होलाष्टक आठ दिनों तक रहता है और इस काल को भक्त प्रहलाद को हिरण्यकश्यपु द्वारा दी गई यातनाओं का काल माना जाता है। क्यों माना जाता है इसे यातनाओं का काल आइए जानते हैं इस पौराणिक कथा के बारे में.....
सतयुग में हिरण्यकश्यपु ने घोर तपस्या करके भगवान विष्णु से अनेक वरदान प्राप्त किए। वरदान के अहंकार में डूबे हिरण्यकश्यपु ने अनाचार-दुराचार का मार्ग चुन लिया। भगवान् विष्णु से अपने भक्त की यह दुर्गति सहन नहीं हुई और उन्होंने हिरण्यकश्यपु के उद्धार के लिए अपना अंश उनकी पत्नी कयाधू के गर्भ में स्थापित कर दिया, जो जन्म के बाद प्रह्लाद कहलाए।
घर में मोर पंख रखने से नकारात्मक ऊर्जा होती है समाप्त
प्रह्लाद जन्म से ही ब्रह्मज्ञानी थे। प्रह्लाद की भक्ति का उनके पिता हिरण्यकश्यपु बहुत विरोध करते थे। प्रह्लाद को भक्ति से विमुख करने के उनके सभी उपाय जब निष्फल होने लगे तो उन्होंने प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को बंदी बना लिया और मृत्यु हेतु तरह-तरह की यातनाएं देने लगे। प्रह्लाद विचलित नहीं हुए।
इस दिन से प्रतिदिन प्रह्लाद को मृत्यु देने के अनेकों उपाय किए जाने लगे, पर वे हमेशा बच जाते। इसी प्रकार सात दिन बीत गए। आठवें दिन अपने भाई हिरण्यकश्यपु की परेशानी देख उनकी बहन होलिका (जिसे ब्रह्मा द्वारा अग्नि से न जलने का वरदान था) ने प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में भस्म करने का प्रस्ताव रखा और होलिका जैसे ही अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती आग में बैठी, वह स्वयं जलने लगी और प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ।
ये एक मंत्र भर देगा आपके घर में धन के भंडार
तभी से भक्ति पर आघात हो रहे इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है। भक्ति पर जिस-जिस तिथि, वार को आघात होता, उस दिन और तिथियों के स्वामी भी हिरण्यकश्यपु से क्रोधित हो जाते थे। इसीलिए इन आठ दिनों में क्रमशः अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं।
(Source - Google)
इन ख़बरों पर भी डालें एक नजर :-
विवाह में हो रही है देरी तो 5 बुधवार करें ये उपाय
उबलते दूध का उफान आपकी जिंदगी में ला सकता है तूफान
अगर आपकी कुंडली में है ये योग तो आप हैं बहुत खास