सूर्यपुत्र होने के बाद भी कर्ण को क्यों कहा जाता है सूतपुत्र

Samachar Jagat | Wednesday, 30 Nov 2016 10:27:13 AM
Why is said to Karna Sutputr

कर्ण सूर्यपुत्र थे और कुंती उनकी माता थी चूंकि कुंती अविवाहित थी इसलिए उसने कर्ण का त्याग कर दिया था। कर्ण की छवि आज भी भारतीय जनमानस में एक ऐसे महायोद्धा की है जो जीवनभर प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ता रहा। कर्ण का जन्म कैसे हुआ, आइए आपको बताते हैं इस कथा के बारे में....

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कर्ण का जन्म कुंती को मिले एक वरदान स्वरुप हुआ था। जब कुंती अविवाहित थीं उस समय एक बार दुर्वासा ऋषि उसके पिता के महल में पधारे। कुंती ने पूरे एक वर्ष तक ऋषि की बहुत अच्छी तरह से सेवा की। कुंती के सेवाभाव से प्रसन्न होकर उन्होनें अपनी दिव्यदृष्टि से ये देख लिया कि पाण्डु से उसे संतान नहीं हो सकती और उसे ये वरदान दिया कि वह किसी भी देवता का स्मरण करके उनसे संतान उत्पन्न कर सकती है।

एक दिन अचानक कुंती को ऋषि का वरदान याद आ गया और उसने उत्सुकतावश कुंआरेपन में ही सूर्य देव का ध्यान किया। इससे सूर्य देव प्रकट हुए और उसे एक पुत्र दिया जो तेज़ में सूर्य के ही समान था। वह बालक कवच और कुण्डल लेकर उत्पन्न हुआ था। कवच, कुंडल जन्म से ही उसके शरीर से चिपके हुए थे। चूंकि वह अविवाहित थी इसलिए लोक-लाज के डर से उसने उस पुत्र को एक बक्से में रख कर गंगाजी में बहा दिया।

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कर्ण गंगाजी में बहता हुआ जा रहा था कि महाराज धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने उसे देखा और उसे गोद ले लिया और उसका लालन पालन करने लगे। कर्ण का पालन एक रथ चलाने वाले ने किया जिसकी वजह से कर्ण को सूतपुत्र कहा जाने लगा। अंग देश का राजा बनाए जाने के पश्चात कर्ण का एक नाम अंगराज भी हुआ, महाभारत के युद्ध में कर्ण ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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