इन्टरनेट डेस्क। सभी धर्माे में प्राय: स्त्रियों को सिर पर पल्लू या दुपट्टा रखने का रिवाज हैं। सिर को ढक़ना सम्मान का सूचक माना जाता ही है साथ ही इसके पीछे वैज्ञानिक वजह भी है। माना जाता है कि सिर मनुष्य का सबसे सवंदेनशील स्थान है।
पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है।
इसीलिए नग्र सिर भगवान के समक्ष जाना ठीक नहीं माना जाता है। यह मान्यता है कि जिसका हम सम्मान करते हैं या जो हमारे द्वारा सम्मान दिए जाने योग्य है उनके सामने हमेशा सिर ढककर रखना चाहिए। इसीलिए पूजा के समय सिर पर और कुछ नहीं तो कम से कम रूमाल ढक लेना चाहिए। इससे मन में भगवान के प्रति जो सम्मान और समर्पण है उसकी अभिव्यक्ति होती है।
माना जाता है कि आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि कई प्रकार के रोगों को जन्म देती है। सिर के बालों में रोग फैलाने वाले कीटाणु सरलता से सम्पर्क में आते है, क्योंकि बालों में चुम्बकीय शक्ति होती है।
जिसकी वजह से व्यक्ति रोगी बन जाता है। जहां तक हो सके सिर और बालों को ढककर रखना चाहिए। यह हमारी परंपरा में है। साफ, पगड़ी और अन्य साधनों से सिर के साथ ही कान भी सुरक्षित रहते है। इसकी वजह से हम कई रोगों से सुरक्षित रहते हैं।
सिर को ढंकने गंजापन, बाल झडऩा और डेंड्रफ आदि रोगों से सरलता से बचा जा सकता है। आज भी हिंदू धर्म में परिवार में किसी की मृत्यु पर उसके संबंधियों का मुंडन किया जाता है। ताकि मृतक शरीर से निकलने वाले रोगाणु जो उनके बालों में चिपके रहते हैं। वह नष्ट हो जाए।
स्त्रियां बालों को पल्लू से ढंके रहती है। इसलिए वह रोगाणु से बच पाती है। नवजात शिशु का भी पहले ही वर्ष में इसलिए मुंडन किया जाता है ताकि गर्भ के अंदर की जो गंदगी उसके बालों में चिपकी है वह निकल जाए। मुंडन की यह प्रक्रिया अलग-अलग धर्मों में किसी न किसी रूप में है।