा दमदार होगी। उम्र के साथ चुस्ती फुर्ती में कमी आने के बावजूद क्या फेडरर ऐसा कर पाएंगे? उनके करीबियों को लगता है कि फेडरर की सफलता की भूख अभी खत्म नहीं हुई। अपने आप से पूरी तरह संतुष्ट होने से पहले यह खत्म भी नहीं होने वाली।

करीब डेढ़ दशक के करिअर में सफलता के लिहाज से अभी तक लान टेनिस के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी साबित हो चुके फेडरर के लिए अब पैसा उतनी बड़ी प्राथमिकता नहीं रहा है। पिछले साल विंबलडन के फाइनल में हारने के बाद भी उन्होंने दिखा दिया कि संघर्ष करने की उनकी ललक अभी खत्म नहीं हुई है। फेडरर हार जरूर गए लेकिन मजबूती से यह स्थापित कर गए कि बढ़ती उम्र सफलता पाने की भूख खत्म नहीं कर सकती। फेडरर ने अपने 26वें ग्रैंड स्लैम फाइनल में जो खेल दिखाया वह जुझारूपन युवा खिलाड़ियों में भी कम देखने को मिलता है। हार के बाद भविष्य के लिए ज्यादा चुस्त दुरुस्त होने की इच्छा जता कर उन्होंने साफ कर दिया कि पिछले करीब तीन साल में कोई बड़ी सफलता न पा सकने की वजह से विशेषज्ञ भले ही उनके युग को खत्म हुआ मान लें, वे हथियार डालने के मूड में नहीं है।

विंबलडन फाइनल के बाद वे फेडरर ने कहा भी कि वे मानसिक और शारीरिक रूप से खुद को पहले से बेहतर स्थिति में पा रहे हैं। संघर्ष करने की उनकी क्षमता बढ़ी है औऱ वे भविष्य की संभावनाओं को लेकर ज्यादा सकारात्मक नजरिया अपनाएगें। यह रुख फेडरर की उस प्रतिक्रिया से अलग था जब 2014 में विंबलडन में जोकोविच से हारने के बाद उन्होंने कहा था कि उन्हें भरोसा ही नहीं हुआ कि वे पांच सेटों तक मैच खींच सकते हैं।

उन्होंने तब यह भी मान लिया था कि उम्र ने उनकी क्षमता को कम कर दिया है। तब माना गया कि कोई खिलाड़ी अगर पांच सेट तक कोर्ट में खड़े रहने पर आश्चर्य करे तो साफ है कि ग्रैंड स्लैम मुकाबले में वह ज्यादा समय तक टिकने की उसकी इच्छा शक्ति खत्म हो गई है। लेकिन 2015 में फेडरर के तेवर फिर आक्रामक हो गए। उनका आत्मविश्वास लौट आया। लेकिन घुटने की चोट ने उनकी रफ्तार रोक दी। अब नई रफ्तार पकड़ने में बाधाएं ज्यादा हैं।

1968 में ग्रैंड स्लैम मुकाबलों को पेशेवर खिलाड़ियों के लिए खोल देने बाद से करीब साढ़े चार दशक के दौर में लान टेनिस की कलात्मकता और दर्शनीयता में कई तरह के बदलाव आए हैं। पिछले कुछ सालों से खासतौर से अमेरिका के पीट सम्प्रास के रिटायर होने और फेडरर की चमक धुंधलाने के बाद ग्रैंड स्लैम मुकाबलों में युवा व ताकतवर खिलाड़ियों का दबदबा हो गया है। ऐसे में उम्र के 35वें साल में दाखिल हो चुके फेडरर का नए उत्साह से आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्पर होना ज्यादा उम्मीद नहीं जगाता।

साल के करीब चालीस हफ्तों में दुनिया भर में घूम कर कड़ी प्रतिस्पर्धा से जूझना आसान नहीं है। जिस दौर में दुनिया का हर खिलाड़ी लगातार खेलते रहने की वजह से चोट खा बैठता रहा उस दौर में फेडरर एक अरसे तक काफी चुस्त दुरुस्त रहे। लेकिन अब चोट ने उनके शरीर में घर बना लिया है। सिर्फ ताकत के सहारे खेलने वाले दर्जन भर खिलाड़ी उनसे आगे निकल गए हैं।

पिछले डेढ़ दशक में रोजर फेडरर की उपलब्धियां निश्चित रूप से काफी शानदार रही हैं। 302 हफ्ते वे दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी रहे हैं। फेडरर का पिछले साल तक का सफर इस मायने में महत्वपूर्ण रहा कि उसने इस आम धारणा को तोड़ा है जिसमें माना जाता है कि विश्व स्तर पर सफलता पाने के लिए खिलाड़ी का युवा होना जरूरी है। टेनिस विशेषज्ञ पॉल एनाकोन कहना है- ‘फेडरर में ऊर्जा आश्चर्यजनक है।

उन्हें खेलते रहने और मुकाबला करते रहने से जुनून की हद तक लगाव है।’ क्या यही जुनून फेडरर को वापसी में सफलता दिला पाएगा? यही वह सवाल है जिसका जवाब फेडरर को देना है। वैसे भारत के विजय अमृतराज और स्वीडन के स्टीफन एडबर्ग का तो कहना है कि फेडरर जब तक खुद को खत्म हुआ न मान लें तब तक उनकी सफलता व क्षमता के बारे में संदेह करने का कोई मतलब नहीं है।



 

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